पचमेल...यानि विविध... जान-पहचान का अड्डा...पर आपका बहुत-बहुत स्वागत है.

Thursday 2 April 2009

कम लोगों को क्यों आते हैं ऐसे याल

मन तो सभी का करता है रूढ़ियों को तोड़ने, अच्छाइयों को अपनाने का लेकिन साहस कितने लोग जुटा पाते हैं। किसी के कदम समाज क्या कहेगा के भय से नहीं उठ पाते तो किसी को जग हंसाई की चिंता सताने लगती है। और फिर राजस्थान तो वैसे ही रूढ़ियों के जंजाल मेंे उलझा माना जाता है ऐसे में यदि याली सहारण अपने पिता के तेरहवें पर हास्य कवि समेलन कराए, राजस्थानी भाषा आंदोलन से जुड़े भाषा के सपूतों का समान करे तो ऐसे विचारों की दिल खोलकर सराहना की ही जानी चाहिए।
सोचने की शçक्त सिर्फ इंसानों को ही मिली हुई है। यह गॉड गिट पशुओं को मिली होती तो इंसान-पशु में फर्क ही नहीं होता। यह बात अलग है कि अच्छा-बुरा सोचने वाला इंसान कई बार पशु से भी बदतर नजर आता है।
टीवी और फिल्मी पर्दे पर राजस्थान का नाम रोशन करने वाले याली सहारण के लिए बहुत आसान था कि चौधरी दौलतराम सहारण के नाम से प्रतिमा लगा देते या दस-बीस हजार लोगों को भोज करा के गांव में नाम कमा लेते लेकिन लीक से हटकर न चले तो कलाकार ही क्या। मृत्युभोज के बदले उन्होंने फ्क् मार्च को अपने गांव क्त्त् एसपीडी में विनोद स्वामी और रामदास बरवाळी को समानित करने के साथ ही हास्य कवि समेलन कराने का फैसला किया है, जो बाकी लोगों को भी कुछ अनूठा करने और सोचने की प्रेरणा भी देता है। जब यह पता ही है कि जो आया है उसे देर सबेर जाना ही है तो फिर दुख कैसा और कितने दिन का? हर परिवार में पूजाघर और ईष्टदेव के साथ गीता, सहित बाकी धर्मग्रंथ भी हैं, लेकिन हमने इन ग्रंथों को लाल कपड़े में बांधकर उस पर चंदन-कुमकुम के टीले बना दिए हैं। याली ने जो सोचा है नया कुछ नहीं है गीता जो कहती है, ओशो ने जो कहा और आर्ट आफ लिविंग के प्रणेता श्रीश्री रविशंकर सहित बाकी धर्मगुरु भी यही कहते हैं दुज्ख में भी मुस्कुराना सीखो। याली खुद तो हंसाते ही हैं बाकी को भी ऐसे ही दुज्खों में मुस्कुराने का नुस्खा बता दिया है।
अब पुलिस से हमददीü
वैसे भी आज जब दुनिया का रिवाज मुंह पर तारीफ और पीठ फेरते ही निंदा गान वाला हो ऐसे में मुंह पर आलोचना तो कोई कैसे सुनना पसंद करेगा भले ही बात सच्ची क्यों न हो। भादरा में स्कूली छात्रा कृष्णा जोगी के हत्यारों की खोज में अंधेरे में हाथ-पैर मार रही पुलिस से किसे हमददीü नहीं होगी। लेकिन मृतका के परिजन भी जब पुलिस से विश्वास उठने की बात कहें तो ऐसी आलोचना पर नाक-भौं सिकोड़ने वाले पुलिस अमले को यह भी तो सोचना चाहिए कि विश्वास का दरिया सूखकर धधकती खाई में क्यों और कैसे बदल गया। बात विश्वास की ही चली है तो हनुमानगढ़ से लेकर गंगानगर तक अभिभाषक भी सड़कों पर उतर आए हैं, जो कानून के रखवाले कहाएं वे ही अंगुली उठाने लगे तो बाकी समाज के आंसू कौन पोछेगा। पुलिस ने प्रकरण सच्चा दर्ज किया या झूठ का पुलिंदा है, यह साबित तो न्यायालय में ही होगा जो कानून दूध का दूध, पानी का पानी करता है कानून की उसी किताब ने पुलिस को भी तो कुछ अधिकार दिए हैं। धोखाधड़ी के कथित आरोपी विनोद एरन सही है या व्यापारी गलत, पुलिस ने मनमानी की या नहीं यह फैसला तो न्यायालय भी बहस, दस्तावेज, प्रमाण के बाद ही करेगा ना। फिर जिले के बाकी लोग क्यों परेशान हों, वर्क सस्पेंड से
आग ठंडी ही रहे सूरतगढ़ में
बेमतलब भड़कने वाली आग को कम से कम सूरतगढ़ पर तो रहम ही करना चाहिए क्योंकि प्रशासन की बेरहमी के कारण यहां अçग्नशमन वाहन जैसी सुविधा छीन ली गई है। यहां वाहन था लेकिन दो साल से श्रीगंगानगर में उपयोग हो रहा है और पालिका का वाहन खराब पड़ा हुआ है। अभी इस कस्बे में भी शीतला अष्टमी का पर्व मनाया गया है। जाहिर है सभी समाजों ने यही प्रार्थना की होगी कि हमारे कस्बे में आग ठंडी ही रखना।
अब फैसला आपको करना है
लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी घोषित हो गए हैं इधर भी मेघवाल है और उधर भी मेघवाल है। दोनों में कौन कितना खरा और कितना खोटा है इसका फैसला आपको करना है और सही फैसला नहीं हुआ तो पांच साल आपको ही भुगतना है। इस फैसले के बाद सो मत जाना, क्योंकि फिर परिषद और पालिका के चुनाव आ रहे हैं। तब तो और ज्यादा सोच-समझकर मोहर लगाना। एक बार जिले की समस्या दूर न हुई तो चल जाएगा। क्योंकि आपका वास्ता तो आपके वार्ड से पड़ता है।
ऐसे में थोड़ी सी भी लापरवाही या लालच पूरे वार्ड के लिए भारी पड़ सकता है।
अगले हपते फैरूं, खमा घणी-सा...

No comments:

Post a Comment