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Monday 2 March 2009

शहर में खौफ पुलिस का रहेगा या गुंडों का

रात 8 बजे शराब की दुकानें बंद हो जाती हैं, लेकिन शराब पीकर हुड़दंग और परिवार के साथ मारपीट करने वाले शराबी युवकों का तांडव रात 11 बजे गोल बाजार की मुख्य सड़क पर चलता है। पुलिस हर व्यक्ति की पहरेदारी तो नहीं कर सकती, लेकिन इस छोटे से शहर के मुख्य बाजार में ऐसा तांडव विभाग की उदासीनता को तो उजागर करता ही है। परचून की दुकान चलाने वाले अशोक गुप्ता के साथ जो हुआ फिर किसी परिवार के साथ ऐसा न होगा, इसकी गारंटी भी यदि पुलिस प्रशासन इस शहर को नहीं दे पाए तो फिर लोगों को ऐसी पुलिस के भरोसे रहना भी नहीं चाहिए। जिस तरह रोज कोई न कोई घटना हो रही है। उससे तो यही लगने लगा है कि पुलिस नाम की दहशत गुंडा तत्वों के दिलो दिमाग से खत्म हो चुकी है। अब तक जो युवक पकड़े गए हैं, उनमें से कुछ ने एक दिन पहले ही पटवारी परीक्षा दी है, यानी उन्हें अपने भविष्य की तो फिक्र है, लेकिन शराब पीकर हुड़दंग मचाते वक्त तो परिवार के बुजुगोZ से मिले संस्कार भी उसी गिलास से गटक गए। जैसे घायल हुए गुप्ता के बच्चे चिंतित हैं, वैसे ही इन बिगडैल युवकों के परिजन भी अपना नाम मिट्टी में मिलने से शर्मसार होंगे ही। घर से ट्यूशन पर जाने, परीक्षा देने का कहकर निकले बच्चों पर जब अंकुश न रहे तो ऐसे बिगड़ैल चौराहे-चौराहे मिल सकते हैं। कॉलोनियों में लोगों की नींद हराम करने वाले भी ऐसे ही बिगड़ैल होते हैं और बदनाम होते हैं सारे स्टूडेंट।अब जबकि परीक्षा चल रही है तो पढ़ने-लिखने वाले बच्चों को तो ऐसे हुड़दंग की फुरसत है नहीं। पुलिस को गली-मोहल्लों में गश्त करने, बिगडैल युवकों के खिलाफ सख्त अभियान के लिए शायद किसी ऐसी ही घटना का इंतजार था। यदि अब भी पुलिस हिम्मत नहीं जुटाए तो पीडि़त परिवार फिर थाने ही पहुंचेंगे पुलिस महकमे की नाजुक कलाइयों का नाप लेने के लिए।

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