राह में कांटे बिछाने का अधिकार मजदूरों को मिला है तो इसलिए कि वह नई राह भी बनाते हैं। हम हैं कि कांटें बिछाना और अपने दमखम पर तरक्की करने वालों की टांग खींचना ही जानते हैं। दोस्त जब हमें हमारी गलतियां बताते हैं तो वो भी हमें कांटों के समान लगते हैं। तब भी हम भूल जाते हैं कि गुलाब फूलों का राजा इसलिए है कि वह कांटों को गले लगाना जानता है।
माना तो यह जाता है कि कांटे और कंटीली झाडिय़ां किसी काम नहीं आते, लेकिन शिमला के पहाड़ी रास्तों के सीमेंटीकरण और टाइल्स लगाने में कंटीली झाडिय़ों की टहनियों का सहयोग न हो तो ये रास्ते भी जल्दी समतल न हो पाएं। यह ठीक वैसा ही है कि जीवन में सुख-दुख न हो तो किसी एक का महत्व पता ही नहीं चल पाए। रोज खाने में गरिष्ठ भोजन खाते-खाते भी मन एक दिन मूंग की दाल-रोटी की मांग स्वत: करने लगता है।कांटे बिना, गुलाब भी फूलों का राजा इसलिए नहीं कहा जा सकता कि राजा ही तो सभी को प्रसन्न रखने के लिए कांटों का ताज पहनता है। पहाड़ी रास्तों को समतल बनाना भी अपने आप में किसी चुनौती से कम नहीं और जब इन रास्तों पर टाइल्स लगाना या सीमेंटीकरण करना हो तो किए गए काम को सूखने-मजबूत होने के लिए 24 घंटे का अंतर तो रखना ही पड़ेगा। मजदूर शाम को जब काम बंद करके जाने लगते हैं तो तैयार किए मार्ग पर कंटीली टहनियां डाल जाते हैं। ये मजदूर राहगीर के रास्ते में शायद कांटे इसलिए बिछाते हैं कि राह से आने-जाने वाले इन कांटों से बचकर चलना सीख लें तो जीवन में आने वाली मुश्किलों को भी बिना घबराए पार करना समझ जाएंगे।
जैसे कांटे गुलाब की सुंदरता की रक्षा करते हैं उसी तरह ये कंटीली झाडिय़ां तैयार किए गए रास्तों को पैरों की धमक से बचाती हैं। 24 घंटे में जब पर्याप्त धूप-हवा-पानी से ये मार्ग मजबूत हो जाता है तो मजदूर इन कंटीली टहनियों को अगले निर्मित हिस्से पर रख देते हैं।
सारे शिमला में कहीं न कहीं इस तरह के निर्माण कार्य चलते ही रहते हैं। मुझे लगता है रास्तों को समतल बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाले कांटो वाला दर्शन हम सब को यह संदेश भी देता है कि जिंदगी के सफर में आने वाली तमाम मुश्किलें भी तो इन्हीं कांटों के समान है। जो मुश्किलों से घबरा जाते हैं वो कांटों के इस दर्शन को नहीं समझ पाते। हमारी बुराइयों को जो मित्र सार्वजनिक रूप से बताने का साहस करता है वह हमें कांटों के समान ही लगता है। ऐसा लगने पर यदि हमें कांटों के बीच खिलने वाले गुलाब की याद आ जाए तो हमें अपने ऐसे दोस्त भी प्रिय हो सकते हैं। दोस्त जब हमारी गलतियों पर हमें बिना किसी लाग-लपेट के बताते हैं तो वे हमारे दुश्मन नहीं बल्कि हमारे सच्चे शुभचिंतक ही होते हैं।
ये निंदक हमें अपनी गलतियां सुधारने के लिए आइने के समान ही हैं। आइने में हमारी सूरत भी अच्छी तभी दिखेगी जब हमारी अच्छाइयां लोगों को नजर आएंगी। मन में मैल, विचारों में खोट होगी तो सूरत मटमैली नजर आएगी। ऐसे में आइने को चाहे जितना साफ करते रहें, दोष उसका नहीं हमारी सूरत का है। लोगों को बिछाने दें कांटे, हम किसी की राह में फूल बिछाने की उदारता तो दिखाएं। कोई हमारे लिए अच्छा करे तब हम भी किसी के लिए अच्छा सोचेंगे, यह धारणा किसी को तो छोडऩा ही होगी। जो कांटों के बदले फूल देगा उस पर फूलों की बारिश करने को लोग भी आतुर रहेंगे।
bahut badhiyaa likhaa hain aapne.
ReplyDeletemain aapki lekhni kaa kaayal hoon.
chhoti-chhoti baaton se hi aap kitni badi baat-seekh ko le lete hain.
aapkaa ye hunar, aapki ye kalaa mujhe bahut achchhi lagi.
bahut badhiyaa or shikshaa-prad likhne ke liye haardik aabhaar.
thanks.
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ReplyDeletethanks.
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bad-dimag hain wo jo kaanto ki kadr nahi karte...
ReplyDeletejindagi mein khubsoorati bharne ke kitne rang yahan hayn. hamen hi rangon ki parakh kahan hay. aam jivan se uthaye gaye parsangon ke jariye apni baat ko tarak sangat tarike se rakhne ka apke pass kamal ka hunar hay. Vinod Bhavuk
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