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Thursday 5 November 2009

उस शुभचिंतक का भी कुछ आभार व्यक्त करें

बात ज्यादा पुरानी तो नहीं है लेकिन मेरे मित्र के परिजनों जितना आश्चर्य मुझे भी है कि क्या ऐसी घटना के बाद भी कोई सही सलामत बच सकता है। हनुमानगढ़ से श्रीगंगानगर की ओर आ रहे हमारे मित्र जिस कार को ड्राइव कर रहे थे, अचानक उसका संतुलन सामने अंधगति से आ रहे एक ट्रक से बचने के चक्कर में गड़बड़ा गया। कार में बैठे अन्य तीन मित्र भी हक्के-बक्के रह गए।
गाड़ी ड्राइव कर रहे मित्र ने इस बेहद मुश्किल स्थिति में भी धैर्य नहीं खोया। ट्रक से जैसे-तैसे कार बचाई तो आगे अंधेरी सड़क पर लोहे के सरिए लादे एक ट्रैक्टर-ट्राली बिगड़ी हालत में खड़ी थी। मित्र ने उसी सजगता के साथ गाड़ी विपरीत दिशा में तेजी से मोड़ दी। उस तरफ विशालकाय पेड़ था, एक पल की देरी उन सभी मित्रों की असमय मौत का कारण बन सकती थी। मित्र ने फिर त्वरित निर्णय लिया और बाकी मित्रों की भयमिçश्रत चीख को अनसुना करते हुए उसी तेजी से गाड़ी सीधे हाथ की तरफ मोड़ दी।
मात्र कुछ मिनट जीवन और मौत के बीच चले इस खेल में उन चारों मित्रों को असमय होने वाली मौत के बाद की स्थिति का तो अहसास करा ही दिया था। इससे बढ़कर, जीवन रूपी उपहार कितना अनमोल है, इसका पता भी इन्हीं कुछ मिनटों में उन्हें लग गया था।
हम सबके साथ भी ऐसा कुछ अप्रत्याशित कभी ना कभी तो घटित हुआ ही है। तभी हम इसे अपनों की दुआ, ईश्वर की कृपा तो कभी यह कहकर याद रख लेते हैं कि अभी जिंदगी बाकी है, इसीलिए बच गए। कोई माने या ना माने लेकिन मैं मानता हूं कि ऐसी कोई अदृश्य शक्ति या ताकत है जो ऐसे बुरे वक्त में हमारी रक्षा करती है। यह ठीक है कि जिस दिन मौत लिखी होगी हल्की सी ठोकर या पानी पीते वक्त लगा ठसका भी इसका कारण बन जाएगा, लेकिन जब लगे कि क्वबस उस वक्त तो मर ही जाते, किसी चमत्कार से ही बच गएं तो मान लीजिए यह चमत्कार ही वह अदृश्य शक्ति है।
कभी किसी दिन सिर्फ इसी उद्देश्य से कुछ पल आंखें मूंदकर सोचें तो सही कि कितनी बार हमें ऐसे चमत्कारों से जीवनदान मिला। तो कुछ पल के लिए बंद आंखों में हमें फूलमाला चढ़ी अपनी तस्वीर दो-चार कोनों में तो नजर आ ही जाएगी।
वह कौन है जो हमें बचाता है? न हमारे पास उसका पता है और न ही उसके बारे में ज्यादा कुछ पता है। पर कोई तो है जो हम पर बुरी नजर रखने वालों पर नजर रखता है। कई बार जब एक्सीडेंट में अंग भंग हो जाए, तब भी हमारा इस अदृश्य ताकत से विश्वास नहीं उठेगा।
बशर्ते हमारी सोच पॉजिटिव रहे। हमें यह सोचकर संतोष करना ही होगा कि ऑयल डिपो में लगी भीषण आग में कुछ लोगों की मौत के बाद भी यदि कुछ कर्मचारी सिर्फ घायल हुए तो यह ऊपर वाले की कृपा ही है।
जो हम पर कृपा करते हैं, क्या हम उनके प्रति कृतज्ञता का भाव भी रखते हैं? यदि हम मन से ऐसा करने लगें तो ईसाई समाज की तरह प्रभु की पल-पल होने वाली कृपा के प्रति हमारे मन में भी कृतज्ञता का भाव हिलोरे मारने लगेगा। अच्छा देखने, अच्छा करने, अच्छा सोचने की ओर अग्रसर होंगे तो हमारे साथ बुरा होने पर भी हम उसमें अच्छा ढूंढने की दृष्टि पा सकेंगे। इसीलिए तो हमारे पुरखे कह भी गए हैं-जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि! बीते हुए कल से सबक लेकर हम आने वाला कल तो बेहतर बना ही सकते हैं।
हमारे सुख-दुःख में जो मित्र-रिश्तेदार काम आते हैं, उनके प्रति तो हम फिर भी थैंक्स कहकर मैनर्स की कमी न होने का एहसास करा देते हैं लेकिन सुबह हमारे उठने से भी पूर्व से लेकर सोने के बाद तक जो जागता रहता है, उस अदृश्य शुभचिंतक के लिए हम क्या कर पाते हैं? मुझे लगता है उन्हीं लोगों को अच्छी नींद आती होगी जो रात को सोने से पहले प्रार्थना के माध्यम से अच्छे दिन के लिए आभार व्यक्त करने के साथ ही अगला दिन और बेहतर गुजरे, इसकी शुरुआत भी प्रार्थना से करते होंगे।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...

3 comments:

  1. बहुत सही बात लिखी है उस अपने शुभचितक का सदा धन्यवाद करना चाहिए.....बढ़िया पोस्ट है....

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  2. excellent.
    sorry for very-very late response (comment). maine yeh post usi din padh li thi, jis din aapne yeh post likhi thi. lekin reply/comment aaj kiyaa hain.
    again sorry.

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  3. .....yahi to hai jo ye kahne ke liye badhya karta hai............ kashti ka musafir hun,us paar utarna hai. mallah ke haathon me jeena or marna hai. jeena hai samander ke seene se lipat jaana, sahil ki taraf badhana, jeena nahi marna hai......RAJESH CHADHA, ALL INDIA RADIO, SURATGARH.

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