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Wednesday, 10 February 2010

कुछ सीखने के लिए एक गलती करिए

जो काम करेगा गलती भी उससे ही होगी। समझदार एक गलती से कई बातें सीख लेता है, लेकिन जो बार-बार एक ही गलती दोहराता है, उसे कोई बर्दाशत नहीं करता। जितने भी आविष्कार हुए, उससे पहले वैज्ञानिकों ने भी खूब प्रयोग किए, असफल हुए, लेकिन हताश नहीं। हर असफलता में सफलता के कारण खोजे। एक परीक्षा, एक स्पर्धा में फेल होने का यह तो मतलब नहीं कि मैदान छोड़ दें, जीवन से मोह भंग हो जाए। पहली बार साइकिल, स्कूटर, कार चलाना सीखने पर एक बार तो धूल चाटनी ही पड़ती है, लेकिन गाड़ी सीखना नहीं छोड़ते, हां उस गिरने वाली घटना को जीवनभर याद रखते हैं।

रसोईघर में पहली बार जिन भी लोगों ने सब्जी बनाने, दाल में तड़का लगाने के बहाने पाक कला में अपनी निपुणता दिखाने का प्रयास किया है, उन्हें यह भी याद है कि गर्म हुए तेल-घी में कटी मिर्च, राई आदि डालते वक्त सजगता नहीं बरतने के कारण चेहरे-हाथ पर पडे़ तेल के छीटों से जलने के दाग कुछ दिनों तक पूरी कहानी खुद बयां कर देते थे। रसोईघर में पहली बार खाना बनाने के प्रयास में ज्यादातर किशोरियां अथवा पुरुष इस तड़के का शिकार होते ही हैं, लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता क्योंकि पहली बार हुई भूल से ही सबक मिल जाता है।
पहली बार पडे़ गर्म तेल-घी के छींटों से गृहिणियां घबरा जाएं तो? जाहिर है ऐसे सारे घरों में दाल-सब्जी के लिए तो होटल पर ही निर्भर रहना पडे़गा। ऐसा होता नहीं है या तो हम खुद ही अपनी गलती से सीख लेते हैं या घर के बुजुर्गजन पाक कला की खामियों को दूर करने के सुझाव-सलाह देकर हमारी नासमझी को दूर कर देते हैं। जल्दबाजी में हम एक बार ही बिना कपडे़ की सहायता से गर्म बर्तन पकड़ने की गलती करते हैं। जब अंगुलियों के पोर जलन से लाल सुखü हो जाते हैं, तो अगली बार गर्म बर्तन को नंगे हाथों से उठाने की गलती नहीं दोहराते।
जाहिर है जो काम करेगा, गलती भी उसी से होगी। हम से गलती तभी नहीं हो सकती है जब हम कुछ करें ही नहीं। तब होगा यह कि हमने जो सीखा-समझा है, उससे आगे भी नहीं बढ़ पाएंगे, हाथ पर हाथ धर के बैठे रहने वालों को न तो घर में सम्मान मिलता है और न संस्थान मे सराहना मिलती है। जो गलती के भय से हताश हो जाते हैं, वे जिन्दगी में हर मोड़ पर खुद को पराजित करते जाते हैं। जो गलतियों के कारण खोज लेते हैं, उन कमियों को सुधारते जाते हैं, एक दिन सफलता को भी उनके कदमों में आत्मसमर्पण करना ही पड़ता है।
ज्यादातर खेल समीक्षकों ने सचिन तेन्दुलकर की शैली को लेकर लिखा भी है। मैदान पर वे बॉलर की जिस बॉल से आउट होते हैं, अगली बार वे खुद बॉलर को वैसी ही घातक बॉल डालने के लिए उकसाते हैं। ऐसी स्थिति में बॉलर और प्लेयर दोनों को पता होता है कि यह बॉल आउट करने के उद्देश्य से ही डाली जा रही है। सचिन उसी घातक बॉल पर चौका-छक्का जड़ कर शतक पूरा कर लेते हैं। वे अपने खेल में सुधार तो करते ही हैं, यह भी बताते हैं कि सीखने, समझने और सुधार को लेकर आप बिना अहं और हताशा के संघर्षरत रहते हैं, तो पहले जिन गलतियों से असफलता मिली, भविष्य में वे ही गलतियां आपके लिए सफलता का रास्ता भी बन सकती हैं।
हमारे साथ दिक्कत यह है कि सफलता मिले तो सारा श्रेय खुद को, हल्की सी भी आशंका हो जाए कि असफलता हाथ लग सकती है, तो हम बहानों-कारणों की फेहरिस्त भी जेब में तैयार रखते हैं। विश्व में जितने भी आविष्कार हुए और हो रहे हैं, वैज्ञानिकों को पहली बार में ही सफलता नहीं मिल गई, हजारों बार प्रयास किए, सैकड़ोें गलतियां हुईं, लेकिन हर बार सबक मिला, सुधार किए तब कहीं सफलता मिली।
कोचिंग हो, स्कूल हो, संस्थान हो या समाज हर क्षेत्र में किसी की भी गलती को तभी तक नज़रअन्दाज किया जाता है, जब तक गलतियां एक सी न हों। बार-बार एक ही गलती करने वालों को तो द्वापर काल से ही बर्दाश्त नहीं किया जाता। धार्मिक ग्रन्थ प्रेमसागर में एक प्रसंग भी है शिशुपाल के अशालीन शब्दों को श्रीकृष्ण निरन्तर सुनते हैं। लगातार निन्यानवें बार भी उसकी अभद्र शब्दावली जारी रहती है, तो श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र चल पड़ता है शिशुपाल वध के लिए। वह द्वापर युग था जब श्रीकृष्ण ने इस हद तक सहनशील होने का सन्देश दिया था। अब कलयुग है शिशुपाल और दुर्योधन तो बहुत मिल जाएंगे, लेकिन कृष्णावतार की प्रतीक्षा सदियों से की जा रही है। अब दूसरी गलती पर तभी राहत मिलती है, जब वह पहली से अलग हो। गलतियों से सीखकर हम सफलता का नया रास्ता खोज सकते हैं, लेकिन नहीं समझें तो उम्मीदों के दरवाजे भी अपने हाथों बन्द कर देते हैं।

4 comments:

  1. सर आपको यहां देख कर बहुत सुखद आश्‍चर्य हुआ है। बहुत शानदार पोस्‍ट है।

    कई बार हमें दूसरों की गलती के लिए भी खामियाजा भोगना पड़ता है। अपनी गलती की सजा भोगना हो तो अफसोस नहीं होता लेकिन दूसरों के किए का दंड बहुत भारी पड़ता है।

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  2. bahut badhiyaa ji bahut badhiyaa.
    lage rahiye......
    thanks.
    www.chanderksoni.blogspot.com

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  3. Prem snehi,
    Sh Kirti Rana ji,
    Nameskar,
    Aaj Aap ka pachmel pdha.Aap n bhut hi shej or saral sewdo m sarthak baat likh di h.Jo gelti kerga vahi kuch sikhye ga.Yuva or kishor bachho k liye bhut hi prenadayak h yeh pachmel. Yuva kuch sikh sekte h is pachmel s.EK Gelti s kbhi hetash nahi hona chhiye.Yuva or Aam logo ko yeh pachmel pdhna chhiye is s unhye bhut hi labh hoga.
    Aap k yeh pachmel bhtekete insan k liye ek rasta h.Aap n bhut hi saral sewdo m bhit hi bedi baat keh di h.
    Aap ka lekh pdh ker lagta h kisi n tej germi m Iecream khila di ho.
    Aap ko payare se lekh k liye mitha sa sadhu-bad.
    NARESH MEHAN

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