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Wednesday 4 March 2009

आइए, अभिभावक वाला नजरिया अपनाएं

इन दिनों बच्चे परीक्षा और अभिभावक अग्नि परीक्षा दे रहे हैं। बच्चों को समय से खिलाना-सुलाना, बच्चों से पहले उठना, उन्हें मनाना-उठाना, दूध-नाश्ते की चिंता, इस सबके बावजूद परीक्षा के तनाव से गुजर रहे बच्चों की çझड़कियां, बात-बात पर नाराजगी फिर भी अभिभावक हमेशा बच्चों का भला ही सोचते हैं। कुछ ऐसी ही भावना समाजों, संगठन पदाधिकारी और शासकीय विभागों के प्रमुखों में नजर आने लगे तो आधे से ज्यादा परेशानियां तो पलक झपकते ही दूर हो जाएंगी। जिला एवं सत्र न्यायाधीश उमेशचंद्र शर्मा ने तो अभिभाषकों के बीच अपना यह अभिभावक वाला दायित्व उजागर भी कर दिया। निधन, आंदोलन, समर्थन आदि मुद्दों पर आए दिन वर्क सस्पेंड के निर्णय से अदालतों के चक्कर लगाने वाले हजारों मुवçक्कलों के अभिभावक तो न्यायमूर्ति शर्मा ही हैं। एक साथी के निधन पर वर्क सस्पेंड के निर्णय की जानकारी देने पहुंचे अभिभाषक संघ के पदाधिकारियों को डीजे ने अभिभावक के इसी दायित्व से ही सीख दी है कि वर्क सस्पेंड से पहले अदालत से आस लगाए लोगों के दर्द को भी समçझए। गंगानगर की तरह हनुमानगढ़ के अभिभाषक संघ ने भी संकल्प तो यही लिया है कि न्यूनतम वर्क सस्पेंड करेंगे। सदस्यों की भावना और संघ के विधान का पालन करना पदाधिकारियों की मजबूरी हो सकती है, लेकिन भारतीय संविधान में भी तो संशोधन होते रहे हैं। वर्क सस्पेंड करना ही पड़े तो भोजन अवकाश के बाद आधे दिन के लिए भी तो किया जा सकता है। खैर, अभिभाषकों ने डीजे की सीख पर जिस गंभीरता से गर्दन हिलाई उससे तो मुवçक्कलों को यही विश्वास करना चाहिए कि बात समझ आ गई है।
आबियाना वसूली का कोई हल निकले
इन दोनों जिलों के किसानों-पटवारियों को भी सरकार से ऐसे ही अभिभावक होने की अपेक्षा है। लोकसभा चुनाव के चलते तो पटवारियों की मांग पूरी होते नहीं दिखती लेकिन किसानों से आबियाना वसूली हो या पटवारियों पर बढ़ता कार्यबोझ सरकार को दोनों के साथ न्याय करना ही चाहिए। 2002 में पटवारियों को सिंचाई विभाग से हटाया सरकार ने, आबियाना वसूली रुक गई तो किसानों की क्या गलती। अब पटवारी कम हैं, सरकार चाहती है कि जितने पटवारी हैं किसानों से एक दशक की वसूली एक मुश्त करें। पटवारी और किसानों के बीच संघर्ष की स्थिति बन गई है। एकमुश्त वसूली वह भी ब्याज के साथ। प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहे किसानों को समझ नहीं आ रहा, कहां से लाएं इतना रुपया। आचार संहिता लग गई इसलिए यह संभावना भी नहीं कि सरकार पिछला बकाया माफ कर चालू वर्ष के आबियाना वसूली जैसी कोई घोषणा कर दे।
ये हुआ ना सेवा का सम्मान
आरसीए चुनाव के परिणाम हमारे दोनों जिलों में क्रिकेट गतिविधियों और युवा खिलाडि़यों को बेहतर अवसर की उम्मीद वाले ही रहे हैं। हनुमानगढ़ के नवेंदु त्यागी का संयुक्त सचिव पद पर निर्वाचित होना इस खेल के विकास में उनके समर्पण का सम्मान तो है ही। यह भी सीख देता है कि किया हुआ व्यर्थ नहीं जाता। त्यागी ने अच्छा किया तो फल भी अच्छा मिला। अब राजस्थान में क्रिकेट की राजनीति में दखल रखने वाले ही बता सकते हैं कि किया तो ललित मोदी ने भी बहुत कुछ था फिर व्यर्थ क्यों गया! दोनों जिलों के खिलाडि़यों के लिए त्यागी का निर्वाचित होना इसलिए भी सुखद है कि उनके साथ अन्याय नहीं होगा और ऐसी नौबत आई भी तो कार्यकारिणी में आवाज उठाने वाला एक पदाधिकारी है तो सही।
आप तिलक लगाएंगे ना!
इस बार की होली को आप भी जल प्रहरी के रूप में यादगार बना सकते हैं। होली पर रंगों से सराबोर ही हों यह जरूरी तो नहीं अच्छा यह होगा कि बस तिलक लगाएं और होली मनाएं। ठीक है कि दोनों जिलों में पानी का संकट नहीं है, लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं कि सिर्फ इसी कारण पानी की फिजूलखर्ची की जाए। आप का एक तिलक बाकी को भी प्रेरणा देगा। हम सबके संकल्पों से ही जल सत्याग्रह कामयाब होगा।
करने को बहुत कुछ है पुलिस के लिए
शहर में बिगडै़ल युवाओं के हुड़दंग की घटनाएं न तो रुक रही हैं और न ही पुलिस का कोई एक्शन नजर आ रहा है। परिवार के साथ होटल में जाने से पहले यह भी देख लें कि आसपास की टेबल पर उस किस्म के युवा तो नहीं बैठे हैं जिनके दिए जख्म अशोक गुप्ता परिवार वर्षों तक नहीं भूल पाएगा। पुलिस करना चाहे तो कॉलोनियों में चल रहे होस्टल में रहने वाले छात्रों का, किराएदारों का रिकार्ड तैयार करा सकती है। करना चाहे तो स्टेशन, बस स्टैंड की होटलों पर पीने-पिलाने की अघोषित सुविधा पर अंकुश लगा सकती है, इससे कुछ तो कमी आएगी, अपराधों में।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...

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