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Thursday 8 April 2010

मुखौटों से मुक्त हों तो जीवन का आनंद जानें

रूटीन के जीवन को भी हम ठीक से नहीं जी पा रहे तो इसलिए कि हमने जाने कितने मुखौटे लगा रखे हैं। घर में भी हम अधिकारी वाले मुखौटे से मुक्त नहीं हो पाते। कुछ देर के लिए ही सही इन मुखौटों को उतार कर देखें, जो अनुभव मिलेगा वह सुखदायी ही होगा। कस्तूरी मृग की तरह हम सब इसी सुख की तलाश में जिंदगी भर भटकते रहते हैं। माया-मोह के मुखौटों से मुक्ति की बात जब तक समझ आती है तब तक किराए का मकान खाली करने का वक्त आ जाता है।
रोज की तरह मॉर्निंग वाक से लौटते वक्त मैं रिज मैदान पर हॉकर से पेपर लेने के लिए रुका। पेपर की थप्पियां तो जमी हुई थी लेकिन भगवान दास चौधरी का पता नहीं था। मैंने कुछ पल इंतजार करना ठीक समझा। इसी बीच कंधे पर सफरी झोला टांगे एक सज्जन आए और दो पेपर उठाते हुए मेरी तरफ 10 रुपए का नोट बढ़ा दिया। मैंने एक पल सोचा कि उन्हें स्पष्ट कर दूं कि मैं भी आप ही की तरह ग्राहक हूं, फिर इरादा बदल दिया। छुट्टे की समस्या बताते हुए उन्हें एक पेपर और थमा दिया। इसी बीच एक और ग्राहक आ गए। यह सिलसिला करीब आधे घ्ंाटे चला। जब चौधरी जी लौटे तो मुझे दुकान संभालते देख आश्चर्य व्यक्त करने के साथ ही धन्यवाद की झड़ी लगा दी।
वैसे मेरे लिए भी इस आधे घंटे का अनुभव यादगार इस मायने में है कि उस दौरान जो भी लोग आए-गए उनके सामने मेरी कोई पहचान नहीं थी। देखा जाए तो पहचान के खोल से मुक्त होने का अपना एक अलग ही आनंद है। बचपन में हम सब कुल्फी और बर्फ के लड्डू सड़क पर ही खाने में नहीं झिझकते थे, मन तो अब भी ललचाता है लेकिन पहचान की खोल ऐसा करने से रोक देती है।
असली दिक्कत यह है कि हमने पहचान का ऐसा फेवीकोल लगा लिया है कि चाहते हुए भी मुखौटों को नहीं उतार पाते। इस चक्कर में यह भी याद नहीं रहता कि कहां मुखौटा नहीं लगाना है। नौकरी हम कार्यालय में करते तो हैं लेकिन सारा टेंशन घर लेकर जाते हैं, गलती पर मिली बॉस की फटकार पत्नी और बच्चों पर बिना-बात नाराजी के रूप में निकालते हैं। जिन्हें हमसे प्यार की अपेक्षा रहती है उनसे हम कई बार तो ऑफिस के प्यून से भी गया-गुजरा व्यवहार कर बैठते हैं। बात-बात पर कोल्हू के बैल की तरह काम करने का हवाला देते वक्त हमें यह भी याद नहीं रहता कि घर की महिलाओं का सूर्योदय किचन से तो होता है लेकिन काम के बोझ में सूर्यास्त कब हो गया यह तक उन्हें याद नहीं रहता। ऐसे कई पुलिसकर्मी मिल जाएंगे जो अपने बच्चों, घर के सदस्यों से आरोपियों वाली शैली मेें बात करना अपनी शान समझते हैं और इसे अपनी स्टाइल गिनाने में भी शर्म महसूस नहीं करते। यही नहीं ऐसे कई अधिकारी भी मिल जाएंगे जो घर में भी क्लासवन अफसर की ही तरह व्यवहार करते हैं। हद तो तब हो जाती है जब सेवानिवृत्ति के बाद भी ज्यादातर लोग इन मुखौटों से मुक्त नहीं हो पाते और परिवार के लिए बेवजह तनाव का कारण बने रहते हैं।
अपनों के सुख-दु:ख में हम कितनी देर रुकें , कितना बोलें, कितने इंच की मुस्कान बिखेरें यह सब भी हमारे मुखौटे ही तय करते हैं। आपसी संबंधों में आज जो पहले जैसी मिठास नहीं रही तो उसका कारण हमारी यह मुखौटे वाली जिंदगी भी है। हम समाज से अपनापन, मानवीयता, सद्भाव खत्म होने की चिंता के साथ ही टेक-एंड-गिव वाले रिश्तों की आलोचना भी करते हैं लेकिन यह नहीं स्वीकारना चाहते कि इस सामाजिक प्रदूषण को बढ़ाने में हमारी भी सक्रिय भागीदारी है। पेड़ को पता है पतझड़ के बाद उसकी खूबसूरती बढ़ जाएगी। मंदिर में स्थापित हनुमानजी की प्रतिमा जब सिंदूर का चोला छोड़ती है तब मंदिर में दर्शनार्थी उमड़ पड़ते हैं। सांप भी साल में एक-दो बार केंचुली उतार देता है। नदियां ऊंचाई का मोह त्याग कर पहाड़ों, जंगलों, टेड़े रास्तों से होती जनजीवन के बीच पहुंचती है तो उन नदियों का जल पूजाघरों में श्रद्धा-आस्था से रखा जाता है। हम हैं कि इन सब से भी कुछ सीखना समझना नहीं चाहतेे। इन मुखौटों के बल पर हमने अपना आभामंडल समुद्र जितना विशाल तो कर लिया लेकिन समुद्र कितना अभागा होता है कि पानी का इतना विशाल भंडार होने के बाद भी कोई उसमें से एक चुल्लू पानी पीना भी पसंद नहीं करता।

7 comments:

  1. आपके जीवन दर्शन के कयाल हो गये. पहाड बहुत बाते करते है. आपको पहाड कि बोली समझने कि लागता है , महारत हासील है . विनोद भावुक

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  2. raanaa ji,
    aapne bahut achchhaa likhaa hain.
    mukhauto ke bojh se hamaari aazaadi, hamaari khushiyaan buri tarah se dab gayi hain.
    jinhe mukhauto ke bojh se aazaad karnaa ati-aawashyak hain.
    thanks.
    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

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  3. rana ji,
    mujhe aapki bahut yaad aati hain. main aapko bahut miss kartaa hoon.
    jab bhi main mera blog likhtaa hoon yaa kisi or kaa blog padhtaa hoon, to aapki yaad sataati hain.
    lekin,,,,,,,,in sab se bachaa nahi jaa saktaa. yaad ko aanaa hain to aayegi hi,,,,kya kare???

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  4. aapki profile waali photo bahut achchhi lag rahi hain.
    garam kapdo main aapki photo se lag raha hain ki--aap shimla or wahaan ki thand kaa lutf uthaa rahe hain.
    aapko khush dekhkar main bhi khush hoon. aap sadaa khush rahiye yahi ishwar se praarthnaa hain.
    thanks.
    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

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  5. mujhe aapki ye post bahut acchi lagi , aisi hi ek ghatna mere sath bhi hui thi ..aur wakayi me zindagi ka ek naya hi sabak mila tha ... badhayi sweekar kare..

    aabhar aapka

    vijay

    pls read my new poem on my blog
    www.poemsofvijay.blogspot.com

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  6. बहुत बढ़िया लिखा आपने........कभी हमारे राजस्थानी ब्लॉग राजस्थानी रांधण पर भी पधारें.

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  7. bahut kuchh seekhne ko milta hai pachmel se... in anubhutiyon se gujrna aur unhe itni sahjta se vykt bhi krna.... vah, kya baat hai. bahut achha lgta hai...

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