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Wednesday 21 January 2009

मर्म न जाने तो कैसा धर्म

दोनों जिलों के लोगों को प्रशासन की सख्ती और सूझबूझ के लिए शुक्रगुजार होना चाहिए, वरना जनवरी का दूसरा सप्ताह आराम से नहीं गुजर पाता। यूं तो राजतंत्र के निरंकुश होने पर धर्म का अंकुश काम करता रहा है, लेकिन जब धर्म ही अधर्म जैसा नजर आने लगे तो...! राजतंत्र के अंकुश ने धर्म के नाम पर एक-दूसरे के अपमान को आतुर लोगों को तो नियंत्रित किया ही, धर्म की राह पर चलने वाले जब वादों से भटकने और गलत इरादों की ओर बढ़ने लगे तो उन्हें भी बताया कि आपके धर्म से अभी हमारा कर्म बड़ा है।

आप खुद ही समçझए अपना धर्म

धर्म का काम तो नेत्र ऑपरेशन करने वाली मोबाइल यूनिट भी कर रही है, किंतु नोहर में जिस तरह एक पार्षद सहित चार मरीजों की जिंदगी में अंधेरा हुआ और उससे पहले नेत्र शिविरों में जिस तरह अंधेरगदीü सामने आई तो अब लगने लगा है कि ऐसे लोग बातें तो धर्म की करते हैं, लेकिन उसका मर्म नहीं समझ पाते। परिवार के खाने के लिए दस रु. किलो के केले लाएं और कथा के लिए पिलपिले-काले 5 रु. किलो वाले केले चढ़ाएं! ऐसी होती जा रही धामिüक आस्थाओं के कारण ही धर्मादा कायोZ को शक की नजर से देखा जाने लगा है। मरीजों को इन नेत्र शिविरों में आना पड़ रहा है तो यह भी देखा जाना चाहिए कि राजकीय अस्पतालों में आंखों के आपरेशन क्यों नहीं हो रहे? इन व्यवस्थाओं को सुधारने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तो आने से रहे।

नियमों की बेड़ी, खराबे की व्यथा

रेगुलेशन के लिए आंदोलन की तैयारी में जुटे किसानों पर पड़ी ओले की मार अब प्रशासन के लिए भी नया संकट पैदा कर सकती है। दोनों जिलों में खेत के खेत तबाह हुए हैं। नियम कहते हैं कि मुआवजे के हकदार 50 प्रतिशत से अधिक तबाही वाले किसान ही होंगे और धर्म की बात करें तो 15-25 प्रतिशत तबाही वाले किसान को भी सरकार से भरपूर राहत की आशा है। विधायक चाहेंगे कि सभी पीडि़तों को एक समान राहत मिले। प्रशासन की मजबूरी नियमों की बेडि़यां हैं। जाहिर है रेगुलेशन की लड़ाई से पहले ओले से उपजे असंतोष की लपटें प्रशासन की ठंड भगाएगी।
ये हाल है मुस्तैदी का
ओले से किसान परेशान हुए तो बारिश ने गंगानगर के लोगों को मुसीबत में डाल दिया। इस बेमौसम बारिश से ब्लाक एरिए सहित बाकी शहर में विभागों की उदासीनता भी गंदे पानी की तरह फैल गई। लग ही नहीं रहा कि शहर में परिषद नाम की कोई संस्था और उसके पास सफाई का भारी-भरकम अमला भी है। जो रहवासी परिषद को सारे टैक्स चुका रहे हैं, आंदोलन-ज्ञापन, पुतला दहन की जिन्हें फुरसत नहीं है, शांति से जिंदगी गुजारना चाहते हैं। उनकी परेशानी को दूर करने का भी विभाग के पास वक्त नहीं है तो फिर ऐसे भारी-भरकम अधिकारियों और समीक्षा बैठकों का नाटक किसके लिए। कुछ ऐसे ही हाल हनुमानगढ़ में भी हैं। कलेक्ट्रेट कर्मचारियों पर नजर रखने के लिए 20 लाख रुपए खर्च किए जा रहे हैं। कुछ अधिकारियों को ऐसे कामों में बड़ा आनंद आता है और मातहत ऐसा उत्साह दिखा रहे हैं कि बस सीसीटीवी लगे और रामराज्य कायम हो जाएगा, भूलना नहीं चाहिए कि चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात जैसी कहावतें बच्चों तक को याद हैं।
सुनाई नहीं दी आत्मा की आवाज
पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का ऐलान निश्चय ही आत्मा की आवाज पर ही किया होगा, लेकिन दोनों जिलों में उनकी आवाज में हुंकारा देने वाले जुटे ही नहीं। पार्टी की मर्यादा ने इन्हें सçर्कट हाउस तक नहीं जाने दिया, लेकिन बातें तो यह भी सुनाई दे रही हैं कि चुनाव के वक्त ही भैरो बाबा को भ्रष्टाचार की याद आ रही है। भ्रष्टाचार मिटे न मिटे लेकिन भैरोंसिंह शेखावत ने जो मुद्दा उठाया है, उसमें दम तो है ही।
फसल के लिए अच्छे बीज की कमी नहीं
हनुमानगढ़ के लिए कई बार आते-जाते जगदंबा मूक-बधिर अंध विद्यालय के भव्य प्रवेशद्वार ने आकर्षित तो किया। अभी जब आश्रम के अवलोकन और स्वामी ब्रrादेवजी से चर्चा में यहां की गतिविधियां समझीं तो लगा कि धर्म के मर्म को तो यहीं कर्म रूप में समझा गया है। धर्म की राह पर आपके इरादे नेक होंगे तो मदद करने वालों की भी कमी नहीं है। ब्रेल प्रेस, प्रिंटिंग यूनिट, मूक-बधिर बच्चों को शिक्षा और इससे पहले अरोड़वंशीय समाज में फैले अंधविश्वास को दूर कर दहाका पर भजन-प्रवचन की शुरुआत। ऐसे सारे काम देख-समझकर तो यही कहा जा सकता है कि धर्म के लिए मर-मिटने वालों को कट्टरता दिखानी ही है तो इस आश्रम जैसे कायोZ में दिखाएं।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...

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