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Wednesday 11 November 2009

ठंडे दिमाग से सोचें कौन खरा, कौन खोटा

हमारे वार्ड और शहर का भाग्यविधाता होने लायक कौन है? प्रमुख राजनीतिक दलों ने तो तय कर दिया है, परंतु शहर के विकास की कसौटी पर कौन-कितना खरा उतरेगा यह वक्त बताएगा। एक पखवाड़ा है मतदाताओं के पास अपना नुमाइंदा चुनने के लिए, इतना समय कम नहीं होता।
घोषित किए गए प्रत्याशी क्या वाकई आपका नेतृत्व कर सकेंगे? राजनीतिक दलों ने इन्हें जिन खासियत के आधार पर प्रत्याशी घोषित किया है अधिकांश वार्डों के मतदाता इन प्रत्याशियों का रिकार्ड बेहतर जानते हैं। कैसे नेताओं की नजर में चढ़े, कैसे जुगाड़ करके टिकट कबाड़ा यह गुणगान तो दलों के वे ही दावेदार कर रहे हैं जिन्हें योग्य नहीं माना गया। हमारे नहीं चाहने के बावजूद अच्छे लोगों के साथ सट्टा, जुआ, अवैध शराब बिक्री, शांतिभंग जैसे आपराधिक प्रकरणों में उलझे प्रत्याशी भी मैदान में आ ही रहे हैं। किसे चुनना, किसे खारिज करना यह आपका अधिकार है। शपथ पत्रों में कितना सच होता है, यह झूठ भी छिपा नहीं है। वैसे भी आपको इन सबका कच्चा चिट्ठा मुंहजबानी याद तो है ही। कई वाडोZ में यह स्थिति भी बन सकती है जितने प्रत्याशी हैं, उन सब में अच्छाई ढूंढने से नहीं मिलेगी। तब सबसे आसान तरीका तो यही है कि मतदान ही नहीं किया जाए, पर यह हल नहीं है। फिर हमें कम बुराई वाले को चुनने की मजबूरी का पालन करना पड़ सकता है। ऐसा करते समय उस प्रत्याशी पर पूरे वार्ड के मतदाताओं का इतना दबाव भी हो कि वह चुनाव जीतने पर अदृश्य न हो।
जिन प्रत्याशियों को विभिन्न दलों ने चुनाव लड़ाना तय किया है, वे आपके वार्ड की समस्याओं को जानते भी हैं या नहीं। परिषद की बैठकों में पांच साल गूंगे-बहरे तो नहीं बने रहेंगे? अंगूठा छाप होना कलंक माना जाता है, इसलिए गांव-ढाणी में आदिवासी परिवार भी अपनी लड़कियों को शिक्षा दिलाने लगे हैं। ऐसे में आपका प्रत्याशी अंगूठा छाप कैसे हो सकता है। वह भी तब जब उसके निर्वाचन का निर्णय करने वाले वार्ड के अधिकांश मतदाता 12वीं या उससे ज्यादा पढ़े लिखे हों। वोट मांगने जो भी आए उससे इतना पूछने की हिम्मत नहीं, हमारा हक है कि वह बताए कहां तक पढ़ा है, आपराधिक प्रकरणों की क्या स्थिति है और उसे क्यों जिताया जाए? 23 नवंबर तक सब कुछ आपके हाथ में हैं। गलत चुनाव किया तो पांच साल हाथ मलते रहने के अलावा कुछ नहीं कर पाएंगे।

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