पलक झपकते वक्त कैसे गुजर जाता है, यह हम रोज देखते तो हैं लेकिन ज्यादातर लोग पंख लगाकर उड़ते वक्त को 31 दिसंबर की रात मनाए जाने वाले जश्न के दौरान ही समझ पाते हैं। एक पल पहले 09 और पल भर बाद ही 2010 का जन्म हो जाता है। वक्त को तो अपनी अहमियत पता है लेकिन हम में से ज्यादातर लोगों को वक्त का महत्व पता नहीं है या पता है, तब भी कल पर टालते जाते हैं। नदी की कलकल तो फिर भी हमें सुकून देती है, लेकिन वक्त के प्रति यह कल कल का खेल हमें जिंदगी की रेस में हार का मुंह दिखा सकता है, यह हम समझना ही नहीं चाहते।
नए साल के आगमन के साथ ही आकर्षक कैलेंडर, खूबसूरत डायरियों के आदान-प्रदान का सिलसिला चल पड़ता है। उपहार में मिली डायरियों में कुछ तो इतनी सुंदर होती हैं कि लिखने की इच्छा नहीं होती, वैसे भी डायरी में हम नाम, पता, ब्लड ग्रुप आदि लिखने में तो तत्परता दिखाते हैं लेकिन वैसा उत्साह फिर हर रोज नजर नहीं आता। जनवरी बीतते-बीतते तो याद भी नहीं रहता कि हमने नए साल में क्या-क्या संकल्प लिए थे। 09 की डायरी को विदा करने से पहले उस पर आखिरी नजर डालेंगे तो पाएंगे लगभग पूरी डायरी खाली पड़ी है। आपने कुछ नहीं लिखा तो क्या फरवरी, मार्च आपके लिए रुके रहे? हम न जागे, तब भी सूरज समय पर जाग कर अपनी ड्यूटी पूरी करता है। हम खड़े रहें तब भी वक्त तो चलता ही रहता है। कल के लिए हमने जो सोचा है, उसे अपनी डायरी में आज ही लिख लें और उस लिखे हुए पर रोज नजर डालने की आदत भी डाल लें तो हमें साल बीत जाने का ज्यादा अफसोस नहीं होगा।
अब जब नए साल में जरूरी काम निपटाने की प्लानिंग बनाएंगे तो बीते साल में लिए संकल्प के बाद भी जो काम नहीं कर पाए, वे सब विक्रम-बेताल की कहानी की तरह हम से जवाब मांग रहे होंगे। ऐसे वक्त ही हमें अहसास होता है कि कल पर टाले जाने वाले काम हमें कितने भारी पड़ जाते हैं। गैस पर रखा दूध उफने, उससे पहले ही हम गैस बंद कर देते हैं, उस वक्त कल कर देंगे सोचना काम नहीं आता। टेलीफोन व बिजली आदि के बिल, बैंक से लिए लोन की किश्त, सिनेमा के टिकट आदि मामलों में हम कल का इंतजार नहीं करते। हमें पता होता है कि विलंब शुल्क, ब्याज पर पेनल्टी लगेगी और सेकंड शो वाला टिकट अगले शो में काम नहीं आएगा।
साबित यह हुआ कि हमें अभी, आज, कल और फिर कभी का फर्क तो पता है लेकिन हम आलस्य के ऐसे बीज बोते रहते हैं जिससे कल की बंजर भूमि पर परिणाम की फसल उग ही नहीं पाती। कहावत तो याद है 'काल करे सो आज कर....', लेकिन कार्यरूप में 'आज करे सो काल कर...' की शैली अपनाते हैं।
नए साल के पहले दिन ही तय कर लंे कि हमें आज क्या करना है, कल क्या करेंगे और इस साल कौनसे काम हर हालत में पूरे करने हैं। जो भी संकल्प लें यह याद रखें कि इन संकल्पों की याद दिलाने कोई नहीं आएगा। पेन आपका, डायरी आपकी, मर्जी आपकी और मन भी आपका! जो लाभ होगा, आपका ही होगा। रही नुकसान की बात तो बीते साल को याद कर लें, क्या-क्या सोचा था और क्या नहीं कर पाए। नए साल में बधाई के बदले बधाई देना तो प्रचलन है ही, अच्छा यह भी हो सकता है कि बीते साल जिन लोगों की किसी बात से हमारा मन दुखा या हमारे व्यवहार से खिन्न होकर किसी अजीज ने हमसे मुंह मोड़ लिया, उसे मनाएं। एक साल तो आपने कल-कल करते खो दिया, एक अच्छा मित्र तो न खोएं। कहा भी तो है आपका व्यवहार कैसा है, यह तब आसानी से पता चल सकता है, जब या तो आपका अजीज दोस्त आपा खो बैठे या आपके व्यवहार से प्रभावित होकर दुश्मन भी आपका दोस्त बन जाए। व्यावहारिक जीवन जीने का बड़ा आसान सा फंडा है, जैसा बोलेंगे, वैसा सुनेंगे। किसान तो जानता है कि कनक बोएगा तो सरसों की फसल नहीं ले सकता, फिर हम भी जान लें कि क्वआपं सुनने के लिए कम से कम 'तुम' तो कहना ही पड़ेगा। नए साल की डायरी में हर रोज नया संकल्प लिखने से बेहतर यह भी हो सकता है कि कोई एक संकल्प हर रोज लिखें। इससे कम से कम हमारी याददाश्त मजबूत होगी और लिखे हुए का पालन करने की कोशिश भी करेंगे।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...
नए साल के आगमन के साथ ही आकर्षक कैलेंडर, खूबसूरत डायरियों के आदान-प्रदान का सिलसिला चल पड़ता है। उपहार में मिली डायरियों में कुछ तो इतनी सुंदर होती हैं कि लिखने की इच्छा नहीं होती, वैसे भी डायरी में हम नाम, पता, ब्लड ग्रुप आदि लिखने में तो तत्परता दिखाते हैं लेकिन वैसा उत्साह फिर हर रोज नजर नहीं आता। जनवरी बीतते-बीतते तो याद भी नहीं रहता कि हमने नए साल में क्या-क्या संकल्प लिए थे। 09 की डायरी को विदा करने से पहले उस पर आखिरी नजर डालेंगे तो पाएंगे लगभग पूरी डायरी खाली पड़ी है। आपने कुछ नहीं लिखा तो क्या फरवरी, मार्च आपके लिए रुके रहे? हम न जागे, तब भी सूरज समय पर जाग कर अपनी ड्यूटी पूरी करता है। हम खड़े रहें तब भी वक्त तो चलता ही रहता है। कल के लिए हमने जो सोचा है, उसे अपनी डायरी में आज ही लिख लें और उस लिखे हुए पर रोज नजर डालने की आदत भी डाल लें तो हमें साल बीत जाने का ज्यादा अफसोस नहीं होगा।
अब जब नए साल में जरूरी काम निपटाने की प्लानिंग बनाएंगे तो बीते साल में लिए संकल्प के बाद भी जो काम नहीं कर पाए, वे सब विक्रम-बेताल की कहानी की तरह हम से जवाब मांग रहे होंगे। ऐसे वक्त ही हमें अहसास होता है कि कल पर टाले जाने वाले काम हमें कितने भारी पड़ जाते हैं। गैस पर रखा दूध उफने, उससे पहले ही हम गैस बंद कर देते हैं, उस वक्त कल कर देंगे सोचना काम नहीं आता। टेलीफोन व बिजली आदि के बिल, बैंक से लिए लोन की किश्त, सिनेमा के टिकट आदि मामलों में हम कल का इंतजार नहीं करते। हमें पता होता है कि विलंब शुल्क, ब्याज पर पेनल्टी लगेगी और सेकंड शो वाला टिकट अगले शो में काम नहीं आएगा।
साबित यह हुआ कि हमें अभी, आज, कल और फिर कभी का फर्क तो पता है लेकिन हम आलस्य के ऐसे बीज बोते रहते हैं जिससे कल की बंजर भूमि पर परिणाम की फसल उग ही नहीं पाती। कहावत तो याद है 'काल करे सो आज कर....', लेकिन कार्यरूप में 'आज करे सो काल कर...' की शैली अपनाते हैं।
नए साल के पहले दिन ही तय कर लंे कि हमें आज क्या करना है, कल क्या करेंगे और इस साल कौनसे काम हर हालत में पूरे करने हैं। जो भी संकल्प लें यह याद रखें कि इन संकल्पों की याद दिलाने कोई नहीं आएगा। पेन आपका, डायरी आपकी, मर्जी आपकी और मन भी आपका! जो लाभ होगा, आपका ही होगा। रही नुकसान की बात तो बीते साल को याद कर लें, क्या-क्या सोचा था और क्या नहीं कर पाए। नए साल में बधाई के बदले बधाई देना तो प्रचलन है ही, अच्छा यह भी हो सकता है कि बीते साल जिन लोगों की किसी बात से हमारा मन दुखा या हमारे व्यवहार से खिन्न होकर किसी अजीज ने हमसे मुंह मोड़ लिया, उसे मनाएं। एक साल तो आपने कल-कल करते खो दिया, एक अच्छा मित्र तो न खोएं। कहा भी तो है आपका व्यवहार कैसा है, यह तब आसानी से पता चल सकता है, जब या तो आपका अजीज दोस्त आपा खो बैठे या आपके व्यवहार से प्रभावित होकर दुश्मन भी आपका दोस्त बन जाए। व्यावहारिक जीवन जीने का बड़ा आसान सा फंडा है, जैसा बोलेंगे, वैसा सुनेंगे। किसान तो जानता है कि कनक बोएगा तो सरसों की फसल नहीं ले सकता, फिर हम भी जान लें कि क्वआपं सुनने के लिए कम से कम 'तुम' तो कहना ही पड़ेगा। नए साल की डायरी में हर रोज नया संकल्प लिखने से बेहतर यह भी हो सकता है कि कोई एक संकल्प हर रोज लिखें। इससे कम से कम हमारी याददाश्त मजबूत होगी और लिखे हुए का पालन करने की कोशिश भी करेंगे।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...
बहुत सुंदर बात कही आप ने हर दिन एक नये साल की शुरुआत करें सुंदर संकल्प लेकर जो समाज और अपने विकास के लिए सहयोग दे...बहुत बहुत धन्यवाद!!!
ReplyDeleteकरते हैं कोशिश!!
ReplyDeleteमुझसे किसी ने पूछा
तुम सबको टिप्पणियाँ देते रहते हो,
तुम्हें क्या मिलता है..
मैंने हंस कर कहा:
देना लेना तो व्यापार है..
जो देकर कुछ न मांगे
वो ही तो प्यार हैं.
नव वर्ष की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ.
शानदार जानदार पोस्ट
ReplyDeleteनुतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
happy new year ji.
ReplyDeletenayaa saal aapko bahut-bahut badhaai ho.
naye saal main patrakaaritaa or blog-lekhan main naye aayaam sthaapit kare, isi shubh kaamnaa ke saath =
CHANDER KUMAR SONI,
L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
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RAJASTHAN, INDIA.
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