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Tuesday, 17 March 2009

आपने नाम भी लिखा या नहीं बधाई के एसएमएस में

इस बार होली पर आप सब की तरह मुझे भी बधाई के सैकड़ों एसएमएस मिले। आप सभी ने इन संदेशों में दो बातें गौर की होंगी, एक तो ज्यादातर में पानी बचाने की भावना भी शब्दों से बयां हो रही थी और दूसरी बात थी एसएमएस भेजने वाले ज्यादातर मित्र अपना नाम लिखना भूल गए थे। कई मैसेज की भाषा एक समान थी यानी जो मुझे मिला, मैंने वहीएसएमएस अन्य को फारवर्ड कर दिया। क्या मोबाइल के का हम पर इतना हुक्म चलने लगा है कि अपनी भावना शब्दों में व्यक्त करना भी भूल गए। संता-बंता डॉट कॉम के जोक्स पर तो किसी का अधिकार नहीं हो सकता, लेकिन आप अपना एसएमएस तो तैयार कर ही सकते हैं। आप लिखने की आदत तो डालिए, कुछ अच्छा ही लिखेंगे। एसएमएस ने चिट्ठी लिखने की आदत तो खत्म कर दी है, लेकिन साल भर में कुछ ही तो मौके आते हैं जब आप को एसएमएस का धर्म निभाना पड़ता है। चिट्ठी की तरह संदेश में कुछ मौलिकता होगी तो वह ज्यादा असरकारी साबित होगा। तो तय रहा कि आप भी अपनों को खुद का सोचा एसएमएस तो भेजेंगे ही, नीचे अपना नाम लिखना भी नहीं भूलेंगे। यह इसलिए भी जरूरी है कि मोबाइल की मैमोरी ने हम सब की मैमोरी इतनी कमजोर कर दी है कि जिन लोगों के साथ रोज उठते-बैठते हैं उनके भी मोबाइल नंबर याद नहीं रहते फिर सैकड़ों एसएमएस में कैसे संभव है कि बिना नाम वाला आपका संदेश याद रहेगा ही। बाद में आपको अपने मित्रों, रिश्तेदारों का उलाहना भी सुनना पड़ेगा हमारे एसएमएस का जवाब तक नहीं दिया।
क्या है यहां घूमने के लिए
गंगानगर को पर्यटन नक्शे पर स्थान दिलाने के लिए प्रशासन को भी जिद करना ही चाहिए। आज भी इस शहर की पहचान के नाम पर किन्नू और बॉर्डर का ही जिक्र किया जा सकता है। बिहाणी कालेज के डायरेक्टर रह चुके वीके मिश्रा जैसे सैकड़ों परिवार इस शहर से प्यार की खातिर यहां बस गए हैं लेकिन इन सब का यह दर्द शहर के प्रति अपनापन भी जाहिर करता है कि यहां ऐसा कुछ है ही नहीं कि घूमने के लिए रिश्तेदारों को निमंत्रित करें। कोई आ भी जाए तो जगदंबा अंध विद्यालय-मंदिर दिखाने कितनी बार ले जाएं। यहां से लोकसभा, विधानसभा में जीत कर जाने वालों के लिए शहर के लोगों का यह दर्द चुल्लूभर पानी में जलसमाधि लेने जैसा माना जाना चाहिए। शहर की व्यवस्थित बसाहट, गंगनहर लाने का श्रेय तो महाराजा गंगासिंह के खाते में दर्ज है बाकी विधायक-सांसद ने क्या निहाल कर दिया और अब चुनाव लड़ने के सपने देखने वाले क्या बेलबूटे लगा देंगे। शासन की योजनाओं का सफल क्रियान्वयन तो जिला प्रशासन को इसलिए कराना ही है कि सीएम की नजर में वे असफल न दिखें। शहर के कायाकल्प के बारे में सोचना ही चाहिए गंगानगर क्लब, गंगानगर ट्रैडर्स एसोसिएशन जैसे संपन्न संगठनों की कमान युवाओं के हाथ में है। संस्थाओं, संगठनों की जनभागीदारी से कुछ काम ऐसे भी हों कि लोग यहां घूमने आएं और शहर की अच्छी छवि लेकर जाएं।
राहत मिली होगी जनवादी नेत्री को
जनवादी नेत्री दुगाü स्वामी को तो पुलिस का आभार व्यक्त करना चाहिए कि पुलिस ने पर्स लूटने वालों को पकड़ तो लिया। वरना बढ़ते अपराधों के खिलाफ उन्हें पुलिस के खिलाफ मोचेü का नेतृत्व भी करना पड़ता। निश्चित ही पुलिस उन बदमाशों से पूछ रही होगी कि पर्स में दुखियारी महिलाओं के ज्ञापन-आवेदन के अलावा क्या था। इन गुंडों को पकड़ने की खुशी मनाने से पहले पुलिस प्रशासन परचुन दुकान संचालक अशोक गुप्ता वाली फाइल भी पलट ले, चार आरोपी आज तक नहीं पकड़े जा सके हैं।
पुलिस को तो आपकी ही फिक्र है
हनुमानगढ़ में गांधीगिरी के बाद अब पुलिस प्रशासन को हेलमेट के फायदे के लिए मनुहार गीत गाने पड़ रहे हैं। कितना अजीब है लोगों की चिंता पुलिस कर रही है। हेलमेट को जो लोग मुसीबत मानते हैं जरा जयपुर, दिल्ली, मुंबई की सड़कों पर बिना हेलमेट तो गाड़ी चलाकर देखें। जयपुर की सीमा में प्रवेश करते ही हेलमेट, सीट बेल्ट का पालन मन से ही करने लग जाते हैं। क्या माना जाए वहां की पुलिस मजबूत है या लोग ज्यादा समझदार हैं। दूध में मिलावट, असली के नाम पर नकली घी का कारोबार हनुमानगढ़ में खूब फल-फूल रहा है, नोहर के बाद संगरिया में कारüवाई से मिलावट के खेल को समझा जा सकता है। नकली घी की बरामदगी यह भी दशाüती है कि मिलावट करने वालों के खिलाफ प्रशासनिक सख्ती की दोनों जिलों में जरूरत है। पता नहीं जिला प्रशासन द्वारा प्रति सोमवार की जाने वाली समीक्षा बैठकों में शाहरुख खान की फिल्मों पर चर्चा होती है या बालिका वधु के अगले एपिसोड का अनुमान लगाया जाता है।
कुछ तो अच्छा किया शुभम ने
बात जिद और जीत की ही चली है तो संगरिया के शुभम ने अपने दोस्त दिवांशु की जान बचाकर बता दिया है कि अच्छी सोच के लिए उम्र में बड़ा होना जरूरी नहीं है। दिल और दिमाग सही दिशा में सोचें तो 13 वर्ष की उम्र में शुभम ने जिस तरह अपने परिवार-शहर का नाम रोशन किया बाकी बच्चे भी कुछ न कुछ अच्छा करने की शुरूआत कर सकते हैं।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...

Wednesday, 4 March 2009

आइए, अभिभावक वाला नजरिया अपनाएं

इन दिनों बच्चे परीक्षा और अभिभावक अग्नि परीक्षा दे रहे हैं। बच्चों को समय से खिलाना-सुलाना, बच्चों से पहले उठना, उन्हें मनाना-उठाना, दूध-नाश्ते की चिंता, इस सबके बावजूद परीक्षा के तनाव से गुजर रहे बच्चों की çझड़कियां, बात-बात पर नाराजगी फिर भी अभिभावक हमेशा बच्चों का भला ही सोचते हैं। कुछ ऐसी ही भावना समाजों, संगठन पदाधिकारी और शासकीय विभागों के प्रमुखों में नजर आने लगे तो आधे से ज्यादा परेशानियां तो पलक झपकते ही दूर हो जाएंगी। जिला एवं सत्र न्यायाधीश उमेशचंद्र शर्मा ने तो अभिभाषकों के बीच अपना यह अभिभावक वाला दायित्व उजागर भी कर दिया। निधन, आंदोलन, समर्थन आदि मुद्दों पर आए दिन वर्क सस्पेंड के निर्णय से अदालतों के चक्कर लगाने वाले हजारों मुवçक्कलों के अभिभावक तो न्यायमूर्ति शर्मा ही हैं। एक साथी के निधन पर वर्क सस्पेंड के निर्णय की जानकारी देने पहुंचे अभिभाषक संघ के पदाधिकारियों को डीजे ने अभिभावक के इसी दायित्व से ही सीख दी है कि वर्क सस्पेंड से पहले अदालत से आस लगाए लोगों के दर्द को भी समçझए। गंगानगर की तरह हनुमानगढ़ के अभिभाषक संघ ने भी संकल्प तो यही लिया है कि न्यूनतम वर्क सस्पेंड करेंगे। सदस्यों की भावना और संघ के विधान का पालन करना पदाधिकारियों की मजबूरी हो सकती है, लेकिन भारतीय संविधान में भी तो संशोधन होते रहे हैं। वर्क सस्पेंड करना ही पड़े तो भोजन अवकाश के बाद आधे दिन के लिए भी तो किया जा सकता है। खैर, अभिभाषकों ने डीजे की सीख पर जिस गंभीरता से गर्दन हिलाई उससे तो मुवçक्कलों को यही विश्वास करना चाहिए कि बात समझ आ गई है।
आबियाना वसूली का कोई हल निकले
इन दोनों जिलों के किसानों-पटवारियों को भी सरकार से ऐसे ही अभिभावक होने की अपेक्षा है। लोकसभा चुनाव के चलते तो पटवारियों की मांग पूरी होते नहीं दिखती लेकिन किसानों से आबियाना वसूली हो या पटवारियों पर बढ़ता कार्यबोझ सरकार को दोनों के साथ न्याय करना ही चाहिए। 2002 में पटवारियों को सिंचाई विभाग से हटाया सरकार ने, आबियाना वसूली रुक गई तो किसानों की क्या गलती। अब पटवारी कम हैं, सरकार चाहती है कि जितने पटवारी हैं किसानों से एक दशक की वसूली एक मुश्त करें। पटवारी और किसानों के बीच संघर्ष की स्थिति बन गई है। एकमुश्त वसूली वह भी ब्याज के साथ। प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहे किसानों को समझ नहीं आ रहा, कहां से लाएं इतना रुपया। आचार संहिता लग गई इसलिए यह संभावना भी नहीं कि सरकार पिछला बकाया माफ कर चालू वर्ष के आबियाना वसूली जैसी कोई घोषणा कर दे।
ये हुआ ना सेवा का सम्मान
आरसीए चुनाव के परिणाम हमारे दोनों जिलों में क्रिकेट गतिविधियों और युवा खिलाडि़यों को बेहतर अवसर की उम्मीद वाले ही रहे हैं। हनुमानगढ़ के नवेंदु त्यागी का संयुक्त सचिव पद पर निर्वाचित होना इस खेल के विकास में उनके समर्पण का सम्मान तो है ही। यह भी सीख देता है कि किया हुआ व्यर्थ नहीं जाता। त्यागी ने अच्छा किया तो फल भी अच्छा मिला। अब राजस्थान में क्रिकेट की राजनीति में दखल रखने वाले ही बता सकते हैं कि किया तो ललित मोदी ने भी बहुत कुछ था फिर व्यर्थ क्यों गया! दोनों जिलों के खिलाडि़यों के लिए त्यागी का निर्वाचित होना इसलिए भी सुखद है कि उनके साथ अन्याय नहीं होगा और ऐसी नौबत आई भी तो कार्यकारिणी में आवाज उठाने वाला एक पदाधिकारी है तो सही।
आप तिलक लगाएंगे ना!
इस बार की होली को आप भी जल प्रहरी के रूप में यादगार बना सकते हैं। होली पर रंगों से सराबोर ही हों यह जरूरी तो नहीं अच्छा यह होगा कि बस तिलक लगाएं और होली मनाएं। ठीक है कि दोनों जिलों में पानी का संकट नहीं है, लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं कि सिर्फ इसी कारण पानी की फिजूलखर्ची की जाए। आप का एक तिलक बाकी को भी प्रेरणा देगा। हम सबके संकल्पों से ही जल सत्याग्रह कामयाब होगा।
करने को बहुत कुछ है पुलिस के लिए
शहर में बिगडै़ल युवाओं के हुड़दंग की घटनाएं न तो रुक रही हैं और न ही पुलिस का कोई एक्शन नजर आ रहा है। परिवार के साथ होटल में जाने से पहले यह भी देख लें कि आसपास की टेबल पर उस किस्म के युवा तो नहीं बैठे हैं जिनके दिए जख्म अशोक गुप्ता परिवार वर्षों तक नहीं भूल पाएगा। पुलिस करना चाहे तो कॉलोनियों में चल रहे होस्टल में रहने वाले छात्रों का, किराएदारों का रिकार्ड तैयार करा सकती है। करना चाहे तो स्टेशन, बस स्टैंड की होटलों पर पीने-पिलाने की अघोषित सुविधा पर अंकुश लगा सकती है, इससे कुछ तो कमी आएगी, अपराधों में।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...

Monday, 2 March 2009

शहर में खौफ पुलिस का रहेगा या गुंडों का

रात 8 बजे शराब की दुकानें बंद हो जाती हैं, लेकिन शराब पीकर हुड़दंग और परिवार के साथ मारपीट करने वाले शराबी युवकों का तांडव रात 11 बजे गोल बाजार की मुख्य सड़क पर चलता है। पुलिस हर व्यक्ति की पहरेदारी तो नहीं कर सकती, लेकिन इस छोटे से शहर के मुख्य बाजार में ऐसा तांडव विभाग की उदासीनता को तो उजागर करता ही है। परचून की दुकान चलाने वाले अशोक गुप्ता के साथ जो हुआ फिर किसी परिवार के साथ ऐसा न होगा, इसकी गारंटी भी यदि पुलिस प्रशासन इस शहर को नहीं दे पाए तो फिर लोगों को ऐसी पुलिस के भरोसे रहना भी नहीं चाहिए। जिस तरह रोज कोई न कोई घटना हो रही है। उससे तो यही लगने लगा है कि पुलिस नाम की दहशत गुंडा तत्वों के दिलो दिमाग से खत्म हो चुकी है। अब तक जो युवक पकड़े गए हैं, उनमें से कुछ ने एक दिन पहले ही पटवारी परीक्षा दी है, यानी उन्हें अपने भविष्य की तो फिक्र है, लेकिन शराब पीकर हुड़दंग मचाते वक्त तो परिवार के बुजुगोZ से मिले संस्कार भी उसी गिलास से गटक गए। जैसे घायल हुए गुप्ता के बच्चे चिंतित हैं, वैसे ही इन बिगडैल युवकों के परिजन भी अपना नाम मिट्टी में मिलने से शर्मसार होंगे ही। घर से ट्यूशन पर जाने, परीक्षा देने का कहकर निकले बच्चों पर जब अंकुश न रहे तो ऐसे बिगड़ैल चौराहे-चौराहे मिल सकते हैं। कॉलोनियों में लोगों की नींद हराम करने वाले भी ऐसे ही बिगड़ैल होते हैं और बदनाम होते हैं सारे स्टूडेंट।अब जबकि परीक्षा चल रही है तो पढ़ने-लिखने वाले बच्चों को तो ऐसे हुड़दंग की फुरसत है नहीं। पुलिस को गली-मोहल्लों में गश्त करने, बिगडैल युवकों के खिलाफ सख्त अभियान के लिए शायद किसी ऐसी ही घटना का इंतजार था। यदि अब भी पुलिस हिम्मत नहीं जुटाए तो पीडि़त परिवार फिर थाने ही पहुंचेंगे पुलिस महकमे की नाजुक कलाइयों का नाप लेने के लिए।