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Thursday, 24 December 2009

पहले अपने लिए तो जीना सीख लीजिए

पुरानी फिल्म का गीत है- अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी दिल जमाने के लिए। एक हद तक तो मुझे गीत सही लगता है, लेकिन फिर इस प्रश्न का जवाब नहीं मिल पाता कि जो अपने लिए ही जीने का वक्त नहीं निकाल पाते, वे जमाने के लिए क्या जिएंगे? निश्चित ही अपने लिए जीने का मतलब घंटों टीवी के सामने बैठे रहना, दोस्तों के साथ पार्टी करना, बच्चों को होमवर्क कराना, सुबह से रात तक रसोइघर में व्यस्त रहना तो नहीं है।
दरअसल अपने लिए जीने की शुरुआत तो अब डॉक्टर के परामर्श से ही होती है। अचानक बेचैनी महसूस हो, चक्कर खाकर गिर पड़ें। परीक्षण और महंगी जांच के बाद जब डॉक्टर संतुलित आहार, मद्यपान निषेध, सलाद सेवन और नियमित मोर्निंग वॉक-योग आदि की सलाह देते हैं, तब अपने लिए जीने का क्रम शुरू होता है। ठीक भी है हमें खुद ज्ञान प्राप्त हो जाए तो हम सब महात्मा बुद्ध हो जाएं। रामायण लिखने से पहले तक वाल्मीकि क्या थे? उन्हें जब ज्ञान मिला कि ये सारे पाप आपके खाते में जमा हो रहे हैं, तब उन्होंने अपने लिए जीना सीखा। अपने लिए जीना सीखकर वे देवत्व को प्राप्त कर सके तो कुछ वक्त अपने पर खर्च करके हम भी अपना बाकी जीवन तो बिना तनाव के जी ही सकते हैं।
चौबीस घंटों में हम अपने लिए कितना जी पाते हैं। हमारी कॉलोनी के आसपास गार्डन है। अपनी कोठी की छत पर भी खूब जगह है, हमें तो मोर्निंग वॉक तक का समय नहीं मिल पाता। और तो और इन गार्डन के आसपास रहने वाले अधिकांश लोग भी अपने लिए कुछ वक्त नहीं निकाल पाते। शायद हम सब ने ठान रखा है कि जब तक डाक्टर हिदायत दें, क्यों घूमें, क्यों संतुलित खानपान रखें। अपने दरवाजे पर मरीजों की कतार किस डॉक्टर को अच्छी नहीं लगती, लेकिन साफ दिल से दी गई उनकी सलाह को मानने की अपेक्षा हम डॉक्टर बदलना ज्यादा आसान समझते हैं, क्योंकि भगवान का दिया सब कुछ है हमारे पास। पैसे का गुरूर रखें लेकिन यह भूलें कि टेंशन फ्री लाइफ और निरोगी काया के लिए माया जरूरी नहीं है।
जरा संकल्प लेकर तो देखिए कि कम से कम सात दिन तो जल्दी उठकर घूमने जाना ही है। पहले दिन तो बड़ा मुश्किल लगेगा, इच्छा होगी बस पांच मिनट और सो लें, फिर उठ जाएंगे। भले ही मन मारकर उठें, लेकिन मोर्निंग वॉक से लौटकर जो ताजगी महसूस करेंगे तो मन ही मन खुद को कोसेंगे भी कि इतनी देर बाद क्यों समझ आई। प्रकृति हमारा इंतजार करती रहती है और हम हैं कि कुछ पल उसकी गोद में गुजारने की अपेक्षा महंगे अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में रहना ज्यादा पसंद करते हैं।
जमाने के लिए कुछ करें, अपने परिजनों के लिए तो जीना चाहते ही हैं। उन सब के सपने भी आप तभी पूरे कर सकते हैं जब अपने लिए जीना सीख लें। अब तक तो सोचने का भी वक्त नहीं मिला कि अपने लिए कितना जिए। हिसाब लगाने बैठेंगे तो सबके लिए वक्त लुटाते रहने में आपके एकाउंट में वक्त का बैलेंस जीरो ही नजर आएगा। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, जो वक्त बचा है, उसमें से हर रोज एक घंटा तो अपने पर खर्च कर सकते हैं। महंगाई के इस जमाने में अपने पर खर्च किए 60 मिनट के बदले डाक्टर के बिल में जितनी भी कमी आएगी, वह सारी राशि दोनों हाथों से लुटाइए अपनों पर।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...

1 comment:

  1. हमें खुद ज्ञान प्राप्त हो जाए तो हम सब महात्मा बुद्ध न हो जाएं।


    -सही कहा.


    एकदम उचित और उम्दा सलाह!!

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