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Monday 9 February 2009

व्यवस्था तो देख ली, अब दिखाइए परिणाम

एक जगह जो व्यवस्था फेल हो गई दूसरी जगह वही व्यवस्था कारगर साबित होगी क्या? इसका उत्तर जानने के लिए कम से कम एक महीने तो इंतजार करना ही होगा। बात हो रही है कुकिंग गैस संकट और जिला प्रशासन के प्रयासों की। हनुमानगढ़ में लंबे समय से चल रही स्वत: बुकिंग की व्यवस्था प्रशासन ने खामियों के कारण बंद करके अब 21 दिन बाद डिलीवरी वाली व्यवस्था लागू कर दी है। जिले के लोग इससे सहमत नहीं हैं, यह जानते हुए भी प्रशासन ने कुछ नया करने का यदि साहस जुटाया है तो परिणाम जानने के लिए लोगों को कुछ इंतजार करना ही चाहिए। स्वत: बुकिंग की व्यवस्था एक फरवरी से श्रीगंगानगर में लागू कर दी गई है, इससे पहले तक जो व्यवस्था थी उससे लोग संतुष्ट नहीं थे।
मुआवजे में देरी क्यों?
कुकिंग गैस का मामला उतना ही गंभीर है जितना किसानों से जुड़ा नहरी पानी का मामला। साल की शुरुआत किसानों के लिए तो ठीक नहीं रही है पानी और ओलों से हुई तबाही से पीडि़त दोनों जिलों के किसानों को सरकार से उम्मीद है, जल्द से जल्द पर्याप्त मुआवजा राशि उपलब्ध कराए, इसमें जितनी देर होगी किसानों का गुस्सा उतना ही बढ़ेगा। प्रकृति की नाराजगी के साथ ही विभाग की लापरवाही से भी किसानों की फसलें प्रभावित हुई हैं। यह तो हद ही है कि जब मर्जी हुई पानी छोड़ दिया और फिर लिपिकीय त्रुटि बताकर हाथ ऊंचे कर दिए। इस विभाग का तो भगवान ही मालिक है। जनप्रतिनिधियों को विश्वास में लिए बगैर फरवरी से नया रेगुलेशन घोषित कर परेशानियां बढ़ाने का काम कर दिया है।
लापरवाही का करंट
वितरिकाओं मेंे मनमर्जी से पानी छोड़ने की तरह ही बिजली विभाग भी आंख मूदकर करंट छोड़ रहा है। यही वजह है कि कहीं मवेशी तो कहीं इंसान मवेशियों की तरह बेमौत मर रहे हैं। विभाग के कर्मचारी भी इन झटकों का शिकार होकर अस्पताल में जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सरकारी भाषा बोलने वाले निर्दयी अधिकारी इस सच्चाई को भी तो जाने कि मुआवजे मात्र से किसी परिवार की खुशियां नहीं लौटाई जा सकती। बात जब व्यवस्था की ही चली है तो सात नव चयनित कांस्टेबलों के सपने पंचर हुई व्यवस्था ने ध्वस्त कर दिए। चयन की सारी कसौटियों पर खरे साबित हुए इन जवानों को क्या पता था कि चयन की गड़बडि़यां उनके रास्ते में कांटे बिछा देंगी। अब नए सिरे से वही सारी प्रक्रिया दोहराई जाएगी। जो दोषी होंगे, सजा भी पाएंगे, लेकिन धन, समय, सपनों की बबाüदी की वसूली कैसे और किनसे की जाएगी।
अतिक्रमण मुक्त होंगी कुçर्सयां
व्यवस्था जब अतिक्रमण की शिकार होने लगे तो उसे अभियान चलाकर ही आजाद कराया जा सकता है। 26 जनवरी को तिरंगा फहराने के बाद अब दोनों जिलों में कानून-कायदे के कामों में तेजी आ गई है। कलेक्ट्रेट सहित बाकी विभागों में वर्षों से एक ही कुर्सी, एक ही शाखा में बरगद की तरह जड़ें जमा चुके बाबुओं को बोंसाई पौधों में तब्दील करने की कारüवाई शुरू क्या हुई, बाबू लोग अपने संबंधों की दुहाई देने जयपुर पहुंच रहे हैं। कौन कितना पॉवर फुल है, यह परिणाम आना बाकी है। कुçर्सयों को अतिक्रमण मुक्त करने की तरह ही गंगानगर में भी सरकारी भूमि को अतिक्रमण मुक्त कराने, अवैध कॉलोनियों में हो रहे निर्माण पर रोक लगाने का मन भी बन गया है। कम से कम उन लोगों के लिए तो ठीक ही है जो सारे टैक्स चुकाने के बाद भी सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं। सरकारी जमीन को मुक्त कराने के साथ लगे हाथ जिला प्रशासन को यह भी खोज-खबर लेना चाहिए कि स्कूल, अस्पताल धर्मशाला, धर्मार्थ ट्रस्ट जैसे सेवा कायोZ के लिए जिन संस्थाओं, समाजों ने जमीन ली है वे सेवा कर भी रहे हैं या औने-पौने दाम पर दुकानों के कारोबार में मेवा खाकर मस्त हो रहे हैं।
बात ग्रंथी से भी आगे बढ़े
हनुमानगढ़ में नशे के आदी एक ग्रंथी को पदमुक्त किए जाने का निर्णय लिया गया है। ऐसे साहसी निर्णय से हालात बदले भले ही नहीं, लेकिन चिंतन तो किया ही जाना चाहिए कि गुरवाणी का पवित्र नशा करने वाले ग्रंथी को शराब-अफीम जैसे नशे ने क्यों आकर्षित किया? चिंतन यह भी तो हो कि एक ग्रंथी को पदमुक्त किए जाने से क्या सारे समाज में अच्छाई का उजाला फैल जाएगा, क्योंकि सर्वाधिक नशे की खपत में इन जिलों का नाम ऐसे ही नहीं है।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...
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