नाम से काम होता हो या काम से नाम, यह तो तय मानना ही चाहिए कि नाम है तो उसका कुछ मतलब भी है। जन्म के बाद नाम मिलता है। जीवन के साथ और जीवन के बाद भी कुछ रह जाता है तो यही नाम। नाम से ही व्यक्ति और उसके व्यक्तित्व का निर्धारण होता है, नाम का इतना महत्व होते हुए भी हम में ज्यादातर लोग नाम को लेकर गम्भीर नहीं रहते जबकि घर में पाले डॉग को भी अपने नाम की अहमियत पता होती है। आंख मून्दे डॉग का धीरे से भी नाम पुकारें तो उसके कान खड़े होने के साथ ही पूंछ भी हरकत करने लगती है। सड़क से गुजर रही गाय को हम दूसरी मंजिल से गाय-गाय कहकर पुकारते हैं, वह गर्दन घुमाकर आवाज वाली दिशा में देखने लगती है।किसी सार्वजनिक समारोह में एक ही नाम के बीस लोग ही क्यों न जुटे हों लेकिन बात जब काम से जुड़े नाम की हो तो कोई एक आदमी ही प्रतिक्रिया देता है। आखिर ऐसा क्यों है कि कोई एक तो नाम से पहचान पा जाता है और उसी नाम वाले अन्य लोग या तो पहचान नहीं बना पाते या भीड़ का हिस्सा होकर रह जाते हैं। क्या हम अपने नाम की सार्थकता को लेकर वाकई प्रयासरत रहते हैं? कहने को तो कह सकते हैं नाम में क्या रखा है, मन समझाने को यह भी कह सकते हैं बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो हुआ! जन्म के बाद अनाम होने तक तो हमें कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन नाम जुड़ने और समझदारी विकसित होने के साथ ही हमारी एकमात्र चिन्ता रहती है बदनाम न हो जाएं। जिस सन्तान का हम नामकरण करते हैं उसे भी बात-बात पर उलाहना देते रहते हैं हमारा नाम मत डुबा देना। बदनाम होने पर नाम होना तभी अच्छा है जब हमारी बदनामी मीरा, राधा, सूर, कबीर, सुकरात जैसी हो जाए। यूं तो लैला-मजनूँ का भी नाम है लेकिन प्रेम की वैसी पवित्रता अब रही नहीं लिहाजा चाहे जिसे लैला-मजनूं कह कर इस नाम को भी हल्का बना दिया गया है।नाम को लेकर चिन्तित रहने वाले इस शब्द को पलट कर देखें तो मना बन जाता है जिसका सहज अर्थ है जिसे समाज स्वीकृति न दें या जिसे मन ना कहे वह काम न करें। इस मना का यदि हमेशा ध्यान रखें तो हमें नाम को लेकर तनाव में नहीं रहना पड़े। चौबीस घंटे में से कुछ वक्त नाम जप करके भी तनाव मुक्त रहा जा सकता है नानक से लेकर नरसी मेहता तक का नाम भी नाम जप से हुआ है।आगे निकलने की होड़ में जब मन की नहीं सुनते तो फिर नाम का ध्यान भी कहां रख पाते हैं।जितने भी इंसान हैं सबका कोई नाम है और वही नाम उनकी पहचान भी है। इतिहास की बात करें तो अकबर के नाम को जितना सम्मान मिल पाया उतना औरंगजेब को नहीं मिल पाया। शाहजहां के नाम से ज्यादा उनके कराए काम से ताजमहल का ज्यादा नाम हो गया। फिल्मों में शुरुआती भूमिका में सात हिन्दुस्तानी के एक कलाकार अमिताभ की पहचान कवि हरिवंशराय बच्चन के पुत्र के रूप में ज्यादा थी और आज अ अनार का नहीं अ अमिताभ का हो गया है।हम अपने आसपास तो नज़र डालें समाज, संस्थान, कार्य क्षेत्र में जितने भी लोग रोजमर्रा की जिन्दगी से जुड़े हैं उनमें से कितने अपने नाम को सार्थक कर पा रहे हैं। किसी को जल्दी तो किसी को देर से ही सही जो जिस क्षेत्र में है वहां काबिलियत दिखाने का अवसर तो हम सभी को मिलता ही है, लेकिन कितने लोग अवसर को झपटकर अपना नाम और अपनी पहचान बना पाते हैं। पूर्वजों द्वारा संचित संपत्ति कई लोगों को विरासत में मिलती है लेकिन मुकेश, अनिल अंबानी की तरह कितनी संताने खानदान के नाम की शान बनाए रख पाती हैं।अनाम जन्मते हैं और राम-नाम सत्य के उद्घोष के साथ शून्य में विलीन जरूर हो जाते हैं लेकिन श्मशान से चुनी जाने वाली अस्थियों, नदी में प्रवाहित की जाने वाली राख के साथ भी नाम ज़िन्दा रहता है। यही नहीं परदादा, दादा और पिताजी के चित्रों पर झूलते चन्दनहार से नहीं नाम से ही इन पूर्वजों को भावी पीढ़ी जानती है। अच्छा करें या बुरा नाम तो होना ही है। बुरे से नाम कमाने के लिए हिम्मत या बेशर्मी जरूरी होती है लेकिन अच्छे काम से नाम कमाने के लिए न धन चाहिए, न हिम्मत, बेशर्मी तो बिल्कुल नहीं चाहिए। अच्छा करके देश में नाम कमाने का सपना भी तभी साकार हो सकता है जब हम, जिस भी क्षेत्र में हैं वहां, कुछ अच्छा करने की शुरुआत करें। कुछ न करने वालों का सिर्फ मृत्यु प्रमाणपत्र में नाम होता है और जो कुछ प्रेरणादायी करके दिखाते हैं उनका नाम इतिहास में दर्ज हो जाता है।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...
bahut badhiyaa blog-post ki hain aapne.
ReplyDeletebahut kam log hi naam ki chintaa karte hain, joki dukhad hain.
thanks.
www.chanderksoni.blogspot.com
Prem snehi,
ReplyDeleteSh Kirti Rana ji,
Naeskar,
Aap ka bhut hi payra pachmel abhi manye pdha.
Nam Karm s benta h.Aap ager kam achhye kerty ho to Nam bhi hoga.
Aap n sahi likha h.hamye achhye kam kernye chhaiye.tebhi hamra nam hoga.yeh lek aap samaj k bhut hi bhiter s l ker aaye ho.Aaj hamre samaj m log jhuthye nam k liye led rehye h. sacha koye kam nahi kerna chhata h.
Aaj hem LETA JI SACHIN TEDULKER,ABHITAB BACHEN.
A.R REHMAN Sabhi ko unkye kam k karn hi unka Nam h.
Achhye kam keriye or NAM kamiye .
Aaj Achha pachmel k karn Aap k bhi NAM H.
Aap s prrena leni chhiye.
Aap ko NAM pachmel k liye.dhanyabad.
NARESH MEHAN
आज का 'पचमेल' भी भावपूर्ण व प्रेरणादायी है। यही हकीकत है कि कुछ न करने की वालों का सिर्फ मृत्यु-प्रमाण पत्र में नाम दर्ज होता है और जो कुछ प्रेरणादायी करके दिखाते हैं, उनका नाम इतिहास में दर्ज हो जाता है। यह पढ़-गुनकर निश्चय ही कोई गुमनाम मौत नहीं मरना चाहेगा। भीड़ का हिस्सा बनने की बजाय कुछ हटकर करना ही जीवन की सार्थकता है। ...मगर वह सब हो सकारात्मक। यहां मुझे राजस्थानी के कवि सुमनेश जोशी की पंक्तियां स्मरण हो रही हैं, जिसका भाव यह है कि कर्मठ व्यक्ति कभी नाम का भूखा नहीं होता। बलिदानी पथ के ऐसे पथिक तो महज काम पर भरोसा रखते हैं। सुनिए-
ReplyDelete'बीज गया पाताळ,
धरण सूं ऊपर तरवर छाया।
नींवां में गड गया जकां रा,
गीत न कोई गाया।
कोई गावै गीत, न गावै,
उणनै कद अभिलाषा।
मरण पंथ रा पंथी तो बस,
करम करण रा प्यासा॥'
इसी सन्दर्भ में कवि चंद्रसिंह द्रुतविलम्बित छंद में यूं कहते हैं-
तिसळ बीज पड़्यो धरणी तळै
छिप रह्यो जितरो जग आंख सूं
प्रगट मोह लियो सब रो हियो
सघण हो फळतो मनभांवतो।
जगत में मत सोच करो कदे
प्रथम ही निजरां जद नां चढ़ो
धरण में धंसियै नव बीज ज्यूं
सफळ हो रमस्यो जग आंख में॥
-सत्यनारायण सोनी, परलीका।
कुछ न करने वालों का सिर्फ मृत्यु प्रमाणपत्र में नाम होता है और जो कुछ प्रेरणादायी करके दिखाते हैं उनका नाम इतिहास में दर्ज हो जाता है।
ReplyDelete...सत्य वचन.