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Wednesday, 7 October 2009

श्रेय को भी बांटना सीखें

अभी भारत विकास परिषद के आयोजन राष्ट्रीय समूहगान स्पर्द्धा को देखने-सुनने-समझने का अवसर मिला। यूं देखा जाए तो इसमें श्रीगंगानगर, सूरतगढ़, हनुमानगढ़, बीकानेर आदि स्थानों पर हुई स्पर्द्धा में कुछ स्कूलों के दलों की भागीदारी थी। स्पर्द्धा में किसी एक दल का ही चयन प्रथम स्थान के लिए होना था। जो सीखने और जीवन के संदर्भ में समझने की बात है, वह यह कि किसी भी क्षेत्र में नंबर वन पर आने के लिए प्रयास तो सभी करते हैं लेकिन पहुंचता वही है जिसके प्रयास ज्यादा कारगर होते हैं। बाकी तो नंबर दो-तीन-चार रह जाते हैं। स्पर्द्धाओं का यह कड़वा सच है कि प्रथम रहे खिलाड़ी या टीम का नाम ही याद रहता है। इतिहास में भी तो ऐसा ही कुछ होता है। या तो हमें अकबर महान याद है अथवा कट्टर छवि वाला औरंगजेब। बाकी सम्राट-नवाब इतिहास के किस कोने में हैं याद नहीं।

नंबर वन तक पहुंचने के लिए सभी स्कूलों की टीम ने प्रस्तुति में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन प्रथम वाले मापदंड तक कोई एक टीम ही पहुंची। मुझे लगता है एक जैसे सामूहिक प्रयासों से यदि मनचाही सफलता प्राप्त की जा सकती है तो किसी एक कमजोर कड़ी के कारण शिखर तक पहुंचने से पहले पैर फिसल भी सकता है। कहीं बच्चों ने अच्छा गाया तो संगीत कमजोर था, कुछ बच्चों ने बिना म्यूजिक टीचर के ही तैयारी की, कहीं ड्रेसकोड आकर्षक नहीं था तो किसी दल के छात्रों के चेहरे पर गीतों के बोल वाला उत्साह नहीं था, किसी दल में गीत तैयार कराने वाले प्रशिक्षक की मेहनत कम नजर आई तो किसी दल के छात्र बस इसी भाव से मंच पर आए कि गीत प्रस्तुत करना है, कहीं छात्रों में उत्साह था लेकिन टीचर-प्रशिक्षक थके-थके से थे। ये सारी कमियां जहां न्यूनतम थीं, वही दल दर्शकों की नजर में नंबर वन बन गया था, निर्णयको ने बाद में जब निर्णय सुनाया तो दर्शकों के फैसले की पुष्टि भी हो गई। क्षेत्र चाहे गीत-संगीत का हो, खेल का मैदान हो या प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की बात हो। किसी भी क्षेत्र में लक्ष्य प्राप्त के लिए यदि शत-प्रतिशत समर्पण नहीं है तो सफलता भी आधी अधूरी ही मिलेगी। किसी टीम को सफलता तभी मिलती है जब उसका प्रत्येक सदस्य अपना काम पूरे समर्पण से करे। लंका फतह करना इसीलिए आसान हो गया था कि हनुमान सहित सभी वानरों ने अपना काम समर्पण-भक्ति-आस्था से किया और समुद्र पर पुल बना डाला।
धर्मग्रंथों के ऐसे प्रसंग हमें सिखाते तो बहुत कुछ हैं लेकिन हमारा स्वभाव ऐसा है कि अपने आगे किसी अन्य का सहयोग श्रेष्ठ नजर ही नहीं आता। अच्छा हुआ तो मेरे कारण, काम बिगड़ा तो बाकी लोगों ने सहयोग नहीं किया, जिम्मेदारी नहीं समझी वगैरह....। ढेर सारे सदस्यों वाली टीम भी कई बार निर्धारित लक्ष्य तक इसलिए नहीं पहुंच पाती कि उसके सदस्यों में अपने ही साथियों की खामियां तलाशने का उत्साह अधिक रहता है।
बचपन में पढ़ी-सुनी यह कहानी हम सभी को याद है जो काम के नाम पर दिखावे और मन से किए प्रयास इन दोनों स्थितियों का सामना करने के बाद मिली सफलता को दर्शाती है। नदी किनारे के एक पेड़ पर चिçड़या का घोंसला था, चिçड़या के नवजात चूजे घोंसले में चीं-चीं करते उछलकूद कर रहे थे कि अचानक एक चूजा नदी में गिर गया। बहाव हल्का था लेकिन चिडिया को सूझ नहीं रहा था कि मुसीबत से कैसे निपटे। चिडिया ने अपने पड़ोसी बंदर भैया से सहयोग मांगा, उसने आश्वस्त किया मैं तुम्हारे चूजे को बचाने का प्रयास करता हूं। बंदर एक से दूसरे-तीसरे पेड़ पर छलांग लगाने लगा, नीचे वह नन्हा चूजा चिडिया की नजरों से दूर होता जा रहा था। उसने अनुरोध किया- बंदर भैया कुछ करो। उसका जवाब था- चिडिया बहन, तुम देख तो रही हो कितने प्रयास कर रहा हूं, आगे भगवान की मर्जी।
अब तक चिडिया मुसीबत का सामना करने का मन बना चुकी थी। ठंडे दिमाग से कुछ सोचा और पेड़ की सूखी-पतली टहनियां चोंच में दबाकर नदी में चूजे के आसपास डालने लगी। थोड़ी ही देर के इस सार्थक प्रयास का नतीजा यह हुआ कि चूजे के लिए वे तिनके डूबते का सहारा बन गए। जैसे-तैसे वह नन्हा उन तिनकों के सहारे किनारे की ओर आया। चिडिया ने उड़ान भरी और उसे पंजे में सहेज कर घोंसले में ले आई। इस कहानी का मुझे तो यही संदेश समझ आया है कि ईमानदारी से प्रयास किए जाएं तो देरी से ही सही सफलता मिलती जरूर है। सवाल ये उठता है कि हम ईमानदारी से प्रयास करते भी हैं या नहीं, हम तो नंबर वन पर रहने वालों से सीखने के बजाय सारा वक्त इसी उधेड़बुन में लगा देते हैं कि उसे यह सफलता किसकी सिफारिश से मिली।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...

1 comment:

  1. bahut-bahut badhiyaa likhaa hain aapne.
    i liked it very much.
    aap likhte bahut badhiyaa hain, aapki baaton main dum/vajan hotaa hain.
    mujhe aapki lekhni bahut pasand hain.
    kripyaa hafte main ek baar likhne ke bajaay kam se kam do baar likhnaa shuru kijiye.
    mujhe aapke blog ka intazaar rehta hain.
    thanks.

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