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Tuesday 24 March 2009

थोड़ी बहुत नाक बची है क्या

पुलिस को तो अपनी नाक की चिंता है नहीं लिहाजा भादरा के लोगों को उसकी नाक बचाने के लिए सड़क पर उतरना पड़ा है। क्ख् वर्षीय एक स्कूली छात्रा कृष्णा जोगी की नृशंस हत्या के चार दिन बीतने के बाद भी पुलिस जिस तरह अंधेरे में हाथ पैर मार रही है उससे कस्बे के लोगोें को भी समझ आ गया है कि प्रदेश की बागडोर `राजस्थान के गांधीं के हाथों में आने के बाद से इस विभाग में कैसी अंधेरगदीü चल रही है। पुरानी सरकार के वक्त पुलिस को जिनकी सुननी थी उन्हीं की आवाज कानों तक पहुंचती थी और अब तो ऐसा लग रहा है कि इस जिले का नाम हनुमानगढ़ जरूर है, लेकिन कानून व्यवस्था का रामराज्य नहीं है। पुलिस ने जनता का विश्वास जीतने की दिशा में तत्परता दिखाई होती तो इन चार दिनों के दौरान हत्याकांड का कोई ना कोई सुराग जरूर मिल जाता। जबकि कुछ चेहरे पहले दिन से ही शंका के दायरे में हैं। आखिर ऐसा क्या हुआ है कि लोगों से पुलिस का सीधा संवाद नहीं बन पा रहा है। जब भादरा के थानाधिकारी ही तीन दिन में अपने थाना क्षेत्र की इस वारदात का पता नहीं लगा पाए तो बेचारे डॉग स्कवॉड को क्या दोष दें। वह तो जांच में सहयोग के लिए बुलाया गया था जबकि थाना स्टाफ तो ख्ब् घंटे यहीं कुçर्सयां तोड़ता रहता है। राजस्थान की बेटियां विश्व में इस प्रदेश का नाम बढ़ा रही हैं। लेकिन कृष्णा जोगी की याद में खून के आंसू बहा रहे परिजनों और कस्बे के लोगों की बेचैनी से पुलिस का दिल पिघल जाए, ये जरूरी नहीं। ऐसा होने लग जाए तो लोग पत्थर दिल का खिताब किसे देंगे? मैं तो ये कल्पना करके ही सिहर जाता हूं जब ख्ब् घंटे जांच में जुटा पुलिस अमला घर पहुंचता होगा और उनकी पçत्नयां, बेटियां पूछती होंगी, कृष्णा के हत्यारोें का पता चला क्या? तो ये लोग उनसे नजर मिला पाते होंगे या नहीं? प्रशासन की हमेशा अपेक्षा रहती है कि मीडिया भी बधाई के गीत गाता रहे। कस्बे में चल रहे आंदोलन और भास्कर के तेवर से जांच में जुटा अमला खफा हैं तो इसलिए कि हम पत्रकारिता का धर्म निभा रहे हैं। किसी गुंडे की सरेआम हत्या की गई होती तो न कस्बे के लोग सड़क पर उतरते और न ही भास्कर जन आवाज बनता। हमें पता है कि एक जवान होती बेटी की क्रूर हत्या परिवार के कितने दिलों को तोड़ती है। इस दर्द को वो पुलिसकर्मी जरूर समझते होंगे, जिनके घर लाडो होगी। यदि हम आज कृष्णा के परिवार और कस्बे के लोगों की पीड़ा बयान कर रहे हैं तो इसलिए कि यह हमारी पत्रकारिता का धर्म है। इस बेचैनी और आक्रोश के बाद भी कस्बे के लोग बधाई के पात्र हैं तो इसलिए कि उन्होंने कानून हाथ में लेने जैसा कोई गैर कानूनी काम नहीं किया है और ऐसा करना भी नहीं चाहिए। रहा पुलिस का सवाल तो उसमें भी इतना साहस बचा है कि अधिकारी बेहिचक ये स्वीकार कर रहे हैं कि अभी तक उन्हें कोई सुराग नहीं मिला है। कस्बे के लोगों को पुलिस का शुक्रगुजार इसलिए भी होना चाहिए कि उसने दिल्ली पुलिस की तरह आरुषी हत्याकांड को फटाफट निपटाने के लिए चाहे जिस पर चाहे जैसा दोष नहीं मढ़ा। इस छात्रा की हत्या के आरोपी जितनी देर से पकड़े जाएंगे पुलिस की सीआर उतनी ही खराब होगी। क्योंकि इससे यह भी पता चलेगा कि थाने का स्टाफ अपनी ड्यूटी को कितने मजे से कर रहा है। एक परिवार की बेटी का दर्द समझने में इतना विलंब यह भी दर्शा रहा है कि पुलिस और जनता के बीच खाई बढ़ती जा रही है। हम कामना करें कि कृष्णा के हत्यारे शीघ्र पकड़े जाएं और कस्बे की जनता भी पुलिस को यह विश्वास दिलाए कि इस घटना से सबक लेकर इतनी मुस्तैदी तो दिखाएं कि फिर जुलूस, नारेबाजी और बंद की नौबत ना आए।

2 comments:

  1. pachmel vakai pachmel h. insani rishto ko badhava dene wala, insaniyat ke bhaw jgane wala prernadayi blog h ye. plz, ise samay par update kar diya kren.
    -satyanarayan soni, lect. hindi, parlika.

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  2. ek nivedan aor, publish krne se pahle post ki proof reading bhi kiya kren. maslan....ख्ब् घंटे यहीं कुçर्सयां तोड़ता रहता है। is pankti ko dekhen, to baat samajh me aa jayegi.

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