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Thursday 1 October 2009

अपनों की तारीफ करना भी तो सीखिए

गली में चल रहे मकान निर्माण कार्य में लगे मजदूर एक-दूसरे के सहयोग से अपना काम तेजी से निपटाने में लगे हुए थे। यूं तो एक मजदूर के लिए एक बोरी सीमेंट उठाना मुश्किल हो सकता है लेकिन वे दोनों आपस में बंधे हाथों पर दो बोरी सीमेंट अंदर रख रहे थे। साथी हाथ बढ़ाना की थीम से मुश्किल काम भी उनके लिए आसान हो गया था।

अनपढ़, निम्न वर्ग जैसी छवि का शिकार झुग्गी-झोपडियों में जिंदगी गुजारने वाला यह वर्ग हम सबके लिए पक्के-मनमाफिक मकान का सपना पूरा करने में जुटा रहता है। एक-दूसरे के सहयोग से इनकी मजदूरी भी चलती रहती है और जिंदगी भी। मुझे लगता है परिवार या व्यवसाय में भी एक-दूसरे के सहयोग बिना काम नहीं चल सकता। जिंदगी के सफर की यह गाड़ी भी तब ठीक तरह से चल सकती है, जब एक-दूसरे की खूबियों की सराहना के लिए शब्द सुरक्षित रखें न कि खामियां गिनाने में वक्त जाया करें। अपने दिल पर हाथ रखकर पूछेंगे तो मन की आवाज सुनाई देगी। हम ऐसा कर ही नहीं पाते।

परेशानी यह रहती है कि हमें अपना कार्य तो श्रेष्ठतम लगता है लेकिन तारीफ करना तो दूर हम तो बाकी लोगों के काम को नकारात्मक नजरिए से देखते हैं। नतीजा यह कि चाहे परिवार हो, कार्यालय हो या खुद का कारोबार। साथियों-परिजनों के सहयोग की अनदेखी, अच्छे कार्य की सराहना में कंजूसी हमारे संबंधों में भी खटास पैदा कर देती है। अज्ञात खौफ के कारण आपके सहयोगी अपनी पीड़ा व्यक्त तो नहीं करते लेकिन उसका असर उनके काम में नजर आने लगता है, जिम्मेदारी का भाव लापरवाही में तब्दील होता जाता है।

दूर क्यों जाएं अपनी पारिवारिक व्यवस्था ही देख लें। पुरुषों को दुकान, नौकरी, ऑफिस संभालना है तो महिलाओं का सूर्योदय किचन से और गुडनाइट भी किचन से ही होती है। स्कूल के लिए बच्चों को तैयार करने के साथ ही 'आज क्या बनाऊं' जैसे यक्ष प्रश्न से जूझती गृहिणियां परिवार के सभी सदस्यों की पसंद और टेस्ट का ध्यान रखते हुए खाने में जो भी बनाती हैं, अच्छा ही बनाती हैं।

अच्छे भोजन के लिए तो तारीफ के फूल नहीं झरते लेकिन जिस दिन चाय में शक्कर या सब्जी में नमक न हो, उस दिन बाकी परिजन आसमान सिर पर उठा लेते हैं। बिना नमक वाली सब्जी बाकी दिनों के अच्छे भोजन पर भारी पड़ जाती है। क्या बकवास सब्जी बनाई है, नमक ही नहीं डाला, खाने का मजा बिगड़ गया... जैसे उलाहनों की झड़ी लग जाती है। ढाई-तीन साल की उम्र में हम सबने बोलना सीख लिया था लेकिन हममें से ही ज्यादातर मरते दम तक यह नहीं सीख पाते कब, कहां, क्या, कैसे बोलना और कहां चुप रहना है। कम नमक की शिकायत का एक अंदाज यह भी तो हो सकता है- सब्जी तो बहुत टेस्टी बनी है, नमक शायद मुझे ही कुछ कम लग रहा है, हो सकता है काम के बोझ में तुम्हे न रहा हो। आए दिन हम विवाह समारोह में जाते हैं, भोजन भी करते हैं लेकिन याद रहती है वही डिश जिसमें कुछ कमी हो और बस उसी के आधार पर हम आलोचना के प्याज छीलने बैठ जाते हैं। यह भी याद नहीं रखते कि जिसने आपको प्रेम से आमंत्रित किया है, खाना उसने नहीं बनाया है और न ही उसका यह उद्देश्य रहा होगा। वह गलती यह कर लेता है कि आपसे पूछ लेता है कि खाना खाया या नहीं और आप दही भल्ले, सलाद या पनीर सब्जी की कमियां गिनाने बैठ जाते हैं। तब आप यह भूल जाते हैं कि किसी दिन आपके साथ भी ऐसा हो जाए तो?

कई मामलों में निजी कार्यालयों के कर्मचारी मुझे ज्यादा समझदार लगते हैं जो कई बार भांप लेते हैं कि बॉस को उनकी कही बात या किया गया काम समझ नहीं आ रहा है लेकिन चतुर मातहत 'आप मेरी बात नहीं समझें की अपेक्षा बड़ी विनम्रता से कह देता है, 'सर, मैं आपको समझा नहीं पा रहा हूँ' नौकरी हो या रिश्तों के नाजुक धागे इनकी मजबूती आप अपने अभिव्यçक्त कौशल से ही बनाए रख सकते हैं। कार्यालयों-व्यवसाय में तो फिर भी हम सब का यह प्रयास रहता है कि मातहत बेवजह नाराज न हों क्योंकि काम उनके सहयोग बिना हो भी नहीं सकता। बुखार की परवाह किए बिना कामवाली बाई झाडू-पोछा करने आ जाए तो तबीयत ठीक न होने तक काम पर नहीं आने की सलाह वाली मानवीयता भी हम दिखा देते हैं। ऐसी सारी उदारता के बीच हम अपनों के ही प्रति स�त कैसे हो सकते हैं? नजरिया तो यही होना चाहिए कि जो काम करेगा गलती उससे ही होगी, फिर बिना शक्कर की चाय, बिना नमक वाली सब्जी क्यों सिर चढ़कर बोलने लगती है?

किसी के काम में गलती निकालना, नाराजी व्यक्त करना तो बहुत आसान है लेकिन वही काम जब खुद करना पड़े तो? वक्त आने पर बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना तो दूर एक कप चाय तक नहीं बना सकते और ऐसा दुस्साहस कर भी लें तो किचन खुद सारी कथा बयान कर देता है। फिर हमें अपनों के छोटे से काम की तारीफ क्यों नहीं करनी चाहिए। हम कार चलाने में चाहे जितने एक्सपर्ट हों लेकिन अचानक कार रुक जाए, इंजन भी आवाज न करे तो मैकेनिक को ही मदद के लिए बुलाना पड़ेगा। आपका काम महान है लेकिन दूसरे का काम भी घटिया नहीं है। दूसरों के काम की सराहना करने के लिए भी कुछ शब्द सुरक्षित रखिए ये शब्द आपकी पीठ पीछे प्रशंसा के पेड़ बनकर लहलहाते हैं।

अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...

2 comments:

  1. Aapke aaj ke Artical main Guruji Sri Sri Ravishankar ji ke Knowledge point "DUSRON KI GALTION KE PICCHE IRADA NA DEKHEN" Ki Jhalak Milti Hai...

    Padh kar Aacha Laga.....

    Aapke Balog Main Clock ka Time Galat Hai... Plz Sahi Kijiye.... "Flling Girl" bhi Kuch Jach Nahi Rahi...

    Ravi Adlakha

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  2. निश्चित ही तारीफ करना चाहिये, यह एक कला है जिसमें सबको पारंगत होने का प्रयास करना चाहिये.खम्मा घणी-सा...

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