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Wednesday 14 January 2009

कायदे और फायदे में उलझी कुर्सी

कुर्सी का खेल भी अजीब है। कहीं कुर्सी अपने नीचे वालों को कायदे सिखा रही है और कहीं कुर्सी के फायदे समझने वाले इससे हर हाल में जुड़े ही रहना चाहते हैं। ताज्जुब तो तब होता है पॉवरफुल अधिकारी यह भूल जाते हैं कि उन्हें इस पॉवर वाली कुर्सी से शहर का भला भी करना है। अब ट्रैफिक पुलिस को ही देखिए साल के 365 दिन में सात दिन मिलते हैं चुस्ती-फुतीü दिखाने के लेकिन गोल बाजार से लेकर सब्जी मंडी, लक्कड़ मंडी तक कहीं लगा ही नहीं भाई लोगों के पेट का पानी हिला भी हो। पता ही नहीं चल पाया कि अस्त-व्यस्त ट्रैफिक में सप्ताह कहां गुम हो गया। हनुमानगढ़ में तो फिर भी टै्रफिक अमले ने अंगड़ाई भी ली, गांधीगिरी भी दिखाई और सप्ताह को गुड बाय कहने के साथ सख्ती के लिए कमर भी कस ली, परंतु यहां तो विभाग ठंड का शिकार हो गया है।

पानी में आग लगाने वाले अधिकारी

बीते सप्ताह बात गन्ना उत्पादकों के आंदोलन से शुरू हुई थी और इस सप्ताह सरकार ने अपनी कुर्सी जमाए रखने के लिए रेवड़ी-मूंगफली के प्रसाद से किसानों का मुंह मीठा कर दिया। कुर्सी को हिलाने के लिए विधानसभा में धरना-नारेबाजी के बाद दोनों जिलों के विधायकों ने अपने क्षेत्रों में आंदोलन के बीज बो दिए हैं। फसलों के लिए पुराने रेगुलेशन से पानी नहीं मिला तो बिना पानी के ही आंदोलन के बीज तेजी से कंटीले झाड़ बन जाएंगे। यदि इतने गतिरोध के बाद भी सरकार को विधायकों की बात माननी पड़े तो सिंचाई विभाग के सीएडी और मुख्य अभियंता से पूछा जाना चाहिए कि आप लोग पानी वाले विभाग के मुखिया होकर आग लगाने की मानसिकता से क्यों काम कर रहे हैं।

आंकड़े बदलते हैं मानसिकता नहीं

कौन कितना और कैसा काम कर रहा है यह तो दोनों कलेक्टरों को विभागीय शाखाओं पर छापामार कारüवाई में पता चल ही गया है। कलेक्टर चाहे पुराने रहें या नए आएं, कर्मचारियों की मानसिकता तो नहीं बदली जा सकती। और ऐसा भी नहीं कि यह छापामारी पहली बार हुई है, बस आंकड़ा कम-ज्यादा होता रहता है। इसमें उन कर्मचारियों को तो मानसिक तनाव से गुजरना पड़ता है जो फील्ड में काम को अंजाम दे रहे होते हैं और धब्बा लगा दिया जाता है गैरहाजिरी का। उन कर्मचारियों को भी अधिक पीड़ा होती है जो समय पर आते और देर से जाते हैं, लेकिन इनमें से भी किसी एक की ही 26 जनवरी पर पीठ थपथपाई जाती है। कम से कम जिले के मुखिया हर माह विभिन्न शाखाओं के श्रेष्ठ कर्मचारियों को सम्मानित कर नई कार्य संस्कृति से आरामपसंद कर्मचारियों को मानसिकता बदलने के अवसर तो दे ही सकते हैं।

अब कुछ करके भी दिखाइए

बात फायदे वाली कुर्सी की करें तो खाली पड़ी परिषद आयुक्त की कुर्सी में राजेंद्र मीणा फिट बैठ गए हैं। वो इतने लंबे समय से इस जिले में हैं कि राजस्थान प्रशासनिक सेवा के बदले बाकी अधिकारी उन्हें श्रीगंगानगर प्रशासनिक सेवा का मानते हैं। अब मीणा को शहर को सुंदर और व्यवस्थित बनाने का फ्री हैंड मिला है। उम्मीद तो है कि कुछ करके दिखाएंगे, वरना तो इसी शहर के लोग कहने से नहीं चूकेंगे- कुर्सी से फायदे में ही उलझे रहे।

प्रधानजी की कुर्सी, विरोधियों का प्रेम

कुर्सी और फायदे का ऐसा ही किस्सा अरोड़वंश समाज ट्रस्ट में भी चल रहा है। प्रधानजी हैं कि अधूरे काम पूरे करने तक कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते हैं, दूसरी तरफ कुर्सी पर नजर गढ़ाए लोग आरोपों की आरी लिए कटाई-çछलाई में जुट गए हैं। आरोप-प्रत्यारोप की स्पर्धा में प्रदेश की प्रमुख संस्थाओं में से एक इस ट्रस्ट की छवि जरूर खराब हो रही है। बुजुगोZ की चिंता है कि बेवजह समाज की बदनामी हो रही है।

मिठास का फिर क्या मतलब

लोहड़ी और मकर संक्रांति पर्व वैसे तो शांति और उल्लास से निपट गए, लेकिन गुरुसर मोडिया से लेकर श्रीगंगानगर तक अहम और अपमान के शोले भड़कने का खतरा टला नहीं है। इसे तभी रोका जा सकता है जब हमें यह समझ हो कि मेरे लिए मेरा धर्म तो महान है ही, लेकिन दूसरे के धर्म को भी मैं उसी महान नजरों से देखूं। मैं जब अपनी बुराई नहीं सुन सकता तो ऐसा कुछ क्यों बोलूं, जिससे बाकी लोगों के दिल दुखें। अदालतों के पेट तो सबूतों के दस्तावेज से भरते रहेंगे, लेकिन धामिüक दरारों को तो माफी के फूलों से पाटा जा सकता है। गुरुओं की बाणी भी तो प्रेम और माफी का ही संदेश देती है, गुरु से बढ़कर तो बंदे हो नही सकते। यदि हमारे समाजों में यह समझ भी पैदा न हो तो गुड़-तिल की मिठास वाले एसएमएस भी कड़वाहट दूर नहीं कर पाएंगे।

अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...

kirti_r@raj.bhaskarnet.com

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