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Monday, 2 March 2009

दोनों जिलों के विकास की सोच रखें कुन्नर

फिलहाल तो श्रीगंगानगर की खुशी में ही हनुमानगढ़ को भी खुशी मना लेनी चाहिए और यह उम्मीद भी नहीं छोड़नी चाहिए कि भविष्य के मंत्रिमंडल विस्तार में प्रतिनिधित्व मिलेगा। करणपुर से निर्दलीय विधायक गुरमीतसिंह कुन्नर को मंत्रिमंडल में शामिल कर मुख्यमंत्री ने बिना शर्त दिए समर्थन का पुरस्कार जातिगत वोट और लोकसभा चुनाव में अपनी इमेज बेहतर बनाने के उद्देश्य से ही दिया है। खुशी इस बात की है कि हमारे जिले को प्रतिनिधित्व मिला तो सही। नवनियुक्त मंत्री और सलाहकारों को भी यह बात समझ आ जानी चाहिए कि श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों के लोगों की भी उनसे उतनी ही अपेक्षाएं हैं, जितनी कि करणपुर के मतदाताओं की। अच्छा तो यह होगा कि कुन्नर को दोनों जिलों की प्रमुख योजनाओं का डेवलपमेंट प्लान सौंपा जाए और शहर हित को प्राथमिकता देने वाले प्रबुद्धजनों के विचार मंच इन योजनाओं को निर्धारित अवधि में पूरा कराने की कमान संभालें।हनुमानगढ़ को प्रतिनिधित्व आज नहीं तो कल मिलेगा ही, हमारी सोच सकारात्मक होनी चाहिए। डॉ. परमनवदीप को विधानसभा अध्यक्ष वाले पांच नामों के पैनल में शामिल करना डॉ. परम के लिए उपलçब्ध हो सकती है लेकिन जिले में उत्सवी माहौल जैसा कुछ नहीं है। अभी आईजीएनपी अध्यक्ष की कुर्सी खाली है, नहरी पानी दोनों जिलों के लिए जीवनमरण का मुद्दा रहता है, ऐसे में राज्यमंत्री के दर्जेवाले इस पद का कद भी कम नहीं है।फिर भी लोगों को यह जानने-पूछने का अधिकार तो है ही कि जब एक जिले से निर्दलीय की पूछपरख हो सकती है तो इस जिले से जीते निर्दलीय में क्या कमी नजर आई। यह वही हनुमानगढ़ है जब मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत ने पार्टी के डॉ. रामप्रताप के साथ ही तीन निर्दलियों गुरजंटसिंह, शशि दत्ता व ज्ञानसिंह चौधरी को लालबत्ती के गंडे ताबीज बांधकर अपनी सरकार को मजबूत दिखाया था। जब गहलोत इससे पहले मुख्यमंत्री थे तब राधेश्याम गंगानगर और हीरालाल इंदौरा को अवसर दिया, तब तो हनुमानगढ़ से केसी बिश्नोई को शामिल भी कर लिया था, लेकिन आज यह जिला बेहाल जैसा ही है। इस एक दशक में लोग वोट के साथ ही अधिकारों के लिए भी लड़ना जान गए हैं। हनुमानगढ़ को उसके हक से वंचित करने का नतीजा कहीं यह सामने न आए कि लोकसभा चुनाव में यहां के लोग चोट कर दें।

आवारा सांड हो या संतान सख्ती दोनों पर जरूरी

चाहे संतान हो सांड जब उसमें आवारा के लक्षण आने लगे तो फिर वह कॉलोनी-गांव के लिए सिरदर्द बन जाते हैं। शहर में सुबह से रात तक कॉलोनियों में कलाबाजी दिखानेवाले बिगड़ैल बाइकर्स से लोग उतने ही परेशान हैं जितने गांवों के लोग आवारा पशुओं से। शहर में हाल की घटनाओं के कारण ये बाइकर्स रहे हैं। नित नई फरमाइश पूरी होने से बिगड़ने वालों बच्चों के बारे में पैरेंट्स को बहुत देर से पता चलता है कि वे उनकी ममता व भरोसे को कैसे किक मारते रहे। आवारा मवेशियों से राहत के लिए तो नगरपरिषद ने अभियान शुरू कर दिया है। बिगड़ैल बाइकर्स के खिलाफ भी प्रशासन को ऐसा कुछ करना चाहिए कि कॉलोनियों के लोगों को राहत तो मिले ही, कोचिंग सेंटर पर वाकई पढ़ाई के लिए जाने वाले स्टूडेंट्स परेशान भी न हों। गल्र्स कॉलेज-स्कूल, कोचिंग सेंटर के आसपास दोपहर से शाम तक मंडराने वाले बिगड़ैल युवाओं को आसपास के रहवासी तो मवाली ही मानते हैं, जो नहीं जानते वे उन्हें कोचिंग सेंटर पर आए स्टूडेंट समझ लेते हैं, यानी बेवजह सेंटर भी बदनाम हो जाते हैं। लगभग सभी कॉलोनियों में कोचिंग सेंटर चल रहे हैं, अच्छा तो यही होगा कि बिगड़ैल बाइकर्स पर नकेल के लिए पुलिस प्रशासन सारे कोचिंग संचालकों, आसपास के प्रमुख नागारिकों की संयुक्त बैठक बुलाए, परेशानी समझे, सुझाव मांगे, अपना एक्शन प्लान बताए और सख्ती से अभियान भी चलाए। जिन घरों में जवान होती बेटियां हैं, उन परिवारों के मुखिया तो ऐसी मीटिंग में भी परेशानी बताने से हिचकेंगे ही। लेकिन ऐसे परिवारों को राहत और सूने रास्तों पर चेन झपटने, पर्स छीनने जैसी घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए पुलिस प्रशासन को तो अभियान चलाने से नहीं हिचकना चाहिए। जवानी के जोश और मौत को चुनौती देती स्पीड में बाइक दौड़ाने वाले बिगड़ैल युवा मां-बाप का नाम मिट्टी में मिलाने का काम भी कर रहे हैं। गांव-शहर में परेशानी बढ़ाने वाले आवारा ढोरों जैसी सख्ती इन पर इसलिए जरूरी है क्योंकि इन बिगड़ैल बाइकर्स को नहीं पता कि यही स्पीड कभी उनके पैरेंट्स को भी खून के आंसू रुला सकती है।
kirti_r@raj.bद्धaskarnet.com

Sunday, 1 March 2009

जनभागीदारी से कुछ तो सुधरेगी शहर की सूरत

आवारा पशुओं पर नियंत्रण के मामले में दोनों जिलों में सतत सख्त अभियान जारी नहीं रहे तो संगरिया में गत दिनों हुई एक किशोर की मौत जैसी घटनाएं भी रुकने वाली नहीं हैं। जिन कार्यक्रमों, योजनाओं का लाभ सीधे आम जनता को मिलता है ऐसे अभियान को सफलता तभी मिल सकती है जब उसमें जनभागीदारी हो। चौराहों का विकास, पालिथीन मुक्त शहर, चकाचक सफाई, सरकारी अस्पतालों में बेहतर व्यवस्था, बिजली बचत जैसे सार्थक कायोZ में सारी कमान क्षेत्र के प्रमुख औद्योगिक व्यापारिक-सामाजिक संगठनों को सौंपकर जिला प्रशासन या नगर परिषद की भूमिका सहयोग वाली ही होनी चाहिए। आवारा पशुओं से मुक्ति मिलना कोई चुनौतीपूर्ण भी नहीं है, बस संकल्पशक्ति चाहिए और वह कैसे प्राप्त करें इसे नगरपरिषद के तत्कालीन अध्यक्ष जगदीश जांदू बता सकते हैं। आज गंगानगर पिग प्रॉब्लम (सूअर समस्या) से कुछ राहत महसूस कर रहा है तो यह उस वक्त सतत चलाए अभियान का ही नतीजा है।
सोचना होगा विद्युत शवदाह गृह के लिए
अभियान तो हरियाली बचाने के लिए भी चलाना ही चाहिए, दोनों जिलों में पानी का तो संकट नहीं है, लेकिन हरियाली की कमी है। नए पौधे लगाने के साथ ही लगे हुए पेड़ बचाना भी जरूरी है। महानगरों जैसी चकाचौंध का सपना देखने वाले दोनों जिलों में विद्युत शवदाह गृह के बारे में भी सोच विकसित होनी चाहिए। प्रदूषण कम करने, पेड़ बचाने के लिए ऐसे शवदाहगृह होने ही चाहिए। मृत्यु पश्चात देहदान के मामले में गंगानगर का नाम हो रहा है तो प्रमुख समाजों को भविष्य के हरियाले गंगानगर की खातिर विद्युत शवदाहगृह की दिशा में आदर्श स्थापित करना चाहिए।
पानी में बहा पानी का वादा
फसलों को पर्याप्त पानी के लिए सात फरवरी को उच्चस्तर पर समझौता तो यह हुआ था कि एक सप्ताह के अंतर से पानी देते रहेंगे। लगता तो यह है कि समझौते के कागज ही पानी में बहा दिए गए। यही कारण है कि क्षेत्र के किसानों को आंदोलन की राह पकड़ना पड़ी है। दोनों जिलों के किसानों से की जा रही यह वादाखिलाफी सरकार को कितनी भारी पड़ेगी, यह बात मुख्यमंत्री को जिला प्रशासन के अधिकारी कब बताएंगे।
रोड पर अरोड़ा
कुर्सी की लड़ाई ने एक अच्छे भले समाज को सड़क पर खड़ा कर दिया है। अरोड़वंश समाज में जो कुछ चल रहा है उससे बुजुर्ग तबका तो कतई खुश नहीं है। इससे बाकी समाजों को भी यह सबक लेना ही चाहिए कि समाज के पदाधिकारी जब राजनेताओं के साथ ज्यादा उठने-बैठने लग जाते हैं तब खुद समाज में उठापटक की राजनीति शुरू हो जाती है। समाज के कंधों पर चढ़कर राजनीति की ऊचाइयां छूने का सपना देखने वाले लोग ही जब अपने अहं की संतुष्टि के लिए विघ्न संतोषियों को हवा देने लगें तो अरोड़वंश ही क्यों किसी भी समाज को ऐसे बुरे दिन देखने ही पडें़गे।
और खूबसूरत होगा बार्डर
अटारी (अमृतसर) बार्डर की तरह हिंदूमलकोट बार्डर भी अब आकर्षण का केंद्र बनेगा! गंगानगर के रहवासी अन्य शहरों के अपने रिश्तेदारों को अब यह तो कह ही सकेंगे कि हमारे यहां देखने लायक एक-दो स्थान तो हैं ही। हिंदूमलकोट बार्डर हो या क्यूहैड बार्डर इनके सौंदयीüकरण में पड़ोसी मुल्क (पाकिस्तान) की गरीबी आडे़ आ रही है। हमारी सरकार तो इन दोनों स्थानों के विकास के लिए भरपूर धनराशि भी दे लेकिन उधर बार्डर का रूप भी तो निखरे! वहां बाकी जरूरतों के लिए पैसे का संकट है तो बार्डर डवलपमेंट के लिए पैसा स्वीकृत करना बहुत बड़ी समस्या जैसा ही है।
सीमा से परे मानवता
बिगबास और शिल्पा शेट्टी पर टिप्पणियों से चर्चा में आई जेड गुडी को यह तो पता नहीं होगा कि भारत में श्रीगंगानगर, जैसलमेर कहां है किंतु कैंसर से संघर्ष कर रही गुड़ी की बीमारी से हंसराज भवानिया भी विचलित हैं। श्रीगंगानगर निवासी और जैसलमेर में जेईएन (विद्युत विभाग) पदस्थ भवानिया ने कहीं से नंबर तलाश कर मुझे सुबह-सुबह फोन किया। उनके स्वर में मानवीयता झलक रही थी और आग्रह था कि किसी तरह जेड गुडी को यह संदेश पहुंचाएं कि बांसवाड़ा के समीप कल्लाजी के सिद्ध स्थान पर जाएं तो उन्हें राहत मिल सकती है। बीमारी से राहत मिलेगी या नहीं ? अंग्रेजों का भारतीय संस्कारों, आस्था, श्रद्धा में कितना विश्वास होता है ? इन सब बातों से कही ज्यादा यह सच है कि हमें संस्कारों में मिली मानवीयता मरी नहीं है।