चाहे संबंध हो या व्यापार न चाहते हुए भी स्थिति ऐसी हो ही जाती है कि प्रोफेशनल होना ही पड़ता है। जो उत्पादक हैं वे अपने प्रॉडक्ट की बिक्री में बढ़ोतरी के लिए फीड बैक लेते हैं। संबंधों को तरोताजा बनाए रखने के लिए, ज्यादा से ज्यादा अपने प्रशंसकों तक पहुंचने के लिए सितारे और नेता भी फेसबुक, ब्लॉग, आरकुट आदि का सहारा ले रहे हैं। इस सब का उद्देश्य भी यही है कि वे जो कर रहे हैं उस पर प्रशंसकों की प्रतिक्रिया सकारात्मक भी है या नहीं। आशा के विपरीत परिणाम आने पर कंपनियां अपने प्रॉडक्ट की कमियां दूर कर लेती हैं। सितारे अपने फैसलों की, अपने काम की समीक्षा करते हैं, जनप्रतिनिधि जनभावना के खिलाफ कोई निर्णय लेने का साहस नहीं कर पाते। सारा खेल अब फीड बैक पर निर्धारित हो गया है। हमें अपने कार्य-व्यवहार के बारे में भी फीड बैक लेते रहना चाहिए। इससे खुद को और बेहतर इंसान तो बना ही सकते हैं। हालांकि मैंने अपने साथियों से कई बार अपने कार्य-व्यवहार पर फीड बेक देने को कहां, बिना नाम के अपना मत लिख कर देने को कहा लेकिन मुझे अब तक सफलता नहीं मिली।
ऐसा नहीं कि यह कोई नया तरीका है। सदियों से फीड बेक लिया जाता रहा है। राजतंत्र में कई राजा रात में वेश बदलकर अपनी प्रजा का हाल जानने निकला करते थे। पुलिस अधिकारी भी सामान्य वेशभूषा में कानून व्यवस्था देखने निकल जाते थे। जिले में ज्वाइन करने से पहले कई अधिकारी सामान्य नागरिक के रूप में घूम फिरकर शहर को अपने तरीके से समझ लेते थे। इस तरीके से उन्हें अपना काम करने, फैसला लेने में आसानी हो जाती थी।
ग्राहक और दुकानदार में सीधा संबंध होता है। वह प्रॉडक्ट पैसा देकर खरीदता है। प्रॉडक्ट में किसी तरह की खोट होने पर वह सबसे पहले दुकानदार को ही शिकायत करता है। कंपनी तक ग्राहकों की बात इन्हीं दुकानदारों या फीड बैक सिस्टम से पहुंचती है। प्राप्त फीड बैक के आधार पर महंगा शैंपू, दो रुपए के पाउच में गांव-ढाणी तक उपलब्ध कराने या निरंतर शिकायतों के कारण प्रॉडक्ट को माकेüट से हटाने का निर्णय लिया जाता है।
गंगानगर और हनुमानगढ़ क्षेत्र में वर्षों से अभिकर्ता के रूप में क्वभास्करं को निरंतर ऊंचाइयों पर ले जा रहे वरिष्ठ अभिकर्ताओं से अभी जब सीधे चर्चा का अवसर मिला तो मैंने क्वपचमेलं के संदर्भ में भी उनका एवं उनके क्षेत्र के पाठकों (ग्राहकों) का फीड बेक बताने का अनुरोध किया। एक अभिकर्ता साथी ने निभीüकता से प्रति प्रश्न किया आप सच सुनना पसंद करते हों तो बताता हूं कोई पाठक इसे पसंद नहीं करता। ज्ञान-ध्यान की बातों वाली किताबों की बाजार में कमी नहीं है। आपको इसकी जगह समाचार छापने चाहिए।
उनका कहना था मेरे अकेले का नहीं बाकी सभी अभिकर्ताओं का भी यही मत है। हमने आपको असल बात कह दी, आगे आपकी मर्जी। अब उन सब की नजरें मेरे चेहरे पर प्रतिक्रिया जवाब के रूप में तलाश रही थी।
मेरा यह जवाब सुनकर अभिकर्ताओं के चेहरे पर खुशी और विजयी भाव था कि आपके इस सुझाव को अगले सप्ताह से अमल में ले आएंगे। जिस तरह विभिन्न क्षेत्रों के अंजान पाठकों के मुझे प्रति सप्ताह एसएमएस और सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त होती थी। उससे यह मान लेना घातक ही कहा जा सकता है कि पसंद करने वालों का प्रतिशत अधिक है। आलोचक भी आपका सच्चा हितैषी हो सकता है। हां में हां मिलाने वालों की भीड़ में कोई एक-दो ही ऐसे मिलते हैं जो हकीकत बताने का साहस रखते हों। उजली धूप को चांदनी जैसा बताने वालों की भीड़ में ऐसे निंदक ही आंख खोल सकते हैं कि जिसे आपके सामने चांदनी बताकर प्रचारित किया जा रहा है, वह तेज धूप है।
सुख-दुख की बातें तो अभी भी जारी रहेंगी लेकिन माध्यम बदला हुआ होगा। अब जब अपनी बात कहने, प्रतिक्रिया व्यक्त करने का ब्लॉग सबसे सरल, अच्छा माध्यम बनता जा रहा है तो इस स्तंभ को पसंद करने वाले पाठकों को भी कंप्यूटर, इंटरनेट फ्रेंडली होना पड़ेगा। यानी बुराई में भी एक अच्छाई है कि ब्लॉग दुनिया से अनभिज्ञ पाठक जब ब्लॉगिंग से जुड़ेंगे तो उनमें से कई खुद अपने ब्लॉग पर लिखना भी शुरू करेंगे। यह मुश्किल भी नहीं है। इस स्तंभ के एक नियमित पाठक चंद्र कुमार सोनी (एल ५ मॉडल टाउन श्रीगंगानगर) अपने नाम से ब्लॉग लिखने लगे हैं। कॉलम और ब्लॉग को लेकर मित्रमंडली से होने वाली नियमित चर्चा का ही यह परिणाम रहा कि बीकानेर के पत्रकार मधु आचार्य (जनरंजन) जोधपुर से पानीपत पहुंचे पत्रकार ओम गौड़ (हमारी जाजम) आदि भी ब्लॉग लेखन के लिए प्रोत्साहित हुए और अब नियमित लिख भी रहे हैं। किसी मुद्दे को लेकर मन में कुछ लिखने की छटपटाहट हो लेकिन यह शंका भी घेरे रहे कि कोई समाचार पत्र छापेगा या नहीं तो ऐसे में खुद के ब्लॉग पर लिखना बड़ा आसान और मन को सुकून देने वाला तरीका है।
ऐसा नहीं कि यह कोई नया तरीका है। सदियों से फीड बेक लिया जाता रहा है। राजतंत्र में कई राजा रात में वेश बदलकर अपनी प्रजा का हाल जानने निकला करते थे। पुलिस अधिकारी भी सामान्य वेशभूषा में कानून व्यवस्था देखने निकल जाते थे। जिले में ज्वाइन करने से पहले कई अधिकारी सामान्य नागरिक के रूप में घूम फिरकर शहर को अपने तरीके से समझ लेते थे। इस तरीके से उन्हें अपना काम करने, फैसला लेने में आसानी हो जाती थी।
ग्राहक और दुकानदार में सीधा संबंध होता है। वह प्रॉडक्ट पैसा देकर खरीदता है। प्रॉडक्ट में किसी तरह की खोट होने पर वह सबसे पहले दुकानदार को ही शिकायत करता है। कंपनी तक ग्राहकों की बात इन्हीं दुकानदारों या फीड बैक सिस्टम से पहुंचती है। प्राप्त फीड बैक के आधार पर महंगा शैंपू, दो रुपए के पाउच में गांव-ढाणी तक उपलब्ध कराने या निरंतर शिकायतों के कारण प्रॉडक्ट को माकेüट से हटाने का निर्णय लिया जाता है।
गंगानगर और हनुमानगढ़ क्षेत्र में वर्षों से अभिकर्ता के रूप में क्वभास्करं को निरंतर ऊंचाइयों पर ले जा रहे वरिष्ठ अभिकर्ताओं से अभी जब सीधे चर्चा का अवसर मिला तो मैंने क्वपचमेलं के संदर्भ में भी उनका एवं उनके क्षेत्र के पाठकों (ग्राहकों) का फीड बेक बताने का अनुरोध किया। एक अभिकर्ता साथी ने निभीüकता से प्रति प्रश्न किया आप सच सुनना पसंद करते हों तो बताता हूं कोई पाठक इसे पसंद नहीं करता। ज्ञान-ध्यान की बातों वाली किताबों की बाजार में कमी नहीं है। आपको इसकी जगह समाचार छापने चाहिए।
उनका कहना था मेरे अकेले का नहीं बाकी सभी अभिकर्ताओं का भी यही मत है। हमने आपको असल बात कह दी, आगे आपकी मर्जी। अब उन सब की नजरें मेरे चेहरे पर प्रतिक्रिया जवाब के रूप में तलाश रही थी।
मेरा यह जवाब सुनकर अभिकर्ताओं के चेहरे पर खुशी और विजयी भाव था कि आपके इस सुझाव को अगले सप्ताह से अमल में ले आएंगे। जिस तरह विभिन्न क्षेत्रों के अंजान पाठकों के मुझे प्रति सप्ताह एसएमएस और सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त होती थी। उससे यह मान लेना घातक ही कहा जा सकता है कि पसंद करने वालों का प्रतिशत अधिक है। आलोचक भी आपका सच्चा हितैषी हो सकता है। हां में हां मिलाने वालों की भीड़ में कोई एक-दो ही ऐसे मिलते हैं जो हकीकत बताने का साहस रखते हों। उजली धूप को चांदनी जैसा बताने वालों की भीड़ में ऐसे निंदक ही आंख खोल सकते हैं कि जिसे आपके सामने चांदनी बताकर प्रचारित किया जा रहा है, वह तेज धूप है।
सुख-दुख की बातें तो अभी भी जारी रहेंगी लेकिन माध्यम बदला हुआ होगा। अब जब अपनी बात कहने, प्रतिक्रिया व्यक्त करने का ब्लॉग सबसे सरल, अच्छा माध्यम बनता जा रहा है तो इस स्तंभ को पसंद करने वाले पाठकों को भी कंप्यूटर, इंटरनेट फ्रेंडली होना पड़ेगा। यानी बुराई में भी एक अच्छाई है कि ब्लॉग दुनिया से अनभिज्ञ पाठक जब ब्लॉगिंग से जुड़ेंगे तो उनमें से कई खुद अपने ब्लॉग पर लिखना भी शुरू करेंगे। यह मुश्किल भी नहीं है। इस स्तंभ के एक नियमित पाठक चंद्र कुमार सोनी (एल ५ मॉडल टाउन श्रीगंगानगर) अपने नाम से ब्लॉग लिखने लगे हैं। कॉलम और ब्लॉग को लेकर मित्रमंडली से होने वाली नियमित चर्चा का ही यह परिणाम रहा कि बीकानेर के पत्रकार मधु आचार्य (जनरंजन) जोधपुर से पानीपत पहुंचे पत्रकार ओम गौड़ (हमारी जाजम) आदि भी ब्लॉग लेखन के लिए प्रोत्साहित हुए और अब नियमित लिख भी रहे हैं। किसी मुद्दे को लेकर मन में कुछ लिखने की छटपटाहट हो लेकिन यह शंका भी घेरे रहे कि कोई समाचार पत्र छापेगा या नहीं तो ऐसे में खुद के ब्लॉग पर लिखना बड़ा आसान और मन को सुकून देने वाला तरीका है।
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