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Wednesday, 18 November 2009

काम को ही पूजा बनाकर देखें

आधी रात का वक्त था जब श्रीगंगानगर से जयपुर के लिए चली निजी बस पल्लू स्थित उस ढाबे पर चाय-पानी के लिए रुकी। कुछ अंतराल के बाद एक के बाद एक बसें वहां रुकती गईं और यात्री चाय-नाश्ते-भोजन के लिए उतरते रहे। पहले टोकन लेने के लिए काउंटर पर भीड़ लगी और फिर ये यात्री चाय-काफी के लिए निर्धारित काउंटर पर पहुंच गए। मेरा ऑर्डर चूंकि कम शक्कर कॉफी का था इसलिए मुझे कुछ अतिरिक्त वक्त रुकना पड़ा। होटल का चाहे आर्डर मास्टर हो या पान दुकानदार बड़ी गजब की याद्दाश्त होती है इन लोगों की। उस काउंटर पर चाय उकालने के साथ ही मास्टर दाल तड़का, आलू-मटर, स्टफ टमाटर, गोभी-मटर भी आर्डर मुताबिक फटाफट प्लेट में डालता जा रहा था। आर्डर की इस फेहरिस्त में उसे लोगों से टोकन लेना भी याद था।
मुझे उस दस-पंद्रह मिनट के स्टाप, बसों की आवाजाही यात्रियों के आर्डर के बीच जो महसूस हुआ वह यह कि उस मास्टर का सारा ध्यान आर्डर मुताबिक सामान तैयार करने पर ही था। हल्की-फुल्की बातचीत में उसने जो कुछ बताया वह यह कि उसके काम के कारण ही ढाबा संचालक उसे खुश रखने के पूरे प्रयास भी करता है कि कहीं वह छोटी-मोटी बात पर छोड़ न जाए। समझने की बात यह है कि आज जिस भी क्षेत्र में हों यदि आप के काम या हुनर में दम है तो प्रशंसा और पुरस्कार तो आपके लिए कतार लगाकर खड़े रहेंगे।
दूर क्यों जाएं अपने सचिन तेंदुलकर को ही लें। सतत् 20 साल से देश के लिए क्रिकेट खेल रहे हैं, रिकार्ड के मामले विश्व में नंबर वन हैं। जमाना लताजी, अमिताभ, शाहरुख का दीवाना है और ये सब सचिन के फैन हैं। बात वही है काम में दम, चाहे खेल हो, चाय-पान की रेहड़ी, टेलर्स, गाड़ी सुधारने वाला मैकेनिक, गोलगप्पे, टमाटर सूप बेचने का ही काम क्यों न हो। क्या कारण है कि चाय-पान की दस दुकान छोड़कर हम वहीं जाते हैं, सूप भी किसी एक रेहड़ी वाले के यहां ही पीना पसंद करते हैं और एक जैसी दवाइयां सारे मेडिकल स्टोर पर मिलने के बावजूद किसी एक दुकान से ही खरीदते हैं। गोलगप्पे की एक साथ दो रेहड़ी लगी हो तब भी एक के यहां ग्राहकों का आलम यह रहता है कि मुफ्त में खिला रहा हो और दूसरे की आंखें ग्राहकों के लिए तरसती रहती हैं। बात वही है काम या आपके हुनर में दम। क्रिकेट में या सचिन के रिकार्ड में हो सकता है कई लोगों की दिलचस्पी नहीं भी हो लेकिन सचिन का लगातार 20 वर्ष निर्विवाद खेलते हुए रिकार्डो के शीर्ष पर पहुंचना यह तो सिखाता ही है कि हम चाहे क्षेत्र में हों अपने काम को पूजा समझें, धैर्य रखें, विवादों में न पड़ें, कार्यालयों में चलने वाली राजनीति में वक्त जाया न करें तो दुनिया की कोई ताकत हमें अपने क्षेत्र में आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती। जहां काम ही आपकी पहचान हो वहां सिफारिश और रिश्तेदारी को नीचा ही देखना पड़ेगा। महज रिश्तेदारी से ही सफलता मिलती होती तो अभिषेक बच्चन को कभी से शाहरुख-सलमान से आगे हो जाना था। सचिन के साथ ही शुरुआत करने वाले उनके ही दोस्त विनोद कांबली को क्रिकेट छोड़कर लाफ्टर शो, सच का सामना, बिग बॉस जैसे कार्यक्रमों का सहारा नहीं लेना पड़ता।
'वर्क इज वर्शिप' का हम हर दो-चार दिन में तो इस्तेमाल कर ही लेते हैं लेकिन न तो पूजा निष्काम भाव से कर पाते हैं और न ही काम को पूजा की तरह करने की कोशिश में सफल हो पाते हैं। सुबह से ही रात तक काम में जुटे रहें लेकिन हमारा मन ही हमें शाबाशी न दे तो यह तो एक ही स्थान पर सुबह से रात तक दौड़ने जैसा ही होगा। काम के बाद आराम का अहसास तभी हो सकता है जब राम (पूजा) भाव ही उसे किया हो।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...

3 comments:

  1. न तो पूजा निष्काम भाव से कर पाते हैं और न ही काम को पूजा की तरह करने की कोशिश में सफल हो पाते हैं।

    बहुत खूब कहा आपने। सुन्दर आलेख।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. आपकी लेखनी में जादू सा है...ऐसे वृत्तांत तो हर जगह घटित होते रहते है ..पर सुन्दर शब्दों से सजाकर ऐसा चित्र खींच डालना आपकी विशेषता है...साधारण घटनाओं में साधारण लोगों में ऐसी प्रेरणा ढूंढना महत्वपूर्ण है...

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  3. badhiyaa likhaa hain aapne.
    aas-paas ghatit hone waali roz-marraah ki kahaaniyon ko aap behtar shabd de daalte hain.........

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