कीर्ति राणा.
मित्रों के एसएमएस आना शुरू हो गए हैं। मोबाइल की संवेदना हमारे मन, घर-आंगन में दिखाने का वक्त आ गया है। आपको भी याद है न घर की छत और मुंडेर पर पिछले साल अपने बच्चों के हाथों से आपने परिंडे रखवाए थे। कई बार तो घर के बड़े भूल जाते थे तब ये बच्चे ही याद दिलाते थे आपने आज पानी नहीं डाला परिंडों में।
मार्च अभी आधा बीता है लेकिन पारा तेवर दिखाने लगा है। घरों मेें पंखें, कार्यालयों में एसी चल पड़े हैं, गर्मी जब हमें सताने लगी है तो परिंदों के लिए पानी की तलाश भी गंभीर होगी ही। पेयजल-सिंचाई पानी का संकट तो रहता ही है, लेकिन हालात इतने बद्तर भी नहीं हैं कि परिंदों के लिए एक लोटा पानी नहीं जुटा सकें।
कई परिवारों ने परिंडों के साथ ही एक बर्तन में परिंदों के लिए दाने की भी व्यवस्था की थी बीते साल। बचा हुआ भोजन भी परिंदों के लिए पकवान से कम नहीं होता। इस बार भी दाने और पानी के लिए दो बर्तन रखें। ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी है, सुबह अपनी दिनचर्या की शुरुआत ही इन बर्तनों में दाना-पानी डालने से करें। पहले दिन डरते-सहमते गिलहरी आएगी, कुछ कौवे मंडराएंगे, चींटियां तो कतारबद्ध होकर आएंगी ही। थोड़ा सा शक्कर मिला आटा, मटर के दाने, ज्वार-बाजरा, रोटी-बिस्कुट के टुकड़े डाल दें।
कुछ देर बाद ही कौवों का झुंड आ जाएगा, दावत उड़ाने वाले कुछ परिंदों को मीठा पसंद है तो ज्यादातर रोटी के टुकड़ों को पानी वाले बर्तन में डालकर नर्म करते हैं। जितनी देर रोटी नर्म होती है, उतनी देर कांव-कांव, चींची, गुटर-गूं करते हुए आपस में सुख-दुख की बातें करते रहते हैं। पेट भर जाने के बाद परिंदों का एक झुंड उड़ता है तो दूसरा आ जाता है। जो मिल जाए उसी में संतुष्ट हो जाना कोई इनसे सीखे।
परिंदों की भाषा हमें तो समझ आती नहीं, लेकिन कभी जब कौवों-कबूतरों-तोतों का झुंड परिंडों के पास गु्रप डिस्कशन के लिए जुटा हो तो कुछ देर दूर खड़े होकर इनकी हरकतें तो देखिए, कोई चोंच में पानी भरकर उसे गटकने के लिए गर्दन इस तरह ऊंची करेगा, जैसे आपके पुण्य कार्य के बदले ऊपर वाले से आपके लिए दुआ मांग रहा हो। हम परिंदों की भाषा भले ही न समझें, लेकिन पशु-पक्षी हमारे भाव समझते हैं। आपकी छत और मुंडेर पर जब पक्षियों के झुंड मंडराएंगे, तब आप भी इनकी भाषा समझ जाएंगे।
अपने बच्चों में अच्छे संस्कारों का विकास उनके हाथों परिंदों को दाना-पानी डालकर भी किया जा सकता है। परिवार के सभी सदस्य एक-एक दिन आपस में बांट लें कि कल कौन डालेगा परिंडों में दाना-पानी। आपकी यह छोटी सी पहल न जाने कितने परिंदों की आत्मा तृप्त करेगी, तब घर के बुजुर्ग याद दिलाएंगे अपने पित्तर आए हैं परिंदों के रूप में!
मित्रों के एसएमएस आना शुरू हो गए हैं। मोबाइल की संवेदना हमारे मन, घर-आंगन में दिखाने का वक्त आ गया है। आपको भी याद है न घर की छत और मुंडेर पर पिछले साल अपने बच्चों के हाथों से आपने परिंडे रखवाए थे। कई बार तो घर के बड़े भूल जाते थे तब ये बच्चे ही याद दिलाते थे आपने आज पानी नहीं डाला परिंडों में।
मार्च अभी आधा बीता है लेकिन पारा तेवर दिखाने लगा है। घरों मेें पंखें, कार्यालयों में एसी चल पड़े हैं, गर्मी जब हमें सताने लगी है तो परिंदों के लिए पानी की तलाश भी गंभीर होगी ही। पेयजल-सिंचाई पानी का संकट तो रहता ही है, लेकिन हालात इतने बद्तर भी नहीं हैं कि परिंदों के लिए एक लोटा पानी नहीं जुटा सकें।
कई परिवारों ने परिंडों के साथ ही एक बर्तन में परिंदों के लिए दाने की भी व्यवस्था की थी बीते साल। बचा हुआ भोजन भी परिंदों के लिए पकवान से कम नहीं होता। इस बार भी दाने और पानी के लिए दो बर्तन रखें। ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी है, सुबह अपनी दिनचर्या की शुरुआत ही इन बर्तनों में दाना-पानी डालने से करें। पहले दिन डरते-सहमते गिलहरी आएगी, कुछ कौवे मंडराएंगे, चींटियां तो कतारबद्ध होकर आएंगी ही। थोड़ा सा शक्कर मिला आटा, मटर के दाने, ज्वार-बाजरा, रोटी-बिस्कुट के टुकड़े डाल दें।
कुछ देर बाद ही कौवों का झुंड आ जाएगा, दावत उड़ाने वाले कुछ परिंदों को मीठा पसंद है तो ज्यादातर रोटी के टुकड़ों को पानी वाले बर्तन में डालकर नर्म करते हैं। जितनी देर रोटी नर्म होती है, उतनी देर कांव-कांव, चींची, गुटर-गूं करते हुए आपस में सुख-दुख की बातें करते रहते हैं। पेट भर जाने के बाद परिंदों का एक झुंड उड़ता है तो दूसरा आ जाता है। जो मिल जाए उसी में संतुष्ट हो जाना कोई इनसे सीखे।
परिंदों की भाषा हमें तो समझ आती नहीं, लेकिन कभी जब कौवों-कबूतरों-तोतों का झुंड परिंडों के पास गु्रप डिस्कशन के लिए जुटा हो तो कुछ देर दूर खड़े होकर इनकी हरकतें तो देखिए, कोई चोंच में पानी भरकर उसे गटकने के लिए गर्दन इस तरह ऊंची करेगा, जैसे आपके पुण्य कार्य के बदले ऊपर वाले से आपके लिए दुआ मांग रहा हो। हम परिंदों की भाषा भले ही न समझें, लेकिन पशु-पक्षी हमारे भाव समझते हैं। आपकी छत और मुंडेर पर जब पक्षियों के झुंड मंडराएंगे, तब आप भी इनकी भाषा समझ जाएंगे।
अपने बच्चों में अच्छे संस्कारों का विकास उनके हाथों परिंदों को दाना-पानी डालकर भी किया जा सकता है। परिवार के सभी सदस्य एक-एक दिन आपस में बांट लें कि कल कौन डालेगा परिंडों में दाना-पानी। आपकी यह छोटी सी पहल न जाने कितने परिंदों की आत्मा तृप्त करेगी, तब घर के बुजुर्ग याद दिलाएंगे अपने पित्तर आए हैं परिंदों के रूप में!
ye aapne likhaa hain????????
ReplyDeletemujhe to yakeen hi nahi ho raha?????????
maine to akhbaar aise hi padh kar chhod diyaa........agar mujhe pataa hotaa to main ruuchi se or baar-baar padhtaa.
aapne akhbaar main apnaa naam kyon nahi diyaa???
kam se kam pataa to lag jaataa ki-aapkaa likhaa huaa hain?????? padhne main mazaa to aataa.
chaliye koi baat nahi......
bahut badhiyaa.
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
आदरणीय राणा जी, परिँदो के प्रति आपकी संवेदना को समझा जा सकता है। आप ही की प्रेरणा से हनुमानगढ़ संगम के जिला कल्ब मेँ भाई नरेश मेहन के साथ मिल गत वर्ष हम ने प्रयाप्त संख्या मेँ परिँडे लगाए थे।दाना चुग्गा व पानी की भी व्यवस्था की थी।इस बार संख्या एवं प्रबंध बढ़ाने का प्रयास करेँगे।स्म्रतियोँ को पुनर्जीवित करने के लिए साधुवाद!
ReplyDelete-ओम पुरोहित'कागद' omkagad.blogspot.com
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteश्रद्देय राणा जी, सादर प्रणाम, गुरुवार को दैनिक भास्कर में प्रकाशित आपका आलेख हर बार प्रेरणा देता है. इस बार " परिंदों को आपकी याद आने लगी है." पढ़ा..बहुत ही अच्छा लगा. आप हर बार जगाते हैं. लोग फिर सो जाते हैं. आज दिखावा ज्यादा रह गया है. पक्षियों को चुग्गा डालते हुए एक बार अखबार में फोटो छप गया, फिर पक्षियों को याद ही नही करेंगे. कई एस एम् एस फेंकने वाले सच्चाई से बहुत दूर होते हैं. फिर भी आपने याद दिलाया..लोग जागेंगे...हनुमान जी को भी तो शक्ति याद दिलाई थी ..आप अब जल्दी ही शिमला कि तरफ प्रस्थान करने वाले हैं , आपके वहाँ जाने का हमें दु:ख हो रहा है, लेकिन नानक जी ने अच्छे लोगों के लिए कहा है कि ..बिखर जाओ...तो आप वहाँ जाकर भी हमारे नजदीक रहेंगे,,"टाबर टोली" आपके पास वहाँ भी पहुँचता रहेगा. आपका शुभेच्छु, दीनदयाल शर्मा www.http://deendayalsharma.blogspot.com, 09414514666, 09509542303
ReplyDeletePrem srdhye
ReplyDeleteSh Kirti Rana ji
Aaj Aap ka prikiti prem dekh ker bhut hi payra sa lega.Hamari senskirti m prindo ka bhut mehtevpurn sthan h.Aaj Aap n yaad dilaya to Maa yaad Aa geyi.mai jab bhut hi chhota tha teb mari maa.Aapni sari k pellu se bandhi ghanth se kuch bajri or chawel k danye nikal ker deti thi ki inhe ghar ki chhat per dal Aa.
mare ghar ki chhat mare liy nahi h.wo to sirf prindo k liye hi h.Mai us prempra ko germi serdi oe andhi m bhi nibha reha hu.Ab to Aalem yeh h ki kisi din mai dari se bajri dallu to pekchi bhut sor kerte h.sampurn mohle ko peta chal jatta hi.ki ma late uthha hu.maine or Om n jilla cliub m bhi pekchiyo k liye prindo ko lega rekha h.jo leyi bar bachho ki bol legne se toot bhi jate h.mai dusra legs deta hu.
Aaj Aap n bhut hi paviter or pooja bal lekh likha hai.Ab tek k lekh mai mujhe sebse payra or ice cream sa lega h.Aaj phir Maa yaad Aa geyi.Maa jab chidi k bachhe ghar mai jenm lete thye to unko bhit hi payar se sembhal ker rekhti thi.
Aap ko punhe sadhu-bad.
NARESH MEHAN