पचमेल...यानि विविध... जान-पहचान का अड्डा...पर आपका बहुत-बहुत स्वागत है.

Thursday, 7 January 2010

आप भी टोकिए तो सही किसी का भला ही होगा

हाथ में एक्सरे रिपोर्ट, चेहरे पर चिंता की लकीरें लिए अस्पताल से बाहर निकल रहे एक मित्र को देखकर मैं ठिठक गया। लगा कि कुछ गड़बड़ है। मैंने पास जाकर पूछा। उन्होंने लापरवाही वाले अंदाज में कहा-मुंह और गले में कुछ छाले हो गए हैं, चैक कराने आया था, डॉक्टर का कहना है गुटका तंबाकू बंद कर दो।
मैंने भी जब डॉक्टर की बात मानने की सलाह दी, तो उनका जवाब संता-बंता के किसी जोक के जैसा ही था। बड़ी शान से कहने लगे-अरे भाई पहले दिन भर में एक डिब्बा जर्दा-पान मसाला खा जाता था। काफी कम कर दिया है अब 20-25 पाउच हो गए हैं। अब एक-दम तो बंद कैसे करूं?
साथ खड़ी उनकी पत्नी दुखी हो रही थीं, बिलकुल कम मिर्च का खना भी इन्हें तीख लगता है। पूरा मुंह भी नहीं खुल पाता। बेवजह मुझ पर, बच्चों पर गुस्सा करते रहते हैं। पूरे महीने भर से पीछे पड़ी थी। आज आए हैं जांच कराने। जेबों में अभी भी पाउच भर रखे हैं
मित्र ने पहले बुराई को गले लगाया और अब वह गले का हार बन गई। डॉक्टर ने जो संकेत दिए, उससे दोस्त को समझ तो आ गया है कि बार-बार होने वाले छाले मुंह के कैंसर में तब्दील हो रहे हैं। शायद इस कड़वी सच्चाई को सुन पाने से बचने के लिए ही वे लंबे समय से चैकअप को टाल रहे थे।
खाते-पीते परिवार के कई लोगों को ऐसे शौक हों तो समझ आता है कि वे बीमारी के उपचार का खर्च उठाने में सक्षम हैं, लेकिन यह तो याद रखना ही चाहिए कि बीमारी गले का हार बन जाए, तो अपने लोगों की सहानुभूति भी तभी तक रहती है, जब तक खुद आप के हाथ-पैर चल रहे हैं या लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
हमारे आस-पास ही ऐसे किस्से बिखरे पड़े हैं, जब बाथरूम में पैर फिसलने या ब्रेन हेमरेज हो जाने के बाद मरीज की तीमारदारी परिवार के सदस्यों को बोझ लगने लगती है। मरीज की सेवा करते-करते पूरा परिवार मानसिक रूप से बीमार हो जाता है, तब ये ही परिजन ईश्वर से प्रार्थना करने लगते हैं कि हमारे इस प्रिय सदस्य को जल्दी से जल्दी अपने पास बुला लो। अभी हम इतने निर्दयी भी नहीं हुए हैं कि जीवन रक्षक दवाई के बदले मरणासन्न परिजन को पीड़ादायी जिंदगी से मुक्ति के लिए सेल्फॉस घोलकर पिला दें।
ऐसे प्रसंगों से हम सब का जब सामना होता है, तो बड़ी सहजता से शब्द निकल पड़ते हैं-जैसी ईश्वर की मर्जी होगी। अचानक हुई दुर्घटना में गंभीर मरीज के प्रति तो फिर भी दयाभाव रखा जा सकता है, क्योंकि वह खुद घटना के लिए जिम्मेदार नहीं होता, लेकिन तंबाकू चबाना, धूम्रपान करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक जैसी चेतावनी साफ लिखी होने के बाद भी जो आंख मूंद कर दिन भर में एक डिब्बा साफ करने या दस-बीस पैकेट सिगरेट फूंकने की शान बघारे, उसके लिए क्यों दयाभाव रखा जाए। ऐसा भी नहीं कि ऐसी बुराइयों को अपनाने वालों को अपने भविष्य, परिवार की याद नहीं रहती। वैसे तो नेत्र ज्योति नहीं होने पर सूरदास कहते हैं, लेकिन ऐसे लोगों को तो आंख के अंधे कहने में भी हर्ज नहीं। पेट के कीड़े मारने के लिए मच्छर-कॉकरोच मारने वाला हिट प्याले में डालकर नहीं पीते इसका मतलब इन में अक्ल भी भरपूर है।
ऐसे लोगों पर तब और ज्यादा तरस आता है जब अपने बच्चों से पाउच, सिगरेट, सोडा-शराब मंगवाना अपना अधिकार मान लेते हैं। रोज-रोज की किच-किच के बाद भी अनसुनी करने वालों का सामाजिक बहिष्कार संभव न हो तो घरेलु बहिष्कार तो किया ही जा सकता है। पति की लंबी उम्र के लिए भूखे-प्यारे रहकर करवा चौथ का व्रत करने की अपेक्षा पतियों को ही कुछ दिनों तक व्रत के सत नियमों का पालना कराना चाहिए। शायद तभी बिगडैल पतियों, बेटों, भाइयों को समझ आए कि यह घरेलू बहिष्कार भी उनकी लंबी उम्र के लिए ही किया जा रहा है।
अच्छे दोस्त होने का भी हम तभी दावा कर सकते हैं जब ऐसी किसी बुराई से घिरे अपने दोस्त को बचाएं। बार-बार टोकें, सार्वजनिक रूप से टोकें, उसके परिजनों को भी असलियत बताएं। फिर भी दोस्त नहीं बदले तो हम तो अपना रास्ता बदलने के लिए स्वतंत्र हैं ही।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...

5 comments:

  1. 'पचमेल' हर बार किसी नई प्रेरणा के साथ उपस्थित होता है. सहज-सरल भाषा और कम से कम शब्दों में आप जो संस्कार बांटते हैं, निश्चय ही प्रेरणादायी है.
    आज का 'पचमेल' भी भावपूरण है. अजब संयोग है, आज ही हमने परलीका में इसी विषय पर विचार गोष्ठी रखी है, जिसे श्री रंगलाल विश्नोई (रावतसर) मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करेंगे. 'पचमेल' का भी वचन इस अवसर पर प्रासंगिक रहेगा. भावपूरण उद्गारों के लिए साधुवाद.
    सत्यनारायण सोनी, परलीका

    ReplyDelete
  2. बिलकुल सही कहा आपना प्रेरणा और सही राह दिखाती पोस्ट शुभकामनायें

    ReplyDelete
  3. bahut badhiyaa likhte hain aap.
    mujhe aapki lekhni vishesh taur par pasand hain. bas, ishwar se ek hi duaa hain ki-"aapki kalam or aapkaa yeh blog (pachmel) anwarat, binaa kisi rukaawat ke chaltaa rahe."
    thanks.

    ReplyDelete
  4. सहमत हूँ आपसे..टोकना और सही रास्ता दिखाना तो फर्ज है.

    ReplyDelete
  5. Prem srdhye,
    Sh kirti Rana.
    Nameskar,khammghani,
    Aaj Aap ka pachmel pdha chote hoker to dekhiye bhut bade ho jayge.yeh pachmel Aap n dil s likha h or manye is dil se hi pdha h.bhut hi payra likha h.Ager Aap ko khus rehna h to Aap chote ho ker khus reh sekte ho or khus rekh sekte ho.jindgi ka saar hi aap n likh diya h.
    Aaj kal MBA M bhi yehi pdhaya jatta hai.yeh to management behiveyer ki thorye hai.
    Sarthek lekh or jindgi k felsafye k liye Aap ko sadu-bad.
    NARESH MEHAN

    ReplyDelete