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Thursday 11 November 2010

अच्छा ही है बैलेंस बनाकर चलना

चाय के साथ बिस्कुट का नाश्ता करते वक्त हम सबकी पूरी कोशिश रहती है कि चाय में बिस्कुट उतनी ही देर डुबोएं कि उसे आसानी से मुंह तक ले जा सकें, वरना कपड़ों पर चाय-बिस्कुट गिर जाने का खतरा रहता है। इतनी ही सजगता क्या हम रिश्तों में ताजगी बनाए रखने में दिखलाते हैं। जो हमारे प्रति अधिक विनम्र होता है, उसे हम या तो मूर्ख मान बैठते हैं या फिर यह सोच लेते हैं कि हम इसके लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। अकसर ऐसी ही गलती हाथी भी चींटी के संबंध में करता रहता है। चींटी जब अपने वाली पर आती है तो हाथी की सारी हेकड़ी धरी रह जाती है। और तो और वह चींटी को पैरों तले रौंद भी नहीं सकता।
बधाइयों को आदान-प्रदान करने वाले इस सप्ताह में पहुंची मित्रों की टोली ने नाश्ता खत्म किया ही था कि चाय के साथ प्लेट में बिस्कुट भी हाजिर थे। ना-नुकर पर मनुहार भारी पड़ी। दोस्तों ने एक हाथ में चाय का कप थामा और दूसरे में बिस्कुट। बातचीत तो जारी थी ही, कप में बिस्कुट डुबोए, चाय तेज गर्म होने के कारण कुछ मित्रों के बिस्कुट का आधा गला हिस्सा कप में ही रह गया। कुछ ने बिस्कुट खाने के लिए मुंह थोड़ा नीचे झुकाया ही था कि गला हिस्सा तेजी से नीचे झुका और डप्प से कप में जा गिरा। कप से उड़े चाय के छींटे दोस्त के मुंह एवं कपड़ों पर फैल गए। बाकी दोस्तों का ठहाका तो गूंजा ही, अब बात दीवाली से हटकर चाय से जुड़े किस्सों पर शुरू हो गई कि कब किसके साथ क्या हुआ।
चाय और बिस्कुट से जुड़ा यह दृश्य न तो नया है और न अनूठा, हम में से कई के साथ ऐसा हो भी चुका है। इस दृश्य में भी सीखने वाली बात जो है वह यह कि जिंदगी में आप किस तरह से संतुलन बनाकर चलें। चाय अधिक गर्म हो तो बिस्कुट खाते वक्त सावधानी बरतनी जरूरी है और बिस्कुट-चाय में यादा देर तक गलता छोड़ दें तो उसे खाते वक्त और अधिक सावधानी बरतना पड़ेगी। मुझे यह जीवन दर्शन भी नजर आया कि हम कब, कहां, कितनी सावधानी बरतें, कितनी सजगता रखें। जिंदगी की डोर भले ही बेहद मजबूत हो, लेकिन रिश्तों की डोर तो बेहद पतली एवं कच्चे सूत की होती है। जहां पल-पल हमें अपने व्यवहार और दूसरे की खुशी का ख्याल रखना होता है। अपेक्षा हर पक्ष की अधिक होती है। सबकी अपेक्षा पर हम खरे इसलिए नहीं उतर पाते क्योंकि बाकी सब भी हमारी अपेक्षा पर भी कहां खरे उतरते हैं। चाय-बिस्कुट वाला दर्शन यह तो सीख देता है कि जब जैसे हालात हों उसके मुताबिक अपना मान-सम्मान बचाकर रखते हुए व्यवहार करें। इसके लिए दूसरे पक्ष से सजगता और सहयोग की अपेक्षा भी न करें। हमें यदि पता है कि चाय बेहद गर्म है तो यह हमें ही तय करना होगा कि बिस्कुट इतनी देर ही गलाएं कि उसे हम आराम से खा भी सकें। रिश्तों को हम कितना मजबूत बनाएं कि उन्हें निभा भी सकें। कोई एक पक्ष बिस्कुट की तरह झुकता-गलता ही जाए और दूसरा पक्ष गर्म मिजाज, अपनी अकड़ बरकरार ही रखे तो बात नहीं बन सकती। रिश्ते यादा लंबे नहीं खिंच सकते। लंबे वक्त तक रिश्तों में ताजगी तभी बनी रह सकती है जब दोनों पक्ष अपनी अकड़ छोड़े और सहयोग की भावना भी बरकरार रखें। एक पक्ष चाय सा गर्म बना रहे और दूसरा विनम्रता में झुकता चला जाए तो इस विनम्रता को उसकी मूर्खता मान लेना भी ठीक नहीं क्योंकि तूफान के हालात बनने पर अकड़ा खडा खजूर का दरख्त ही धूल चाटता है। जमीन पर मखमली गलीचे की तरह फैली दूब का तो तूफान भी बाल बांका नहीं कर सकता। एक छोटी सी चींटी हाथी को बदहवास कर सकती है, लेकिन हाथी इस चींटी को अपने पैराें तले रौंदने में भी असहाय रहता है।
हमारा कोई मित्र, कोई रिश्तेदार हमारे प्रति अत्याधिक स्नेही है तो सामाजिकता का तकाजा है कि हमें भी उसके प्रति अपना नजरिया सकारात्मक रखना ही होगा। सिर्फ इसलिए उसे उपेक्षा या हिकारत की नजर से देखें कि वह पद में, संपन्नता में हमसे छोटा है। दृष्टि दोष हमारी ही हंसी उड़ने का कारण भी बन सकता है। हमारे ही मित्रों, संबंधियों में कई चेहरे ऐसे याद आते हैं कि जिनकी तारीफ हम इसलिए करते हैं कि वे हर हाल में सेक्रिफाइज, समझौता सिर्फ इसलिए करते रहते हैं कि बाकी लोगों को खुशी मिले। ऐसे लोग कम ही होते हैं, और ये कम लोग ही हमे सिखाते हैं कि बाकी लोगों को खुश रखने वालों को जिदंगी में हर मोड़ पर कितने समझौते करने पड़ते हैं। हम हैं कि समझौते में भी अपनी जीत के कारण गिनाना नहीं भूलते। अच्छा होगा कि रिश्तों को लंबे वक्त तक निभाने के चाय-बिस्कुट जैसा तालमेल बनाकर चलें। इससे यह फायदा तो होगा ही कि हम दूसरे की खुशी का कारण भले ही न बने पाएं अपने मैं तो खुश रहना सीख ही लेंगे।

2 comments:

  1. आदरणीय राणा साहब,
    पचमेल में आप ने रिश्तो के जीवन दर्शन को बेहद खूबसूरती से रखा है... रिश्तो की इस समझ के अभाव में हम न जाने कितने ऐसे लोगों को हमेशा के लिए खो देते है जिन्होंने हमारी ख़ुशी के लिए बहुत कुछ त्याग दिया और हम उनकी विनम्रता को अपनी कथित योग्यता का अधिकार समझते रहे...चाय और बिस्कुट की तरह जीवन में भी रिश्ते दू तरफ़ा निभाने पर ही निभते है....अच्छे आलेख के लिए आभार!
    इस गजल पर आप का ध्यान चाहूँगा---
    जलते रहें दीपक सदा काईम रहे ये रोशनी
    http://prakashpakhi.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
    आपका
    प्रकाश पाखी

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