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Friday 11 December 2009

समाज से लिया है तो कुछ चुकाएं भी

रिश्ते में हमारे एक भाई एक दोपहर स्कूल से जल्दी घर आ गए। कई दिनों से निजी स्कूल प्रबंधन जो मंशा स्कूल स्टाफ के सामने जाहिर करता रहा था आज उस पर अमल हो गया था। स्कूल भवन वाली जगह पर अब बड़ा कमर्शियल कांप्लेक्स बनेगा। चूंकि स्कूल सरकारी अनुदान से चल रहा था लिहाजा स्कूल स्टाफ का हिसाब-किताब भी प्रबंधन ने अपनी मर्जी से ही किया। ज्यादातर अध्यापक अन्य काम-धंधे से साइड बिजनेस के रूप में पहले से ही जुड़े थे इसलिए स्कूल बंद होने के निर्णय से उनके सामने आर्थिक संकट जैसी स्थिति नहीं बनी। इसके विपरीत स्कूल बंद होने की सूचना के साथ ही भाई ने बड़े उत्साह से एक निर्णय और सुना दिया कि बस इसी महीने से सब्जी का थोक व्यवसाय भी बंद करके अब पूरा समय बच्चों को ट्यूशन देने में लगाएंगे। जमा-जमाया बिजनेस बंद करने के उनके इस निर्णय का विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं थी, समझा इसलिए नहीं सकते क्योंकि वे उम्र में सबसे बड़े थे। बच्चों को पढ़ाने के इस काम में भी यह निधाüरित कर दिया जो बच्चे फीस नहीं दे सकते उनसे नहीं लेंगे, बाकी बच्चे जो देंगे ले लेंगे।
गली-गली में जब कोचिंग सेंटर चल रहे हों तब इस तरह ट्यूशन से बेहतर आमदनी की उम्मीद करना कैसे सही हो सकता है। कामर्स के कुछ बच्चे आने लगे, पढ़ाने के तरीके के कारण उन बच्चों को कामर्स अब आसान लगने लगा। संध्या बढ़ने के साथ ही कुछ बच्चों ने परेशानी बताई- हमारे स्कूल में कई बातें कंप्यूटर से भी समझाते हैं। उन्होंने बच्चों की परेशानी में छुपे संकेत को समझ लिया। उम्र भ्8 की होने के बावजूद कंप्यूटर क्लास ज्वाइन की और अब बच्चों की जिज्ञासा का कंप्यूटर की भाषा में ही समाधान करते हैं। ट्यूशन के बाद बचा समय उन बच्चों के लिए रखते हैं जो सप्ताह में एक दिन पढ़ने का वक्त निकाल पाते हैं। अपने रिश्तेदारों से कपड़े व अन्य उपयोगी पुराना सामान एकत्र कर इन बच्चों को उपलब्ध करा देते हैं इस उतरन से ही इन बच्चों के सपने रंगीन हो जाते हैं।
इस तरह के प्रसंग कहीं न कहीं घटित होते ही रहते हैं जो हमें यह सोचने को भी बाध्य करते हैं कि क्या हम अपने रोज के काम या सेवानिवृति के बाद ऐसा कुछ नहीं कर सकते? क्या जीवन में पैसा ही सब कुछ होना चाहिए? अच्छा करने का जज्बा किसी भी उम्र में पैदा हो सकता है। जिनकी नजर अपनों से आगे देख ही नहीं पाती उन लोगों के लिए ही पैसा सब कुछ हो सकता है। इन पैसे वालों की भी तो पीड़ा जानिए जो बेफिक्री की नींद वाली एक रात के इंतजार में बिना गोलियांे के एक झपकी भी ठीक से नहीं ले पाते। एक इशारे में दुनिया खरीदने जितनी ताकत रखने के बाद भी दाल-रोटी के बदले लोकी और करेले के सूप पर गुजारा करते हैं। मुझे लगता है सब कुछ उपलब्ध होने के बाद भी जब इस सबसे मन उचट जाए तो मामला एश या केश का नहीं मन के फ्रेश होने का ही होता है।
'पा' में बच्चे बने महानायक हों, विज्ञापन फिल्म में बूढ़े के रूप में अपनी भावी सूरत से खुश होने वाले किंग खान हों या फ्रांस का सर्वोच्च सम्मान पाने के बाद 81 की उम्र में खुद को 18 का महसूस करने वाली लताजी हों या ऐसी सारी हस्तियों के लिए आज भी पैसा ही सब कुछ है। यदि इसका जवाब हां में ही सुनना चाहें तो यह भी सोचना पड़ेगा कि इतनी उम्र के बाद भी यह सारे लोग पैसे के लिए ही सब कुछ कर रहे हैं तो उम्र के इस पड़ाव पर समाजसेवा भी तो कर रहे हैं। जिस समाज ने इन्हें इस ऊंचाई पर पहुंचाया उसका अपने अंदाज में कर्ज भी तो उतार रहे हैं। हमें भी पैसा कमाने से कौन रोक रहा है लेकिन कितने लोग हैं जो कमाएं पैसे से सेवा का मेवा बांटने का काम कर पाते हैं?
शासकीय सेवा में रहते समाज के एक बड़े वर्ग की फिक्स लाइफ स्टाइल होती है। ऊपर से तुर्रा यह कि समाज के लिए कुछ अच्छा करने की दिली इच्छा है पर क्या करें आफिस की झंझटों और बाकी बचे समय में पारिवारिक दायित्वों के कारण समय ही नहीं मिल पाता। जब यह वर्ग पूरे सम्मान के साथ सेवानिवृत होता है तब इनमें से कितने लोग समाज को कुछ वक्त दे पाते हैं। दिनचर्या तो बदल जाती है लेकिन मन नहीं बदल पाता। उल्टे-सीधे तरीकों से पैसा कमाने वालों का तो तनाव बढ़ जाता है, नए-नए रोग घेर लेते हैं, चिंता सताने लगती है इंकम के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। कहा भी तो गया है पहले इंसान सारा ध्यान पैसा कमाने में लगाता है और बाद में बीमारियों से राहत पाने के लिए इसी पैसे को पानी की तरह बहाता है।
हमें अगले पल की तो खबर होती नहीं और हम कल की खुशी के लिए आज को बर्बाद करने में लगे रहते हैं। कई बार हमने किस्से सुने हैं कि सड़क किनारे वर्षों से भीख मांगकर गुजारा करने वाले की लाश को उठाने आए लोगों ने उसका कंबल झटकाया तो उसके नीचे नोटों की गड्डियां जमी पाई। जो पैसा जमा करते-करते बिना सुख भोगे चले जाते हैं उनसे भी हम सीख नहीं पाते। कम से कम यह तो याद रख ही लें कि किसी की आंखों से बहते आंसू सोने की गिन्नी से नहीं आपके प्यार भरे स्पर्श से ही थम सकते हैं। रोते बच्चे को चुप कराना इतना ही आसान होता तो सारी मां-बहनें बच्चों को कंधे पर लेकर प्यार भरी थपकियां देने के बदले गले में सिक्के और नोटों की माला बनाकर डाल देतीं।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...

2 comments:

  1. अमर उजाला में आप का लेख पढ़ा बधाई

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  2. अमर उजाला प्रकाशित हुआ आप ब्लाग, शुभकामनायें

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