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Monday 26 July 2010

काम जितनी राम राम!

हमसे आगे हमारा स्वार्थ तेज कदमों से चलता है लिहाजा सामने जो भी आता है हम मन की तराजू पर उसे तौलने लग जाते हैं कि वह आदमी हमारे आज काम आएगा या कल। जितना वह आदमी हम हमारे काम का लगता है उसे उतना ही सम्मान देते हैं। यदि काम का नहीं है तो किक मार देते हैँ । फुटबाल के मैदान में तो किक सही लग जाए तो गोल हो जाता है लेकिन आम जिंदगी में किक मारने की यह आदत हमें लोगो की नजर से गिरा भी सकती है।
अभी फीफा कप का जुनून चलता रहा। फुटबॉल देखते वक्त ऐसा लगता है कि हम सब की जिंदगी भी फुटबॉल की तरह ही है। कुछ लोग हमेें और हम किसी और को ताउम्र किक ही तो मारते रहते हैं। जब किक सही लग जाती है तो सफलता का गोल हमारे खाते में दर्ज हो जाता है।
खेल चाहे क्रिकेट, फुटबॉल या खो खो ही क्यों ना हो किसी भी खेल में सफलता टीम के सदस्यों के समान सहयोग से ही मिलती है असफलता के कारणों में चाहे कोई एक खिलाड़ी की चूक रहे लेकिन टीम के बाकी सदस्य उसे सूली पर चढ़ाने जैसे भाव नहीं दर्शाते। खेलों में जो टीम भावना नजर आती है क्या वह हम अपनी जिंदगी और कार्य क्षेत्र में तलाश पाते हैं, शायद नहीें। हम समाज का हिस्सा हैं लेकिन बिना समाज के हम कुछ भी नहीं यह बात हम आसानी से तभी समझ पाते हैं जब हम इस तरह के हालातों से गुजरते हैं। जिस तरह एक हेयर कटिंग सैलून का संचालक खुद की कटिंग नहीं कर सकता उसी तरह जटिलतम आपरेशन करने वाला डाक्टर भी अपनी पीठ पर उभरे फोड़े का अपने हाथों आपरेशन नहीं कर सकता।
इस असलियत को समझने के बावजूद हम लोग ना जाने किस भ्रम में जीते हैं। हम लोगों से किक मारने की स्टाइल में व्यवहार करते हैं। हमें लगता है जो कभी हमारे काम नहीं आ सकता उसे फुटबॉल की तरह किक मार भी दें तो अपना क्या बिगडऩा है। ऐसा करते वक्त यह भी याद नहीं रहता कि अब दुनिया इतनी छोटी हो गई है कि अगले मोड़ पर उसी व्यक्ति से काम पड़ सकता है जिसे कुछ समय पहले ही किक मारी थी। समझदार दुकानदार दुकान के सामने कटोरा लेकर खड़े भिखारी को छुट्टे पैसे डाल कर पुण्य तो कमाता ही है और चिल्लर का संकट पडऩे पर इन्हीं से कमीशन पर चिल्लर भी ले लेता हैं।
जिसे हम कुछ नहीं समझ कर तिरस्कृत करते हैं हमेंं पता नहीं उसे हम एक अनुभव मुप्त में देते हैं। हम जिस भी तरीके से उसे उपेक्षित करें उसे हमारा अंदाज तो पता चल ही जाता है। किसी को इतना भी उपेक्षित और तिरस्कृत ना किया जाए कि वह और आक्र ामक होकर सामने आए। पवित्र नर्मदा नदी के संबंध में प्रचलित है कि नर्मदा का कंकर भी शंकर है। दरअसल नर्मदा के तेज प्रवाह में पहाड़ी क्षेत्रों से पत्थर बह कर आते हैं और लगातार किनारों और चट्टानों से टकरा कर घिसते-घिसते गोलाकार हो जाते हैं। चूंकि घर के पूजा कक्ष में अंगूठे से कम आकार के शिवलिंग रखे जाते हैं इसलिए जो भी श्रद्धालु नर्मदा स्नान को जाते हैं लौटते में अपने साथ कंकर बने शंकर को पूजन के लिए साथ ले आते हैँ। उपेक्षा, हिकारत, से उपजी संघर्ष क्षमता ही कंकर को भी शंकर बना देती है।
हमारा स्वार्थ हम से आगे चलता है इसलिए हम मन की तराजू पर लोगों का वजन करते चलते हैं कौन अभी काम आ सकता है, कौन कल काम आएगा और कौन छह महीने बाद उपयोगी हो सकता है। हमारे काम मुताबिक ही हम मान सम्मान की मात्रा भी तय करते हैं। यदि चाय पिलाने मात्र से काम निकल सकता हो तो हम झूठे मुंह ही सही खाने का पूछने की जहमत नहीं उठाते। जो कल काम आ सकता है उसके लिए हमारे मन में आज मान सम्मान नहीं उमड़ता और आज जो हमारे काम आ गया उसे कल तक याद रखें यह जरूरी नहीं लगता।
मतलब नहीं हो तो हम किक मारने में देरी नहीं करते और काम अटका हुआ हो तो पैरों में लौटने में भी हमें अपमान महसूस नहीं होता। हम जब लोगों से काम निकालने जितने संबंध रखेंगे तो लोग भी अपना काम छोड़कर हमसे नहीं मिलेंगे। फुटबॉल सिखाता तो यही है कि गोल करने या टीम को जिताने के लिए साझा प्रयास जरूरी होते हैं। अकेला खिलाड़ी सोच ले कि वह टीम को जिता देगा तो यह संभव नहीं। टीम के बाकी सदस्य अच्छा खेलें और कोई एक सदस्य सहयोग न करे तो भी जीत संभव नहीं।

4 comments:

  1. इस भागती-दौड़ती ज़िंदगी में जब इन्सान अकेले-पन और और स्वार्थ को गहने की तरह अपना हिस्सा बनाए हुए है..ऐसे में संगठन की शक्ति का अह्सास करवाता ये लेख, आत्मावलोकन के लिए सभी को बाध्य करे..इसी शुभकामना के साथ...

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  2. आईना दिखाती पोस्ट के लिए हार्दिक आभार.

    ब्लॉग-गुरु जी, आपके आशीर्वाद से मेरा ब्लॉग सकुशल चल रहा हैं. मैं मेरे ब्लॉग को प्रसिद्ध करना चाहता हूँ, मैं मेरे ब्लॉग की पाठक संख्या बढ़ाना चाहता हूँ. क्या आप मुझे इस सम्बन्ध में कोई सुझाव-आइडिया दे सकते हैं?????

    धन्यवाद.

    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

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  3. काम जितनी राम राम...बिलकुल सही कहा है आपने...लेकिन कई बार मन होने के बावजूद..व्यस्तताएं इतनी होती हैं कि सामने वाले को महसूस होने लगता है कि उसकी अहमियत नहीं है..फिर भी दुनिया में अधिकतर लोग ऐसे ही हैं जो अपने मतलब के बाद सामने वाले को दूध से मक्खी की तरह बाहर निकाल देते हैं.. www.deendayalsharma.blogspot.com, www.ddji.blogspot.com,www.taabartoli.blogspot.com,www.taabardunia.blogspot.com, Mob. 09414514666

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  4. फुटबाल के मैदान में तो किक सही लग जाए तो गोल हो जाता है लेकिन आम जिंदगी में किक मारने की यह आदत हमें लोगो की नजर से गिरा भी सकती है।......
    vah!
    yah darshan behatar hai...
    achha lga.

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