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Wednesday 11 February 2009

करने को बहुत कुछ है, बस ठान लीजिए

अब दोनों जिलों में कलेक्टर के बाद नए एसपी भी आ गए हैं। शासन की इच्छा, प्रशासन की मंशा और आमजन को परेशानी से राहत के मार्ग में अब कोई बहानेबाजी की स्थिति नहीं बची है। क्योंकि बात चाहे अभियान की हो या अमन की दोनों अधिकारियों के बीच तालमेल जरूरी है। जिलों के लिए दोनों नए हैं तो जाहिर है इगो प्राब्लम जैसी बात तो नहीं होगी। जहां तक चुनौतियों की बात करें तो लोकसभा चुनाव उसके बाद स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं यानि धरना, प्रदर्शन, जुलूस से राहत नहीं मिलनी है। नहरी पानी में तो उबाल आता ही रहता है। डेरा-सिख विवाद स्थायी चुनौती है। इस सबसे अलग इन दिनों गौवंश के वध की घटनाएं बढ़ रही हैं, इन बेजुबान जानवरों की आड़ में सांप्रदायिक तनाव का रास्ता आसान हो जाता है। धर्म ध्वजा के रक्षकों को नारे बुलंद करने का एजेंडा नागपुर से पता चल ही गया है। ये सारी चुनौतियां स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। ऐसे में अच्छे प्रशासन के लिए पहली प्राथमिकता यही होनी चाहिए कि जिलों में शांंति बनी रहे।
शुरूआत तो करें
जहां तक काम करने का सवाल है तो बहुत कुछ है करने को। कुछ यादगार करना हो तो गंगानगर में सीवरेज प्लान निर्धारित दो वर्ष की अवधि से पहले पूरा हो जाए, रेलवे ओवरब्रिज का सपना हकीकत में बदले, कमीनपुरा में शुगर मिल, पर्यटन क्षेत्र विकसति हो जाए ऐसे कुछ स्थायी कायाZे पर अभी से काम शुरू होना ही चाहिए। जहां तक शहर की जागरूकता का सवाल है तो शोभायात्रा, धर्मसभा और लंगर जितना उत्साह तो रेल सुविधाओं के लिए किए जा रहे धरना-आंदोलन में नजर नहीं आया है। चैंबर ऑफ कामर्स को यदि लगता है रोज-रोज धरना देने से रेल सुविधाओं का तोहफा मिल जाएगा तो लोगों ने भी सोच रखा होगा जब धरने से आगे बात बढ़ेगी तो पहुंच जाएंगे मुंह दिखाई के लिए। नोहर, भादरा, हनुमानगढ़ से लेकर श्रीगंगानगर के गांवों में उबल रहा पानी अभी तो ठंडा हो गया है बदले हुए मौसम ठंडी तेज हवाओं और ओलों ने कहीं राहत और कहीं आफत के आसार बनाए हैं। पिछले माह इन्हीं ओलों से तबाही हुई थी, वो घाव हरे ही हैं। जयपुर से राहत का मरहम अब तक नहीं पहुंचा है। जिला प्रशासन इतनी तत्परता तो दिखाए कि दोनों जिलों के ओला प्रभावित किसानों को राहत का मरहम शीघ्र मिल जाए।
ये नशा तो बहुत अच्छा
लोकसभा चुनाव में तो रामनाम की गूंज रहनी ही है, लेकिन उदाराम चौक स्थित सिद्ध झांकी वाले बालाजी मंदिर के पांच दिनी वार्षिकोत्सव में राम-नाम जाप पुरानी आबादी व ब्लॉक क्षेत्र में गूंजता रहा। मंदिर मंडल के सदस्य राम नाम का भक्ति रस सप्ताह में दो दिन बाकी क्षेत्रों में भी बांट रहे हैं। घर और जेब से संपन्न ये सारे व्यापारी उस वर्ग के हैं जो होटल या बार में भी शामें गुजार सकते हैं। उस नशे से इन्हें ये नशा कहीं ज्यादा अच्छा लगता है राम नाम के इस नशे की लत जितना फैले उतना ही अच्छा हैै। नशाबंदी के सरकारी प्रयास से ये गैर सरकारी प्रयास कहीं ज्यादा असरकारी हैं।
पूर्वायास देख लिया, संभल जाओ
अभियान तो हनुमानगढ़ में भी शुरू किया गया लेकिन समय गलत चुना। निजी स्कूल संचालकों की मनमानी से अभिभावकों के साथ कार्यरत स्टाफ भी परेशान रहता है, लेकिन पानी में रहते मगरमच्छ से बुराई कौन मोल ले। प्रशासन ने परीक्षा और संचालकों की परेशानी समझते हुए इसमें ढील भी दे दी है। लेकिन स्कूल संचालकों को समझ लेना चाहिए कि मई-जून से उनका वक्त ठीक नहीं है। किताबों, बस्तों, ड्रेस और बाकी अज्ञात कारणों से एडमिशन के वक्त जो अड़ंगे लगाए जाते हैैं वह अब शायद ही चल पाएं। अच्छा तो यह होगा कि प्रशासन हनुमानगढ़ के लोगों से इस बीच ऐसे सारे स्कूलों के खिलाफ सप्रमाण शिकायतें आमंत्रित कर ले। ठीक है पेरेंट्स अपना नाम नहीं देना चाहेंगे लेकिन दमदार शिकायतों से कारüवाई में तो मदद मिलेगी ही।
जागिए, शहर के हित की सोचिए
निजी क्षेत्रों की ऐसी मनमानी रोकने से पहले प्रशासन को सहयोगी विभागों के अडि़यल रवैये को भी ठीक करना चाहिए। ठीक है कि नगर परिषद के मामलों में कलेक्टर सीधा हस्तक्षेप नहीं कर सकते लेकिन जब मामला जिले को इंजीनियरिंग कॉलेज की सौगात मिलने में आ रही दिक्कतों का हो तो कलेक्टर अपने विवेक का इस्तेमाल तो कर ही सकते हैैं। कई मामलों में खुद न्यायालय भी तो पहल करते हैं। जब गोपीराम सराüफ ट्रस्ट को शैक्षणिक कार्य के लिए सस्ती दर पर जमीन देने को राज्य सरकार तैयार है तो आयुक्त कार्यालय क्यों शहर के अहित का ठेकेदार बन रहा है। पता नहीं जनप्रतिनिधि और शहर के जागरूक लोग एकजुटता दिखाने के लिए कौनसे मुहूर्त का इंतजार कर रहे हैं। हनुमानगढ़ के राजनीतिक दलों की जागरूकता कितनी है इसका अंदाज इससे भी लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री के रूप में अटलजी ने हनुमानगढ़ से सरदारशहर के बीच रेललाइन की घोषणा यहीं एक आमसभा में की थी। आज अटलजी का सूरज तो अस्ताचल की ओर है। पता नहीं विधानसभा-लोकसभा में दहाड़ने वालों को रेल सुविधाओं में पिछड़े हनुमानगढ़ को उसका हक दिलाने के लिए शौर्य प्रदर्शन की याद कब आएगी।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...
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