पचमेल...यानि विविध... जान-पहचान का अड्डा...पर आपका बहुत-बहुत स्वागत है.

Wednesday 7 January 2009

नए साल का उजाला, परेशानियों का अंधेरा...

नया साल उम्मीदों का उजाला लेकर आया है, लेकिन टाटा करके गया दिसंबर सूरतगढ़ में लगे नेत्र शिविर के कई मरीजों की बाकी जिंदगी को अंधेरे की टीस दे गया। अंधेरे की इस अंधेरगदीü की शुरुआत गंगानगर जिले से हुई और आसपास के पाली एवं ब्यावर जिलों के नेत्र शिविरों में बने ऐसे ही हालात ने फिर बता दिया कि जब नौकारशाही को नकेल नहीं लगाई जाए तो फजीहत आमजन की ही होती है। अब नेत्र शिविरों से जुड़ा अमला अपनी गर्दन बचाने के लिए बाकी गर्दनों की खोज में लगा हुआ है।पहले प्रचारित था कि वसुंधरा सरकार ने प्रशासनिक अमले को छूट दे रखी हैै इसलिए गलतियों पर खिंचाई भी नहीं होती। अब सरकार और मुçख्ाया बदल गए लेकिन नेत्र शिविरों के जिन पीडि़तों को अंधेरा मिला है, उनके परिजन यदि यह मान रहे हैं कि सरकार चाहे जिसकी हो चलती तो नौकरशाह की ही है, तो इसमें गलत कुछ भी नहीं है।अंधेरा सिर्फ नेत्र शिविरों में ही बांटा गया ऐसा नहीं है। ठंड और पाले के इस मौसम में डिस्कॉम भी अंधेरगदीü मचाए हुए है। सुबह से लेकर रात तक कब घरों की बत्ती गुल हो जाए पता नहीं। लगने लगा है कि डिस्कॉम और रसद विभाग में अंधेरा-अंधेरा खेलने की होड़ सी मची हुई है। यही कारण है कि गंगानगर, सूरतगढ़ से लेकर हनुमानगढ़ टाउन, जंक्शन सहित गांवों तक में कुकिंग गैस की किल्लत से लोगों के ठंड में भी पसीने छूट रहे हैं।किचन में टंकी खत्म हुई और गृहिणी खौलते पानी की तरह उबलने लगती है। पतिदेव घरवाली की खरी-खोटी सुन भी लेते हैं लेकिन खाली टंकी लेकर भटकते हुए वे तो एजेंसी वालों या रसद विभाग को खरी-खरी भी नहीं सुना सकते। गैस कब मिलेगी कोई नहीं बताता। इन दोनों जिलों में पुराने कलेक्टर थे तब भी बुकिंग गैस सबसे बड़ी समस्या थी और अब जब हनुमानगढ़ में नवीन जैन तथा श्रीगंगानगर में राजीव ठाकुर ने कमान संभाल ली है, तब भी गैस संकट यथावत है। यह तो आम लोगों को भी पता है कि अपराधों की तरह गैस संकट को भी स्थायी रूप से समाप्त नहीं किया जा सकता, लेकिन नियंत्रित करने का काम तो रसद विभाग का है। कलेक्टर, एसपी से लेकर तहसीलदार, एसएचओ को तो घर बैठे गैस सिलेंडर मिल रहा है तो उन्हें यह समस्या क्यों नजर आएगी। जिलों का कुकिंग गैस का जो कोटा है उसका ही प्रतिमाह सख्ती से वितरण होने लगे तो कुछ तो राहत मिलेगी। हालत तो इतनी बद्तर है कि इक्कीस दिन बाद भी सिलेंडर नहीं मिलते, दोनों जिलों में गैस बुकिंग के नियम अलग-अलग हैं। हनुमानगढ़ में तो जिस दिन टंकी ग्राहक को दी जाती है उसी दिन स्वत: बुकिंग भी दर्ज कर ली जाती है। श्रीगंगानगर में पहले टंकी मिलेगी फिर बुकिंग बाद में होगी और जब सिलेंडर एजेंसी पर उपलब्ध होगा, पहुंच जाएगा। तब भी आपको ही पीछा करना पड़ेगा कि ट्राली किस गली में गई है। कमीश्नर यूं तो हर महीने दोनों जिलों में कहीं न कहीं आ ही जाते हैं लेकिन जिस तरह इन जिलों के लोगों को प्रशासनिक उदासीनता से जूझना पड़ रहा है, उससे तो लगता है कि कमीश्नर का दौरा कम, तफरीह ज्यादा होती है।अंधेरे की ही बात चली है तो इसका दर्द सेतिया कॉलोनी, भांभू कॉलोनी, गणगौर नगर, नागपाल कॉलोनी, सुरजीतसिंह कॉलोनी व प्रेम नगर के हजारों रहवासियों से ज्यादा कौन समझेगा। कॉलोनियां कट गई, लोग बस गए, परिषद से लेकर पालिüयामेंट तक के लिए कई वर्षों से वोट डाल रहे हैं लेकिन हैं अवैध कॉलोनियों के रहवासी! परिषद की मजबूरी है इन्हें अंधेरे में रखना लेकिन इन्हें वैध करने के लिए ना तो अधिकारियों ने प्रयास किए और न ही जनप्रतिनिधियों से मदद का अनुरोध ही किया। ऐसे में तो अंधेरी सड़कों वाली इन कॉलोनी के रहवासी यही चाहेंगे कि जल्द से जल्द यूआइटी में अध्यक्ष के नाम की घोषणा हो जो उनके क्षेत्रों में उजाले की सौगात लेकर आए।लगे हाथ अभिभाषकों के बीच फैले वर्क सस्पेंड के अंधेर की भी बात हो ही जाए। बार एसोसिएशन के चुनाव परिणाम के बाद तो बाकी सदस्य निश्चित हो जाते हैं कि अब अगले चुनाव तक सब कुछ ठीकठाक चलेगा, लेकिन यहां तो सिर मुंडाते ही ओले पड़ने जैस्ाी स्थिति हो गई। काम संभाला ही था कि दो दिन वर्क सस्पेंड! श्रीगंगानगर के अधिवक्ता निश्चित रूप से अदालतों का कार्य बोझ कम करने को लेकर चिंतित रहते होंगे, लेकिन पिछले 4-5 सालों में बात-बात पर वर्क स्ास्पेंड के जो हालात बने हैं उससे अदालत का काम प्रभावित होने से ज्यादा दूरदराज से तारीख पर आने वालों की टेंशन ही बढ़ती है। होना तो यह चाहिए कि साल में एक बार भी वर्कसस्पेंड न कर यहां के अधिवक्ता पूरे राज्य में मिसाल कायम करें।जाते-जाते शुगर मिल में आंदोलन के अंधेरे को याद कर लें। आंदोलन तो गन्ना उत्पादक किसानोंे ने गन्ने के दाम बढ़ाने को लेकर शुरू किया था। किसानों की जायज मांग को गैरवाजिब बताने वाले अधिकारियों ने इस अंधेरे में भी रोशनी तलाश ली, खुद भी आंदोलन की राह पर चल पड़े यानी संघर्ष किसानों का और फायदा मिलेगा तो अधिकारी-कर्मचारियों को भी। अब जयपुर में फैसला होना है। और जब सारी उम्मीदें सरकार से लगी हों तो इस जिले के गन्ना उत्पादकों को मान लेना चाहिए कि घड़साना आंदोलन के मृतक चंदूराम सहारण को शहीद का दर्जा देने वाले गहलोत उनका भी ख्याल रखेंगे ही।समस्याओं की अमावस में नए कलेक्टर ने अपना मोबाइल नंबर (94140-22040) सार्वजनिक कर प्रशासनिक अमले की सुस्ती तोड़ने का काम किया है। क्या ही अच्छा हो कि कलेक्ट्रेट में सिंगल विंडो सिस्टम सख्ती मानिटरिंग शुरू हो जाए। एक निर्धारित समयावधि में लोगों की समस्याएं दूर होने लगेंगी तो, न तो लोग रोज-रोज कलेक्ट्रेट आएंगे और न ही मोबाइल पर परेशान करेंगे। वैसे खेल संगठनों के लिए तो अब सब अच्छा ही अच्छा है क्योंकि नए हाकिम खुद क्रिकेट के खिलाड़ी हैं और इस खेल के ऐसे एकलव्य भी जो अपना अंगूठा क्रेक करा चुके हैं।
अगले हप्ते फैरू, खम्मा घणी-सा...

No comments:

Post a Comment