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Sunday 1 March 2009

जनभागीदारी से कुछ तो सुधरेगी शहर की सूरत

आवारा पशुओं पर नियंत्रण के मामले में दोनों जिलों में सतत सख्त अभियान जारी नहीं रहे तो संगरिया में गत दिनों हुई एक किशोर की मौत जैसी घटनाएं भी रुकने वाली नहीं हैं। जिन कार्यक्रमों, योजनाओं का लाभ सीधे आम जनता को मिलता है ऐसे अभियान को सफलता तभी मिल सकती है जब उसमें जनभागीदारी हो। चौराहों का विकास, पालिथीन मुक्त शहर, चकाचक सफाई, सरकारी अस्पतालों में बेहतर व्यवस्था, बिजली बचत जैसे सार्थक कायोZ में सारी कमान क्षेत्र के प्रमुख औद्योगिक व्यापारिक-सामाजिक संगठनों को सौंपकर जिला प्रशासन या नगर परिषद की भूमिका सहयोग वाली ही होनी चाहिए। आवारा पशुओं से मुक्ति मिलना कोई चुनौतीपूर्ण भी नहीं है, बस संकल्पशक्ति चाहिए और वह कैसे प्राप्त करें इसे नगरपरिषद के तत्कालीन अध्यक्ष जगदीश जांदू बता सकते हैं। आज गंगानगर पिग प्रॉब्लम (सूअर समस्या) से कुछ राहत महसूस कर रहा है तो यह उस वक्त सतत चलाए अभियान का ही नतीजा है।
सोचना होगा विद्युत शवदाह गृह के लिए
अभियान तो हरियाली बचाने के लिए भी चलाना ही चाहिए, दोनों जिलों में पानी का तो संकट नहीं है, लेकिन हरियाली की कमी है। नए पौधे लगाने के साथ ही लगे हुए पेड़ बचाना भी जरूरी है। महानगरों जैसी चकाचौंध का सपना देखने वाले दोनों जिलों में विद्युत शवदाह गृह के बारे में भी सोच विकसित होनी चाहिए। प्रदूषण कम करने, पेड़ बचाने के लिए ऐसे शवदाहगृह होने ही चाहिए। मृत्यु पश्चात देहदान के मामले में गंगानगर का नाम हो रहा है तो प्रमुख समाजों को भविष्य के हरियाले गंगानगर की खातिर विद्युत शवदाहगृह की दिशा में आदर्श स्थापित करना चाहिए।
पानी में बहा पानी का वादा
फसलों को पर्याप्त पानी के लिए सात फरवरी को उच्चस्तर पर समझौता तो यह हुआ था कि एक सप्ताह के अंतर से पानी देते रहेंगे। लगता तो यह है कि समझौते के कागज ही पानी में बहा दिए गए। यही कारण है कि क्षेत्र के किसानों को आंदोलन की राह पकड़ना पड़ी है। दोनों जिलों के किसानों से की जा रही यह वादाखिलाफी सरकार को कितनी भारी पड़ेगी, यह बात मुख्यमंत्री को जिला प्रशासन के अधिकारी कब बताएंगे।
रोड पर अरोड़ा
कुर्सी की लड़ाई ने एक अच्छे भले समाज को सड़क पर खड़ा कर दिया है। अरोड़वंश समाज में जो कुछ चल रहा है उससे बुजुर्ग तबका तो कतई खुश नहीं है। इससे बाकी समाजों को भी यह सबक लेना ही चाहिए कि समाज के पदाधिकारी जब राजनेताओं के साथ ज्यादा उठने-बैठने लग जाते हैं तब खुद समाज में उठापटक की राजनीति शुरू हो जाती है। समाज के कंधों पर चढ़कर राजनीति की ऊचाइयां छूने का सपना देखने वाले लोग ही जब अपने अहं की संतुष्टि के लिए विघ्न संतोषियों को हवा देने लगें तो अरोड़वंश ही क्यों किसी भी समाज को ऐसे बुरे दिन देखने ही पडें़गे।
और खूबसूरत होगा बार्डर
अटारी (अमृतसर) बार्डर की तरह हिंदूमलकोट बार्डर भी अब आकर्षण का केंद्र बनेगा! गंगानगर के रहवासी अन्य शहरों के अपने रिश्तेदारों को अब यह तो कह ही सकेंगे कि हमारे यहां देखने लायक एक-दो स्थान तो हैं ही। हिंदूमलकोट बार्डर हो या क्यूहैड बार्डर इनके सौंदयीüकरण में पड़ोसी मुल्क (पाकिस्तान) की गरीबी आडे़ आ रही है। हमारी सरकार तो इन दोनों स्थानों के विकास के लिए भरपूर धनराशि भी दे लेकिन उधर बार्डर का रूप भी तो निखरे! वहां बाकी जरूरतों के लिए पैसे का संकट है तो बार्डर डवलपमेंट के लिए पैसा स्वीकृत करना बहुत बड़ी समस्या जैसा ही है।
सीमा से परे मानवता
बिगबास और शिल्पा शेट्टी पर टिप्पणियों से चर्चा में आई जेड गुडी को यह तो पता नहीं होगा कि भारत में श्रीगंगानगर, जैसलमेर कहां है किंतु कैंसर से संघर्ष कर रही गुड़ी की बीमारी से हंसराज भवानिया भी विचलित हैं। श्रीगंगानगर निवासी और जैसलमेर में जेईएन (विद्युत विभाग) पदस्थ भवानिया ने कहीं से नंबर तलाश कर मुझे सुबह-सुबह फोन किया। उनके स्वर में मानवीयता झलक रही थी और आग्रह था कि किसी तरह जेड गुडी को यह संदेश पहुंचाएं कि बांसवाड़ा के समीप कल्लाजी के सिद्ध स्थान पर जाएं तो उन्हें राहत मिल सकती है। बीमारी से राहत मिलेगी या नहीं ? अंग्रेजों का भारतीय संस्कारों, आस्था, श्रद्धा में कितना विश्वास होता है ? इन सब बातों से कही ज्यादा यह सच है कि हमें संस्कारों में मिली मानवीयता मरी नहीं है।

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