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Thursday 2 April 2009

मुश्किल नहीं है परिदों की भाषा समझना

मुझे बड़ी जलन होती है जब प्रेमनगर में मेरे ठीक सामने रहने वाले सरदार जगमोहन सिंह (रायल फनीüचर) के मकान की छत पर सुबह शाम परिंदे चहचहाते हैं। कभी चिçड़या तो कभी तोतों का झुंड हथाई (चर्चा) करता है। परिंदे आते हैं, चहचहाते हैं, चोंच में दाना-पानी भरते और उड़ जाते हैं। कुछ बरस पहले तक तो परिंदे हम सभी के घर-आंगन में फुदकते रहते थे, दाल-चावल बीनते मां, भाभी कुछ दानें इन्हें भी डाल देती थी। परिंदे तो अब भी हैं लेकिन ऊंचे उठते मकानों और मकानों में मजबूत होती बंटवारे की दीवारों ने इन पंछियों का प्रवेश प्रतिबंधित सा कर दिया है। गांवों में अभी खुलापन है, अपनापन है इसलिए मोर भी आंगन-मुंडेर पर मंडराते रहते हैं।
अब जिस तरह दिन तपने लगे हैं तो आप ही की तरह मेरी चिंता भी यही है कि पारा जब ब्7 से भ्0 की ओर बढ़ता जाएगा तब हम तो कूलर, एसी की मदद ले लेंगे, दाना-पानी की तलाश में भटकते इन परिंदों का क्या होगा, बुजुर्ग कहते हैं ऊपर वाला भूखा उठाता है लेकिन भूखा सुलाता नहीं। ये परिंदे तो कह भी नहीं सकते प्यास लगी है पानी पिला दीजिए। सड़कों के किनारे, चौराहों के आसपास प्याऊ लगाने के दिन आ ही गए हैं अच्छा होगा कि बेजुबान पशु-पक्षियों के लिए भी हम कुछ ऐसा ही सोचें। कॉलोनियों में रहने वाले कई परिवारों ने घर के बाहर पशु-पक्षियों के लिए पानी की टंकी बना रखी है उसकी नियमित सफाई, पानी से लबालब रखने के यही तो दिन हैं। परिंदे आप को थैंक्स तो नहीं कहेंगे लेकिन जब आपके मकान की मुंडेर पर वे चहचहाते नजर आएं तो मान लीजिएगा सामूहिक रूप से आपके प्रति आभार भी व्यक्त कर रहे हैं।
बेवजह नुकसान हुआ
तामकोट (पदमपुर) में बच्चों को निज्शुल्क कोचिंग देने वाले स. मलकीत सिंह की नाराजगी है कि दसवीं सामाजिक विज्ञान का पर्चा आउट होने से उन सैकड़ों बच्चों का तो नुकसान ही हुआ है जो पूरी ईमानदारी से दिन-रात मेहनत करके पर्चा देने गए थे। मात्र क्0-ख्0 प्रतिशत विद्यार्थियों के कारण बाकी को नुकसान उठाना पड़ा। विद्यार्थी के बौद्धिक स्तर को समझने वाले मलकीत सिंह की बात में दम है कि एक घंटे पहले भी छात्रों को प्रश्न बता दिए जाएं तो हल वही कर पाएंगे जिन्होंने वर्ष भर मेहनत की है। वरना तो परीक्षा हाल में किताबें उपलŽध करा दी जाएं तब भी कई परीक्षार्थी सही उत्तर नहीं ढूंढ पाएं। एक पेरेंट्स या टीचर के नाते उनकी या पढ़ाकू बच्चों की चिंता सही है कि मीडिया ने पर्चा आउट की खबर छाप कर बच्चों की वर्ष भर की मेहनत पर पानी फेर दिया। काश इन पेरेंट्स की तरह वो लोग भी सोच लें जिनके थोड़े से स्वार्थ के कारण पर्चे लीक होने की खबरें बन रही हैं। ये लोग भी शिक्षा विभाग से जुड़े कर्मचारी हैं! इन्हें इनके गुरुजनों ने तो शिक्षा में सौदेबाजी जैसे संस्कार कतई नहीं दिए होंगे।
ये कैसी नहरबंदी
चर्चा चिंता की ही चली है तो पानी बचाने के लिए अब नहरबंदी का वक्त आ गया है। हर साल नहरबंदी होती तो है किसानों के नाम पर लेकिन परेशान भी वे ही सर्वाधिक होते हैं। इस जल भंडारण के बावजूद टेल के किसानों को अपनी और खेत की प्यास बुझाने के लिए पानी नहीं मिल पाता लेकिन जहां विभागीय अमले और किसानों के बीच सांठ-गांठ हो जाती है वहां नहरबंदी बेअसर हो जाती है।
बात निकलेगी तो फिर...
पूर्व मुयमंत्री वसुंधरा राजे की चुनावी सभाओं के बाद अब इस संसदीय क्षेत्र में भी चुनावी सरगर्मी तेज होने लगी है। वैसे इस चुनाव का यह फायदा तो हुआ कि वसुंधरा ने गंगानगर शहर में कदम तो रखा। सीएम रहते तो शहर की याद ही नहीं आई। शहर में आई, सभा की। किसी के यहां मिन्नतों के बाद पहुंची तो विधायक राधेश्याम के यहां मिन्नतों के बाद जुटे मीडियाकर्मियों से सीधे मुंह बात तक नहीं की। खोज करना चाहिए कि क्या कारण रहे कि सूरतगढ़ में तो बात की और यहां झांकी बिगाड़ दी। कुछ ऐसी ही बेबात की बात कांग्रेस में भी चल रही है। प्रदेश और देश के नेता भले ही कांग्रेस प्रत्याशियों को जिताने के लिए पार्टीजनों से एकजुट होकर काम करने का आuान करते रहें यहां तो प्रेस कांफे्रंस करके मीडिया को जानकारी दे रहे हैं कि मंजिल तो हमारी एक है पर रास्ते अलग-अलग हैं। एक महीना ही तो बचा है पता चल जाएगा कौन किस रास्ते पर चला था।
अगले हपते फैरूं, खमा घणी-सा...

1 comment:

  1. bahut anand aaya.is tarah ka sarthak lekhan jari rahe.ab to ye blog niyamit roop se padhana hi hoga. poorv me avagat na ho pane ka afsos bhi hai. chalo der se hi sahi.jab jage tab sabera... shubh kamnaon ke sath
    VINOD NAGAR
    vinodnagar56@gmail.com

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