पचमेल...यानि विविध... जान-पहचान का अड्डा...पर आपका बहुत-बहुत स्वागत है.

Tuesday 24 March 2009

थोड़ी बहुत नाक बची है क्या

पुलिस को तो अपनी नाक की चिंता है नहीं लिहाजा भादरा के लोगों को उसकी नाक बचाने के लिए सड़क पर उतरना पड़ा है। क्ख् वर्षीय एक स्कूली छात्रा कृष्णा जोगी की नृशंस हत्या के चार दिन बीतने के बाद भी पुलिस जिस तरह अंधेरे में हाथ पैर मार रही है उससे कस्बे के लोगोें को भी समझ आ गया है कि प्रदेश की बागडोर `राजस्थान के गांधीं के हाथों में आने के बाद से इस विभाग में कैसी अंधेरगदीü चल रही है। पुरानी सरकार के वक्त पुलिस को जिनकी सुननी थी उन्हीं की आवाज कानों तक पहुंचती थी और अब तो ऐसा लग रहा है कि इस जिले का नाम हनुमानगढ़ जरूर है, लेकिन कानून व्यवस्था का रामराज्य नहीं है। पुलिस ने जनता का विश्वास जीतने की दिशा में तत्परता दिखाई होती तो इन चार दिनों के दौरान हत्याकांड का कोई ना कोई सुराग जरूर मिल जाता। जबकि कुछ चेहरे पहले दिन से ही शंका के दायरे में हैं। आखिर ऐसा क्या हुआ है कि लोगों से पुलिस का सीधा संवाद नहीं बन पा रहा है। जब भादरा के थानाधिकारी ही तीन दिन में अपने थाना क्षेत्र की इस वारदात का पता नहीं लगा पाए तो बेचारे डॉग स्कवॉड को क्या दोष दें। वह तो जांच में सहयोग के लिए बुलाया गया था जबकि थाना स्टाफ तो ख्ब् घंटे यहीं कुçर्सयां तोड़ता रहता है। राजस्थान की बेटियां विश्व में इस प्रदेश का नाम बढ़ा रही हैं। लेकिन कृष्णा जोगी की याद में खून के आंसू बहा रहे परिजनों और कस्बे के लोगों की बेचैनी से पुलिस का दिल पिघल जाए, ये जरूरी नहीं। ऐसा होने लग जाए तो लोग पत्थर दिल का खिताब किसे देंगे? मैं तो ये कल्पना करके ही सिहर जाता हूं जब ख्ब् घंटे जांच में जुटा पुलिस अमला घर पहुंचता होगा और उनकी पçत्नयां, बेटियां पूछती होंगी, कृष्णा के हत्यारोें का पता चला क्या? तो ये लोग उनसे नजर मिला पाते होंगे या नहीं? प्रशासन की हमेशा अपेक्षा रहती है कि मीडिया भी बधाई के गीत गाता रहे। कस्बे में चल रहे आंदोलन और भास्कर के तेवर से जांच में जुटा अमला खफा हैं तो इसलिए कि हम पत्रकारिता का धर्म निभा रहे हैं। किसी गुंडे की सरेआम हत्या की गई होती तो न कस्बे के लोग सड़क पर उतरते और न ही भास्कर जन आवाज बनता। हमें पता है कि एक जवान होती बेटी की क्रूर हत्या परिवार के कितने दिलों को तोड़ती है। इस दर्द को वो पुलिसकर्मी जरूर समझते होंगे, जिनके घर लाडो होगी। यदि हम आज कृष्णा के परिवार और कस्बे के लोगों की पीड़ा बयान कर रहे हैं तो इसलिए कि यह हमारी पत्रकारिता का धर्म है। इस बेचैनी और आक्रोश के बाद भी कस्बे के लोग बधाई के पात्र हैं तो इसलिए कि उन्होंने कानून हाथ में लेने जैसा कोई गैर कानूनी काम नहीं किया है और ऐसा करना भी नहीं चाहिए। रहा पुलिस का सवाल तो उसमें भी इतना साहस बचा है कि अधिकारी बेहिचक ये स्वीकार कर रहे हैं कि अभी तक उन्हें कोई सुराग नहीं मिला है। कस्बे के लोगों को पुलिस का शुक्रगुजार इसलिए भी होना चाहिए कि उसने दिल्ली पुलिस की तरह आरुषी हत्याकांड को फटाफट निपटाने के लिए चाहे जिस पर चाहे जैसा दोष नहीं मढ़ा। इस छात्रा की हत्या के आरोपी जितनी देर से पकड़े जाएंगे पुलिस की सीआर उतनी ही खराब होगी। क्योंकि इससे यह भी पता चलेगा कि थाने का स्टाफ अपनी ड्यूटी को कितने मजे से कर रहा है। एक परिवार की बेटी का दर्द समझने में इतना विलंब यह भी दर्शा रहा है कि पुलिस और जनता के बीच खाई बढ़ती जा रही है। हम कामना करें कि कृष्णा के हत्यारे शीघ्र पकड़े जाएं और कस्बे की जनता भी पुलिस को यह विश्वास दिलाए कि इस घटना से सबक लेकर इतनी मुस्तैदी तो दिखाएं कि फिर जुलूस, नारेबाजी और बंद की नौबत ना आए।

एक फूल तो देकर देखिए

अधिकांश बच्चों के एग्जाम या तो हो चुके हैं या खत्म होने को हैं। अच्छा रिजल्ट लाने वाले बच्चों को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उनकी इस सफलता के लिए पेरेंट्स ने भी रातें काली की हैं। रिजल्ट बिगड़ जाए तो यह आपकी मेहनत में कमी का नतीजा है, पेरेंट्स ने तो आपकी परेशानी दूर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।अच्छे रिजल्ट से उत्साहित बच्चे स्कूल में थैंक्यू मेम, थैंक्यू टीचर कहते नहीं थकते लेकिन घर आते-आते उन्हें लगने लगता है यह सफलता तो उनकी अपनी है। चलिए इसी में खुश रहिए, लेकिन इस बार जब रिजल्ट लेकर जाएं तो साथ में कुछ फूल या अपनी भावनाओं को जाहिर करता एक पत्र पेरेंट्स के हाथों में रिजल्ट के साथ थमाएं और उनके चेहरे को पढ़ने की कोशिश भी करें। डबडबाई आंखों को आप भूल नहीं पाएंगे जब आप खुद पेरेंट्स बनेंगे तब समझ आएगी इन आंसुओं और मुस्कान की भावना।
इनसे सीखें तनाव में भी संयम नहीं खोना
आयकर सवेü टीम के नाम से ही कई प्रतिष्ठानों का पसीना छूटने लगता है लेकिन (विशाल ज्वेलर्स) गुप्ता और बंसल परिवार ने तनाव के इन घंटों में खुद को संयमित तो रखा ही आसपास के दुकानदारों को भी समझाया जांच हमारे यहां चल रही है आप सब क्यों प्रतिष्ठान बंद कर रहे हैं। इन व्यापारिक प्रतिष्ठानों के संचालकों ने जिस तरह आयकर सवेü टीम को सहयोग किया वह बाकी प्रतिष्ठानों के लिए उदाहरण भी हो सकता है। विभाग के सवेü का जो भी परिणाम आए, विभाग को ऐसे व्यापारियों को प्रोत्साहन पत्र तो देना ही चाहिए। क्योंकि गुप्ता और बंसल परिवार जैसे व्यापारी अच्छी तरह जानते हैं कि बिजनेस में ऐसी चुनौतियों का सामना भी करना ही पड़ेगा। आयकर विभाग टीम को ऐसा अच्छा अनुभव बहुत कम ही मिलता है। इस सवेü कार्रवाई से विभाग की यह छवि भी सामने आई है कि सवेü करने वाले भी इतना बुरा व्यवहार नहीं करते।
बाकी बच्चों को बचाने कौन आएगा
कालियां गांव में एक बच्चे की डिग्गी में डूब जाने से मौत हो गई। इस परिवार के आंसू सूख चुके हैं लेकिन दोनों जिलों में खुली डिçग्गयों में डूबने से फिर किसी घर का चिराग न बुझे यह सजगता तो जिला प्रशासन को ही दिखानी होगी। संगरिया के शुभम गर्ग ने तो तत्परता दिखाकर दिवांशु को डूबने से बचा लिया। लगता है शुभम के इस साहस पर प्रशासन तो आराम से चिंतन करेगा। लेकिन ऐसी खतरनाक डिçग्गयों के मालिक यह सोचकर ही जाग जाएं कि उनके बच्चे भी खेत-मकानों में खेलते रहते हैं।
आखिर क्या हो रहा है पुलिस को
हनुमानगढ़ में पुलिस के दिन अच्छे नहीं चल रहे। एक के बाद एक घटना होती जा रही हैं। अभी भादरा में स्कूली छात्रा कृष्णा जोगी की संदिग्ध परिस्थिति में मौत, इससे पहले नोहर में श्यामलाल महिपाल के यहां लाखों की चोरी, जंक्शन में दुगाü कॉलोनी निवासी रामकिशोर गर्ग के घर के बाहर खड़े पिकअप वाहन की चोरी। बड़े अधिकारियों ने थाने वालों की çढलाई पर खीझ भी उतारी लेकिन इन घटनाओं के आरोपी तो नहीं मिले। बाकी छोटी-मोटी वारदात तो हो ही रही है। बुजुगोZ की सार-संभाल करना पुलिस का अच्छा कदम है, लेकिन ये बुजुर्ग भी नहीं चाहेंगे कि बाकी लोगों का पुलिस से विश्वास ही उठने लग जाए।
लीजिए हंसिए, डाक्टर को कम बिल चुकाना पड़ेगा
होली के इस मौसम में एक सच्चा किस्सा जान लीजिए और हंसिए जी भर के, लेकिन सबक याद रखिए कि कुछ भी खरीदारी करने जाएं बिल जरूर लीजिए। महीनों से हम जिस दूधिये से दूध लगाए हुए थे, उसे ख्0 रु. लीटर के भाव से भुगतान कर रहे थे। कुछ हमारा विश्वास और कुछ उसका मुस्कुराता चेहरा, लिहाजा हर बार बिना बिल के ही भुगतान करते रहे। अभी जब बाइक के बदले पिकअप टेंपो से खुद मालिक जसविंदर दूध बांटने आने लगा तो हमने शिकायत की, अपनी व्यवस्था सुधार ली, कुछ दूध की क्वालिटी भी सुधारिए। उनका जवाब सुनने के बाद हमारी हालत ऐसी थी कि दूध के बर्तन में कूदकर आत्महत्या कर लें। जवाब था कि ये जो दूध आप रोज लेते रहे हैं क्म् रु. लीटर का है। आप ख्0 रु. लीटर का पेमेंट करते रहे तो बिल दिखाइए! मेरे यहां से तो आपके नाम बिल पेटे क्म् रु. भाव से ही पैसा जमा हुआ है। अब हमारी शर्म से पानी-पानी होने जैसी स्थिति थी जब पड़ोसियों ने बताया हम तो क्म् रु. के भाव से ही बिल चुकाते हैं, तो हमें सीख मिली है कि जहां तक संभव हो बिल लेना ही चाहिए। हमारा यह मूखü दिवस भी मना अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के दिन। इस ठोकर खाने के बाद यह भी समझ आया कि महिलाएं कोई भी सामान खरीदने से पहले दस बार मोल भाव क्यों करती हैं। जाहिर है आपको हमारी मूखüता पर हंसी आई ही होगी। दिल खोलकर हंसिए क्योंकि जितना ज्यादा हंसेंगे और हंसाएंगे स्वास्थ्य बेहतर रहेगा और आपको डाक्टर का कम से कम बिल चुकाना पड़ेगा।
अगले हपते फैरूं, खमा घणी-सा...

Tuesday 17 March 2009

आपने नाम भी लिखा या नहीं बधाई के एसएमएस में

इस बार होली पर आप सब की तरह मुझे भी बधाई के सैकड़ों एसएमएस मिले। आप सभी ने इन संदेशों में दो बातें गौर की होंगी, एक तो ज्यादातर में पानी बचाने की भावना भी शब्दों से बयां हो रही थी और दूसरी बात थी एसएमएस भेजने वाले ज्यादातर मित्र अपना नाम लिखना भूल गए थे। कई मैसेज की भाषा एक समान थी यानी जो मुझे मिला, मैंने वहीएसएमएस अन्य को फारवर्ड कर दिया। क्या मोबाइल के का हम पर इतना हुक्म चलने लगा है कि अपनी भावना शब्दों में व्यक्त करना भी भूल गए। संता-बंता डॉट कॉम के जोक्स पर तो किसी का अधिकार नहीं हो सकता, लेकिन आप अपना एसएमएस तो तैयार कर ही सकते हैं। आप लिखने की आदत तो डालिए, कुछ अच्छा ही लिखेंगे। एसएमएस ने चिट्ठी लिखने की आदत तो खत्म कर दी है, लेकिन साल भर में कुछ ही तो मौके आते हैं जब आप को एसएमएस का धर्म निभाना पड़ता है। चिट्ठी की तरह संदेश में कुछ मौलिकता होगी तो वह ज्यादा असरकारी साबित होगा। तो तय रहा कि आप भी अपनों को खुद का सोचा एसएमएस तो भेजेंगे ही, नीचे अपना नाम लिखना भी नहीं भूलेंगे। यह इसलिए भी जरूरी है कि मोबाइल की मैमोरी ने हम सब की मैमोरी इतनी कमजोर कर दी है कि जिन लोगों के साथ रोज उठते-बैठते हैं उनके भी मोबाइल नंबर याद नहीं रहते फिर सैकड़ों एसएमएस में कैसे संभव है कि बिना नाम वाला आपका संदेश याद रहेगा ही। बाद में आपको अपने मित्रों, रिश्तेदारों का उलाहना भी सुनना पड़ेगा हमारे एसएमएस का जवाब तक नहीं दिया।
क्या है यहां घूमने के लिए
गंगानगर को पर्यटन नक्शे पर स्थान दिलाने के लिए प्रशासन को भी जिद करना ही चाहिए। आज भी इस शहर की पहचान के नाम पर किन्नू और बॉर्डर का ही जिक्र किया जा सकता है। बिहाणी कालेज के डायरेक्टर रह चुके वीके मिश्रा जैसे सैकड़ों परिवार इस शहर से प्यार की खातिर यहां बस गए हैं लेकिन इन सब का यह दर्द शहर के प्रति अपनापन भी जाहिर करता है कि यहां ऐसा कुछ है ही नहीं कि घूमने के लिए रिश्तेदारों को निमंत्रित करें। कोई आ भी जाए तो जगदंबा अंध विद्यालय-मंदिर दिखाने कितनी बार ले जाएं। यहां से लोकसभा, विधानसभा में जीत कर जाने वालों के लिए शहर के लोगों का यह दर्द चुल्लूभर पानी में जलसमाधि लेने जैसा माना जाना चाहिए। शहर की व्यवस्थित बसाहट, गंगनहर लाने का श्रेय तो महाराजा गंगासिंह के खाते में दर्ज है बाकी विधायक-सांसद ने क्या निहाल कर दिया और अब चुनाव लड़ने के सपने देखने वाले क्या बेलबूटे लगा देंगे। शासन की योजनाओं का सफल क्रियान्वयन तो जिला प्रशासन को इसलिए कराना ही है कि सीएम की नजर में वे असफल न दिखें। शहर के कायाकल्प के बारे में सोचना ही चाहिए गंगानगर क्लब, गंगानगर ट्रैडर्स एसोसिएशन जैसे संपन्न संगठनों की कमान युवाओं के हाथ में है। संस्थाओं, संगठनों की जनभागीदारी से कुछ काम ऐसे भी हों कि लोग यहां घूमने आएं और शहर की अच्छी छवि लेकर जाएं।
राहत मिली होगी जनवादी नेत्री को
जनवादी नेत्री दुगाü स्वामी को तो पुलिस का आभार व्यक्त करना चाहिए कि पुलिस ने पर्स लूटने वालों को पकड़ तो लिया। वरना बढ़ते अपराधों के खिलाफ उन्हें पुलिस के खिलाफ मोचेü का नेतृत्व भी करना पड़ता। निश्चित ही पुलिस उन बदमाशों से पूछ रही होगी कि पर्स में दुखियारी महिलाओं के ज्ञापन-आवेदन के अलावा क्या था। इन गुंडों को पकड़ने की खुशी मनाने से पहले पुलिस प्रशासन परचुन दुकान संचालक अशोक गुप्ता वाली फाइल भी पलट ले, चार आरोपी आज तक नहीं पकड़े जा सके हैं।
पुलिस को तो आपकी ही फिक्र है
हनुमानगढ़ में गांधीगिरी के बाद अब पुलिस प्रशासन को हेलमेट के फायदे के लिए मनुहार गीत गाने पड़ रहे हैं। कितना अजीब है लोगों की चिंता पुलिस कर रही है। हेलमेट को जो लोग मुसीबत मानते हैं जरा जयपुर, दिल्ली, मुंबई की सड़कों पर बिना हेलमेट तो गाड़ी चलाकर देखें। जयपुर की सीमा में प्रवेश करते ही हेलमेट, सीट बेल्ट का पालन मन से ही करने लग जाते हैं। क्या माना जाए वहां की पुलिस मजबूत है या लोग ज्यादा समझदार हैं। दूध में मिलावट, असली के नाम पर नकली घी का कारोबार हनुमानगढ़ में खूब फल-फूल रहा है, नोहर के बाद संगरिया में कारüवाई से मिलावट के खेल को समझा जा सकता है। नकली घी की बरामदगी यह भी दशाüती है कि मिलावट करने वालों के खिलाफ प्रशासनिक सख्ती की दोनों जिलों में जरूरत है। पता नहीं जिला प्रशासन द्वारा प्रति सोमवार की जाने वाली समीक्षा बैठकों में शाहरुख खान की फिल्मों पर चर्चा होती है या बालिका वधु के अगले एपिसोड का अनुमान लगाया जाता है।
कुछ तो अच्छा किया शुभम ने
बात जिद और जीत की ही चली है तो संगरिया के शुभम ने अपने दोस्त दिवांशु की जान बचाकर बता दिया है कि अच्छी सोच के लिए उम्र में बड़ा होना जरूरी नहीं है। दिल और दिमाग सही दिशा में सोचें तो 13 वर्ष की उम्र में शुभम ने जिस तरह अपने परिवार-शहर का नाम रोशन किया बाकी बच्चे भी कुछ न कुछ अच्छा करने की शुरूआत कर सकते हैं।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...

Wednesday 4 March 2009

आइए, अभिभावक वाला नजरिया अपनाएं

इन दिनों बच्चे परीक्षा और अभिभावक अग्नि परीक्षा दे रहे हैं। बच्चों को समय से खिलाना-सुलाना, बच्चों से पहले उठना, उन्हें मनाना-उठाना, दूध-नाश्ते की चिंता, इस सबके बावजूद परीक्षा के तनाव से गुजर रहे बच्चों की çझड़कियां, बात-बात पर नाराजगी फिर भी अभिभावक हमेशा बच्चों का भला ही सोचते हैं। कुछ ऐसी ही भावना समाजों, संगठन पदाधिकारी और शासकीय विभागों के प्रमुखों में नजर आने लगे तो आधे से ज्यादा परेशानियां तो पलक झपकते ही दूर हो जाएंगी। जिला एवं सत्र न्यायाधीश उमेशचंद्र शर्मा ने तो अभिभाषकों के बीच अपना यह अभिभावक वाला दायित्व उजागर भी कर दिया। निधन, आंदोलन, समर्थन आदि मुद्दों पर आए दिन वर्क सस्पेंड के निर्णय से अदालतों के चक्कर लगाने वाले हजारों मुवçक्कलों के अभिभावक तो न्यायमूर्ति शर्मा ही हैं। एक साथी के निधन पर वर्क सस्पेंड के निर्णय की जानकारी देने पहुंचे अभिभाषक संघ के पदाधिकारियों को डीजे ने अभिभावक के इसी दायित्व से ही सीख दी है कि वर्क सस्पेंड से पहले अदालत से आस लगाए लोगों के दर्द को भी समçझए। गंगानगर की तरह हनुमानगढ़ के अभिभाषक संघ ने भी संकल्प तो यही लिया है कि न्यूनतम वर्क सस्पेंड करेंगे। सदस्यों की भावना और संघ के विधान का पालन करना पदाधिकारियों की मजबूरी हो सकती है, लेकिन भारतीय संविधान में भी तो संशोधन होते रहे हैं। वर्क सस्पेंड करना ही पड़े तो भोजन अवकाश के बाद आधे दिन के लिए भी तो किया जा सकता है। खैर, अभिभाषकों ने डीजे की सीख पर जिस गंभीरता से गर्दन हिलाई उससे तो मुवçक्कलों को यही विश्वास करना चाहिए कि बात समझ आ गई है।
आबियाना वसूली का कोई हल निकले
इन दोनों जिलों के किसानों-पटवारियों को भी सरकार से ऐसे ही अभिभावक होने की अपेक्षा है। लोकसभा चुनाव के चलते तो पटवारियों की मांग पूरी होते नहीं दिखती लेकिन किसानों से आबियाना वसूली हो या पटवारियों पर बढ़ता कार्यबोझ सरकार को दोनों के साथ न्याय करना ही चाहिए। 2002 में पटवारियों को सिंचाई विभाग से हटाया सरकार ने, आबियाना वसूली रुक गई तो किसानों की क्या गलती। अब पटवारी कम हैं, सरकार चाहती है कि जितने पटवारी हैं किसानों से एक दशक की वसूली एक मुश्त करें। पटवारी और किसानों के बीच संघर्ष की स्थिति बन गई है। एकमुश्त वसूली वह भी ब्याज के साथ। प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहे किसानों को समझ नहीं आ रहा, कहां से लाएं इतना रुपया। आचार संहिता लग गई इसलिए यह संभावना भी नहीं कि सरकार पिछला बकाया माफ कर चालू वर्ष के आबियाना वसूली जैसी कोई घोषणा कर दे।
ये हुआ ना सेवा का सम्मान
आरसीए चुनाव के परिणाम हमारे दोनों जिलों में क्रिकेट गतिविधियों और युवा खिलाडि़यों को बेहतर अवसर की उम्मीद वाले ही रहे हैं। हनुमानगढ़ के नवेंदु त्यागी का संयुक्त सचिव पद पर निर्वाचित होना इस खेल के विकास में उनके समर्पण का सम्मान तो है ही। यह भी सीख देता है कि किया हुआ व्यर्थ नहीं जाता। त्यागी ने अच्छा किया तो फल भी अच्छा मिला। अब राजस्थान में क्रिकेट की राजनीति में दखल रखने वाले ही बता सकते हैं कि किया तो ललित मोदी ने भी बहुत कुछ था फिर व्यर्थ क्यों गया! दोनों जिलों के खिलाडि़यों के लिए त्यागी का निर्वाचित होना इसलिए भी सुखद है कि उनके साथ अन्याय नहीं होगा और ऐसी नौबत आई भी तो कार्यकारिणी में आवाज उठाने वाला एक पदाधिकारी है तो सही।
आप तिलक लगाएंगे ना!
इस बार की होली को आप भी जल प्रहरी के रूप में यादगार बना सकते हैं। होली पर रंगों से सराबोर ही हों यह जरूरी तो नहीं अच्छा यह होगा कि बस तिलक लगाएं और होली मनाएं। ठीक है कि दोनों जिलों में पानी का संकट नहीं है, लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं कि सिर्फ इसी कारण पानी की फिजूलखर्ची की जाए। आप का एक तिलक बाकी को भी प्रेरणा देगा। हम सबके संकल्पों से ही जल सत्याग्रह कामयाब होगा।
करने को बहुत कुछ है पुलिस के लिए
शहर में बिगडै़ल युवाओं के हुड़दंग की घटनाएं न तो रुक रही हैं और न ही पुलिस का कोई एक्शन नजर आ रहा है। परिवार के साथ होटल में जाने से पहले यह भी देख लें कि आसपास की टेबल पर उस किस्म के युवा तो नहीं बैठे हैं जिनके दिए जख्म अशोक गुप्ता परिवार वर्षों तक नहीं भूल पाएगा। पुलिस करना चाहे तो कॉलोनियों में चल रहे होस्टल में रहने वाले छात्रों का, किराएदारों का रिकार्ड तैयार करा सकती है। करना चाहे तो स्टेशन, बस स्टैंड की होटलों पर पीने-पिलाने की अघोषित सुविधा पर अंकुश लगा सकती है, इससे कुछ तो कमी आएगी, अपराधों में।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...

Monday 2 March 2009

शहर में खौफ पुलिस का रहेगा या गुंडों का

रात 8 बजे शराब की दुकानें बंद हो जाती हैं, लेकिन शराब पीकर हुड़दंग और परिवार के साथ मारपीट करने वाले शराबी युवकों का तांडव रात 11 बजे गोल बाजार की मुख्य सड़क पर चलता है। पुलिस हर व्यक्ति की पहरेदारी तो नहीं कर सकती, लेकिन इस छोटे से शहर के मुख्य बाजार में ऐसा तांडव विभाग की उदासीनता को तो उजागर करता ही है। परचून की दुकान चलाने वाले अशोक गुप्ता के साथ जो हुआ फिर किसी परिवार के साथ ऐसा न होगा, इसकी गारंटी भी यदि पुलिस प्रशासन इस शहर को नहीं दे पाए तो फिर लोगों को ऐसी पुलिस के भरोसे रहना भी नहीं चाहिए। जिस तरह रोज कोई न कोई घटना हो रही है। उससे तो यही लगने लगा है कि पुलिस नाम की दहशत गुंडा तत्वों के दिलो दिमाग से खत्म हो चुकी है। अब तक जो युवक पकड़े गए हैं, उनमें से कुछ ने एक दिन पहले ही पटवारी परीक्षा दी है, यानी उन्हें अपने भविष्य की तो फिक्र है, लेकिन शराब पीकर हुड़दंग मचाते वक्त तो परिवार के बुजुगोZ से मिले संस्कार भी उसी गिलास से गटक गए। जैसे घायल हुए गुप्ता के बच्चे चिंतित हैं, वैसे ही इन बिगडैल युवकों के परिजन भी अपना नाम मिट्टी में मिलने से शर्मसार होंगे ही। घर से ट्यूशन पर जाने, परीक्षा देने का कहकर निकले बच्चों पर जब अंकुश न रहे तो ऐसे बिगड़ैल चौराहे-चौराहे मिल सकते हैं। कॉलोनियों में लोगों की नींद हराम करने वाले भी ऐसे ही बिगड़ैल होते हैं और बदनाम होते हैं सारे स्टूडेंट।अब जबकि परीक्षा चल रही है तो पढ़ने-लिखने वाले बच्चों को तो ऐसे हुड़दंग की फुरसत है नहीं। पुलिस को गली-मोहल्लों में गश्त करने, बिगडैल युवकों के खिलाफ सख्त अभियान के लिए शायद किसी ऐसी ही घटना का इंतजार था। यदि अब भी पुलिस हिम्मत नहीं जुटाए तो पीडि़त परिवार फिर थाने ही पहुंचेंगे पुलिस महकमे की नाजुक कलाइयों का नाप लेने के लिए।

दोनों जिलों के विकास की सोच रखें कुन्नर

फिलहाल तो श्रीगंगानगर की खुशी में ही हनुमानगढ़ को भी खुशी मना लेनी चाहिए और यह उम्मीद भी नहीं छोड़नी चाहिए कि भविष्य के मंत्रिमंडल विस्तार में प्रतिनिधित्व मिलेगा। करणपुर से निर्दलीय विधायक गुरमीतसिंह कुन्नर को मंत्रिमंडल में शामिल कर मुख्यमंत्री ने बिना शर्त दिए समर्थन का पुरस्कार जातिगत वोट और लोकसभा चुनाव में अपनी इमेज बेहतर बनाने के उद्देश्य से ही दिया है। खुशी इस बात की है कि हमारे जिले को प्रतिनिधित्व मिला तो सही। नवनियुक्त मंत्री और सलाहकारों को भी यह बात समझ आ जानी चाहिए कि श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों के लोगों की भी उनसे उतनी ही अपेक्षाएं हैं, जितनी कि करणपुर के मतदाताओं की। अच्छा तो यह होगा कि कुन्नर को दोनों जिलों की प्रमुख योजनाओं का डेवलपमेंट प्लान सौंपा जाए और शहर हित को प्राथमिकता देने वाले प्रबुद्धजनों के विचार मंच इन योजनाओं को निर्धारित अवधि में पूरा कराने की कमान संभालें।हनुमानगढ़ को प्रतिनिधित्व आज नहीं तो कल मिलेगा ही, हमारी सोच सकारात्मक होनी चाहिए। डॉ. परमनवदीप को विधानसभा अध्यक्ष वाले पांच नामों के पैनल में शामिल करना डॉ. परम के लिए उपलçब्ध हो सकती है लेकिन जिले में उत्सवी माहौल जैसा कुछ नहीं है। अभी आईजीएनपी अध्यक्ष की कुर्सी खाली है, नहरी पानी दोनों जिलों के लिए जीवनमरण का मुद्दा रहता है, ऐसे में राज्यमंत्री के दर्जेवाले इस पद का कद भी कम नहीं है।फिर भी लोगों को यह जानने-पूछने का अधिकार तो है ही कि जब एक जिले से निर्दलीय की पूछपरख हो सकती है तो इस जिले से जीते निर्दलीय में क्या कमी नजर आई। यह वही हनुमानगढ़ है जब मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने पार्टी के डॉ. रामप्रताप के साथ ही तीन निर्दलियों गुरजंटसिंह, शशि दत्ता व ज्ञानसिंह चौधरी को लालबत्ती के गंडे ताबीज बांधकर अपनी सरकार को मजबूत दिखाया था। जब गहलोत इससे पहले मुख्यमंत्री थे तब राधेश्याम गंगानगर और हीरालाल इंदौरा को अवसर दिया, तब तो हनुमानगढ़ से केसी बिश्नोई को शामिल भी कर लिया था, लेकिन आज यह जिला बेहाल जैसा ही है। इस एक दशक में लोग वोट के साथ ही अधिकारों के लिए भी लड़ना जान गए हैं। हनुमानगढ़ को उसके हक से वंचित करने का नतीजा कहीं यह सामने न आए कि लोकसभा चुनाव में यहां के लोग चोट कर दें।

आवारा सांड हो या संतान सख्ती दोनों पर जरूरी

चाहे संतान हो सांड जब उसमें आवारा के लक्षण आने लगे तो फिर वह कॉलोनी-गांव के लिए सिरदर्द बन जाते हैं। शहर में सुबह से रात तक कॉलोनियों में कलाबाजी दिखानेवाले बिगड़ैल बाइकर्स से लोग उतने ही परेशान हैं जितने गांवों के लोग आवारा पशुओं से। शहर में हाल की घटनाओं के कारण ये बाइकर्स रहे हैं। नित नई फरमाइश पूरी होने से बिगड़ने वालों बच्चों के बारे में पैरेंट्स को बहुत देर से पता चलता है कि वे उनकी ममता व भरोसे को कैसे किक मारते रहे। आवारा मवेशियों से राहत के लिए तो नगरपरिषद ने अभियान शुरू कर दिया है। बिगड़ैल बाइकर्स के खिलाफ भी प्रशासन को ऐसा कुछ करना चाहिए कि कॉलोनियों के लोगों को राहत तो मिले ही, कोचिंग सेंटर पर वाकई पढ़ाई के लिए जाने वाले स्टूडेंट्स परेशान भी न हों। गल्र्स कॉलेज-स्कूल, कोचिंग सेंटर के आसपास दोपहर से शाम तक मंडराने वाले बिगड़ैल युवाओं को आसपास के रहवासी तो मवाली ही मानते हैं, जो नहीं जानते वे उन्हें कोचिंग सेंटर पर आए स्टूडेंट समझ लेते हैं, यानी बेवजह सेंटर भी बदनाम हो जाते हैं। लगभग सभी कॉलोनियों में कोचिंग सेंटर चल रहे हैं, अच्छा तो यही होगा कि बिगड़ैल बाइकर्स पर नकेल के लिए पुलिस प्रशासन सारे कोचिंग संचालकों, आसपास के प्रमुख नागारिकों की संयुक्त बैठक बुलाए, परेशानी समझे, सुझाव मांगे, अपना एक्शन प्लान बताए और सख्ती से अभियान भी चलाए। जिन घरों में जवान होती बेटियां हैं, उन परिवारों के मुखिया तो ऐसी मीटिंग में भी परेशानी बताने से हिचकेंगे ही। लेकिन ऐसे परिवारों को राहत और सूने रास्तों पर चेन झपटने, पर्स छीनने जैसी घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए पुलिस प्रशासन को तो अभियान चलाने से नहीं हिचकना चाहिए। जवानी के जोश और मौत को चुनौती देती स्पीड में बाइक दौड़ाने वाले बिगड़ैल युवा मां-बाप का नाम मिट्टी में मिलाने का काम भी कर रहे हैं। गांव-शहर में परेशानी बढ़ाने वाले आवारा ढोरों जैसी सख्ती इन पर इसलिए जरूरी है क्योंकि इन बिगड़ैल बाइकर्स को नहीं पता कि यही स्पीड कभी उनके पैरेंट्स को भी खून के आंसू रुला सकती है।
kirti_r@raj.bद्धaskarnet.com

Sunday 1 March 2009

जनभागीदारी से कुछ तो सुधरेगी शहर की सूरत

आवारा पशुओं पर नियंत्रण के मामले में दोनों जिलों में सतत सख्त अभियान जारी नहीं रहे तो संगरिया में गत दिनों हुई एक किशोर की मौत जैसी घटनाएं भी रुकने वाली नहीं हैं। जिन कार्यक्रमों, योजनाओं का लाभ सीधे आम जनता को मिलता है ऐसे अभियान को सफलता तभी मिल सकती है जब उसमें जनभागीदारी हो। चौराहों का विकास, पालिथीन मुक्त शहर, चकाचक सफाई, सरकारी अस्पतालों में बेहतर व्यवस्था, बिजली बचत जैसे सार्थक कायोZ में सारी कमान क्षेत्र के प्रमुख औद्योगिक व्यापारिक-सामाजिक संगठनों को सौंपकर जिला प्रशासन या नगर परिषद की भूमिका सहयोग वाली ही होनी चाहिए। आवारा पशुओं से मुक्ति मिलना कोई चुनौतीपूर्ण भी नहीं है, बस संकल्पशक्ति चाहिए और वह कैसे प्राप्त करें इसे नगरपरिषद के तत्कालीन अध्यक्ष जगदीश जांदू बता सकते हैं। आज गंगानगर पिग प्रॉब्लम (सूअर समस्या) से कुछ राहत महसूस कर रहा है तो यह उस वक्त सतत चलाए अभियान का ही नतीजा है।
सोचना होगा विद्युत शवदाह गृह के लिए
अभियान तो हरियाली बचाने के लिए भी चलाना ही चाहिए, दोनों जिलों में पानी का तो संकट नहीं है, लेकिन हरियाली की कमी है। नए पौधे लगाने के साथ ही लगे हुए पेड़ बचाना भी जरूरी है। महानगरों जैसी चकाचौंध का सपना देखने वाले दोनों जिलों में विद्युत शवदाह गृह के बारे में भी सोच विकसित होनी चाहिए। प्रदूषण कम करने, पेड़ बचाने के लिए ऐसे शवदाहगृह होने ही चाहिए। मृत्यु पश्चात देहदान के मामले में गंगानगर का नाम हो रहा है तो प्रमुख समाजों को भविष्य के हरियाले गंगानगर की खातिर विद्युत शवदाहगृह की दिशा में आदर्श स्थापित करना चाहिए।
पानी में बहा पानी का वादा
फसलों को पर्याप्त पानी के लिए सात फरवरी को उच्चस्तर पर समझौता तो यह हुआ था कि एक सप्ताह के अंतर से पानी देते रहेंगे। लगता तो यह है कि समझौते के कागज ही पानी में बहा दिए गए। यही कारण है कि क्षेत्र के किसानों को आंदोलन की राह पकड़ना पड़ी है। दोनों जिलों के किसानों से की जा रही यह वादाखिलाफी सरकार को कितनी भारी पड़ेगी, यह बात मुख्यमंत्री को जिला प्रशासन के अधिकारी कब बताएंगे।
रोड पर अरोड़ा
कुर्सी की लड़ाई ने एक अच्छे भले समाज को सड़क पर खड़ा कर दिया है। अरोड़वंश समाज में जो कुछ चल रहा है उससे बुजुर्ग तबका तो कतई खुश नहीं है। इससे बाकी समाजों को भी यह सबक लेना ही चाहिए कि समाज के पदाधिकारी जब राजनेताओं के साथ ज्यादा उठने-बैठने लग जाते हैं तब खुद समाज में उठापटक की राजनीति शुरू हो जाती है। समाज के कंधों पर चढ़कर राजनीति की ऊचाइयां छूने का सपना देखने वाले लोग ही जब अपने अहं की संतुष्टि के लिए विघ्न संतोषियों को हवा देने लगें तो अरोड़वंश ही क्यों किसी भी समाज को ऐसे बुरे दिन देखने ही पडें़गे।
और खूबसूरत होगा बार्डर
अटारी (अमृतसर) बार्डर की तरह हिंदूमलकोट बार्डर भी अब आकर्षण का केंद्र बनेगा! गंगानगर के रहवासी अन्य शहरों के अपने रिश्तेदारों को अब यह तो कह ही सकेंगे कि हमारे यहां देखने लायक एक-दो स्थान तो हैं ही। हिंदूमलकोट बार्डर हो या क्यूहैड बार्डर इनके सौंदयीüकरण में पड़ोसी मुल्क (पाकिस्तान) की गरीबी आडे़ आ रही है। हमारी सरकार तो इन दोनों स्थानों के विकास के लिए भरपूर धनराशि भी दे लेकिन उधर बार्डर का रूप भी तो निखरे! वहां बाकी जरूरतों के लिए पैसे का संकट है तो बार्डर डवलपमेंट के लिए पैसा स्वीकृत करना बहुत बड़ी समस्या जैसा ही है।
सीमा से परे मानवता
बिगबास और शिल्पा शेट्टी पर टिप्पणियों से चर्चा में आई जेड गुडी को यह तो पता नहीं होगा कि भारत में श्रीगंगानगर, जैसलमेर कहां है किंतु कैंसर से संघर्ष कर रही गुड़ी की बीमारी से हंसराज भवानिया भी विचलित हैं। श्रीगंगानगर निवासी और जैसलमेर में जेईएन (विद्युत विभाग) पदस्थ भवानिया ने कहीं से नंबर तलाश कर मुझे सुबह-सुबह फोन किया। उनके स्वर में मानवीयता झलक रही थी और आग्रह था कि किसी तरह जेड गुडी को यह संदेश पहुंचाएं कि बांसवाड़ा के समीप कल्लाजी के सिद्ध स्थान पर जाएं तो उन्हें राहत मिल सकती है। बीमारी से राहत मिलेगी या नहीं ? अंग्रेजों का भारतीय संस्कारों, आस्था, श्रद्धा में कितना विश्वास होता है ? इन सब बातों से कही ज्यादा यह सच है कि हमें संस्कारों में मिली मानवीयता मरी नहीं है।