आशा की नई राह
हताशा जब घेरती है, तो अविश्वास को भी साथ लेकर आती है। मुश्किल हालात में दो ही रास्ते बचते हैं या तो हçथयार डाल दें या हिम्मत हारें। हताशा के दौर मेें भी जो कुछ करने का साहस दिखाते हैं, उनके लिए यही हताशा अनुभव प्रमाणपत्र बन जाती है। अपने आसपास किसी को हताश देखें तो उसे हिम्मत बंधाएं, ऐसा करके हम उन लोगों का अहसान चुका सकते हैं, जिन्होंने हताशा के वक्त हमारा हौसला बढ़ाया था।
हताशा जब घेर ले तो क्या करें? पहला रास्ता तो यही है कि उसे हावी हो जाने दे भले ही जीवन का अन्त क्यों न हो जाए। दूसरा रास्ता यह है कि हताशा मेें छिपी अदृश्य आशा का दामन थाम लें। पहला रास्ता हमें जहां, जैसी स्थिति में हैं, वहीं रहने देता है। लोग हमें धकियाते, रौन्दते हुए आगे बढ़ते जाते हैं। दूसरा रास्ता हमें नए तरीके से जिन्दगी जीने की राह बताता है, अपनी भूलों से सीख लेते हैं। हताशा में छिपी यह अदृश्य आशा एक तरह से हमारे लिए अनुभव प्रमाणपत्र साबित होती है।
राजनीति में तेजी से आगे बढ़ रहे एक सज्जन अविश्वास के दांव-पेंच में ऐसे घिरे कि हताशा ने घेर लिया। घर भला और वो भले। समाज से कटे, ज्यादा समय घर पर ही बिताने लगे तो उन्हें मन्दबुद्धि बच्चों और उनके अभिभावकों की स्थिति का अहसास हुआ, नतीजा यह निकला कि उन्होंने मन्दबुद्धि बच्चों के लिए एक स्कूल स्थापना का संकल्प ले लिया। हताशा में छिपी अदृश्य आशा ने उन्हें एक राह दिखा दी।
इसी तरह कर्ज के बोझ और कुछ बुरी संगत के दुष्परिणामों से हताश एक युवक ने बीवी-बच्चों को भगवान भरोसे छोड़ रेल की पटरियों को बिछौना बनाने का निर्णय ले लिया। संकल्प को पूरा करने के लिए वह घर से चल भी पड़ा, बालाजी भजन मण्डल के एक वरिष्ठ सदस्य की दुकान के आगे से गुजरते वक्त वह अन्तिम दुआ सलाम के लिए रुक गया। कुछ पल की चर्चा का ऐसा असर हुआ कि उसे आत्महत्या का निर्णय मूखüतापूर्ण लगने लगा। अब वह अपने परिवार के साथ मस्त है और मण्डल के जागरण में तो आता ही है।
हताशा शब्द सुनने में जरूर हारे हुओं का अन्तिम सहारा लगता है, लेकिन हताशा में भी आशा की राह है, बशतेü हम ठण्डे दिमाग से सोचें। तूफान में घिरी नाव जब पलट जाती है, तो उसमें सवार कई यात्री तैरना नहीं आने के बाद भी थपेड़ों में हाथ-पैर मारते हुए किनारे तक पहुंच जाते हैं तो सिर्फ इसलिए कि हिम्मत नहीं हारते। भूकंप के बाद 10-१२ दिन मलबे में दबा कोई युवक ज़िन्दा निकल जाता है, तो इस चमत्कार के पीछे भी आशा ही होती है।
जिन्दगी में हम सब भी हताशा के अंधे मोड़ से कई बार गुजरे हैं। खुद को खत्म करना ही सबसे आसान रास्ता भी लगा था, लेकिन ऐसा नहीं कर पाए, तो उसी अदृश्य आशा के कारण। अब जब याद करें, तो कई ऐसे चेहरे, नाम और प्रसंग याद आ जाएंगे, जो हताशा के उस घुप्प अंधेरे मार्ग पर हमारे आगे रोशनी लेकर चले थे। उनके इस सहज व्यवहार से हमारा मन श्रद्धा से भर उठा था, लेकिन यह खुमार कुछ वक्त का ही था।अब तो गाहे-बगाहे ही हम उन प्रसंगों को याद कर पाते हैं, लेकिन मन ही मन एक फांस है, जो खटकती रहती है। इसकी टीस याद दिलाती रहती है कि हताशा के उन पलों में उन लोगों का साथ नहीं मिला होता, तो बाकी जीवन का आनन्द भी नहीं मिलता।
फिर कैसे उतारें वह अहसान? हम सब के आस-पास ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो मुसीबतों से घिरे होने के बाद भी संघर्ष तो करते हैं, लेकिन चेहरे की उदासी असलियत बयान कर देती है। दुख बांटने से कम नहीं हो सकता और किसी के दर्द की गठरी हम उठा भी नहीं सकते, लेकिन दर्द सुन कर राहत का मरहम तो लगा ही सकते हैं। सुख में तो किसी को किसी की जरूरत महसूस नहीं होती, लेकिन जब दुखों के बादल घेर लेते हैं, तब रोने के लिए कंधे भी नसीब नहीं होते और न ही आंसू पोंछने के लिए कोई रुमाल लेकर आगे आता है।
क्या हम किसी की मुसीबतों में मदद को तत्पर रहते हैं? जिसका हाथ चाकू से कटा है, उसका घाव भी समय रहते ही भरेगा, लेकिन हम हाथ पर बंधी पट्टी, चेहरे पर दर्द की लकीरें भी नहीं देख पाएं, तो फिर आंखेंे होना न होना एक समान है। वे आंखें तो वैसे ही काम की नहीं, जिनमें आंसुओं का डेरा न हो। अप्रत्याशित दुख के क्षणों में जब कई लोग मूर्तिवत हो जाते हैं, तब उन्हें भी थप्पड़ मारकर प्रयास किए जाते हैं किसी तरह आंख से आंसू टपक पडें आंखों से टप-टप गिरते आंसू भी दर्द में दवा का काम करते हैं। नीन्द में खोया बच्चा अचानक चमक कर रोने लगता है, लेकिन कंधे पर सिर रखकर थपकारते ही वह फिर सो जाता है, उस पल हमें कितना अच्छा लगता है। किसी को अपना कंधा उपलब्ध कराएं, आंसू पोंछें हताशा में घिरे किसी अपने के लिए आप आशा की किरण भी बन सकते हैं, आप के लिए भी तो कोई काम आया था।
निराशा मे छुपी आशा की राह दिखाता यह लेख बहुत अच्छा लगा..आभार!
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
bahut badhiyaa likhaa hain aapne.
ReplyDeletemain aapke inhi vichaaro ke kaaran aapke blog kaa kaayal hoon.
thanks and sorry for late commenting.
www.chanderksoni.blogspot.com
Prem Srdhye
ReplyDeleteSh.Kirti Rana ji
Sprem Nameskar,
Kon kehta h Aasman m chhed nahi ho sekta.
Ek pather to taviyet s uchhlo yaaro.
Aap n bhut hi prenna dayek lekh likha h.Aaj k mohal m yeh lekh bhut hi upyogi h.Aap n purnteya sahi likha h ki Aapne Aas-pas kisi ko hetash dekhye to use himet bedhenye.Ager hum sabhi aisa kerne leg jaye to koi bhi hetas nahi hoga.Duniya ki sabhi chintye khetem ho jaygi.
Aap ka yeh pachmel niras logo k liye bhut hi mehtevpurn h.
Yeh lekh nirsa m aasa jegta h.
Aap ko pachmel k liye sadhu-bad.
NARESH MEHAN
हताशा की गहरी खाइयों में आशा ही वह सहारा है जो हमें उबरने और जीने को उत्प्रेरित करती है। होली की रंगभरी शुभकामनाएं सर।
ReplyDeleteइस पर भी नजर डालें उदकक्ष्वेड़िका …यानी बुंदेलखंड में होली
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