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Wednesday 2 September 2009

अच्छा करें या बुरा व्यर्थ नहीं जाएगा

जब हम दुखों से घिरे होते हैं तब अपेक्षा होती है कि लोग हमारी मदद न भी करें तो हमारा दुज्ख सुने और समझें। यह अपेक्षा भी जब पूरी नहीं होती तब हम कुछ इसी तरह नाराजगी व्यक्त करने से नहीं चूकते कि हमने कितना कुछ किया लेकिन हमारे लिए किसी ने कुछ नहीं किया। ऐसा उलाहना देने से पहले यह समीक्षा भी कर लें कि आपने जिनके लिए जो कुछ भी किया उसमें खुद का स्वार्थ कितना था।
आपने किसी के लिए कुछ निरपेक्ष भाव से किया है तो ऐसा भाव आएगा ही नहीं। यदि मन में ऐसा भाव आ जाए तो सब गुड़ गोबर हो गया। क्योंकि जब आपने किसी के लिए कुछ किया था तो आपको यह पता नहीं था कि भविष्य में आप पर दुखों बादल बरसेंगे और आप जिन्हें उपकृत कर रहे हैं वो राहत की छतरी आप पर तान कर खड़े रहेंगे।
हनुमान भक्त पं. विजयशंकर मेहता उज्जैन में जब किसी भी प्रसंग के दौरान अपना चिर-परिचित वाक्य दोहराते थे क्वकिया हुआ व्यर्थ नहीं जातां तब इन शब्दों की गंभीरता-गहराई कई सहकर्मियों को तत्काल समझ नहीं आती थी लेकिन मेरा मानना है यह बात जीवन के हर क्षेत्र में लागू होती है। पुलिसकर्मी अपने कार्य को ईमानदारी से न करे, स्कूल में कोई एक शिक्षक अपना कार्य समर्पण भाव से करें, किसान खेत में बीज बोए या धनाढ्य परिवार का बेटा नशाखोरी पर पैसा उड़ाए, किया हुआ व्यर्थ तो नहीं जाता। किसान ने जो किया तो फसल पाई, बिगड़ैल बेटे ने अपने जीवन के साथ ही परिवार की खुशियां तबाह कर डाली। स्कूल के दस-बारह शिक्षकों में कोई एक शिक्षक ही क्यों बच्चों में लोकप्रिय होता है इसे बच्चों से ज्यादा बाकी शिक्षक समझते हैं। एक पुलिसकर्मी की गैर जिम्मेदारी पूरे थाने, विभाग की नाक नीची करा देती है।
जिंदगी का जो उपहार मिला है इसके हर दिन का लेखा-जोखा हम ही लिखते हैं। हमारे कार्य-व्यवहार टेनिस की गेंद के समान है-जिस गति से हम दीवार की तरफ फेंकेंगे उसी गति से लौटेगी। सुख सदा साथ रहेगा इसकी गारंटी नहीं लेकिन दुज्ख पीछा नहीं छोड़ेगा यह तय है। इस सहज सत्य को हम समझने की कोशिश नहीं करते इसी कारण दूसरों के सुख हमें ज्यादा दुखी हैं। जब ईश्वर की कृपा होती है, अच्छा ही अच्छा होने लगता है, तब चार दिन की इस चांदनी में भूल जाते हैं कि शुक्ल पक्ष के बाद कृष्ण पक्ष भी आने वाला है। चाहे जब होने वाली बिजली कटौती से वो लोग कम परेशान होते हैं जो अंधेरे को परास्त करने के इंतजाम मोमबत्ती, माचिस, इनवर्टर आदि तैयार रखते हैं। अंधेरे घुप्प कमरे में भी उन्हें माचिस, मोमबत्ती ढूंढने में परेशानी नहीं होती, क्योंकि पहले से पता होता है। बस इतना सा ही तो फंडा है सुख, दुःख बीच।
किया हुआ जब व्यर्थ नहीं जाता तो मानकर चलना चाहिए हमने कुछ अच्छा किया है तो देर-सवेर फल भी अच्छा ही मिलेगा। शबरी को उसकी तपस्या के बदले श्रीराम को जूठे बेर खिलाने का अधिकार मिला तो रावण ने जैसा किया उसे भी वैसा ही परिणाम मिला।
रोजमर्रा की जिंदगी में ही देख लें, गलत तरीकों से कमाई करके संपन्न होने का सपना पूरा जरूर हो जाए, लेकिन देर सवेर यही गलत कमाई पूरे परिवार के शारीरिक-मानसिक संताप का कारण भी बन जाती है, ऐसे कई किस्से हमारे आसपास ही बिखरे पड़े हैं। घर में अभिभावक साल भर बच्चों को पढ़ाई, परीक्षा, कैरियर को लेकर आगाह करते रहते हैं, क्लास में टीचर्स भी बच्चों को बिना भेदभाव के पढ़ाते-समझाते हैं, लेकिन परीक्षा में क्लास के सभी स्टूडेंट तो टॉपर होते नहीं जिसने जैसा किया होता है वैसा ही परिणाम आता है। हम किसी के प्रति अपनापन रखें या बैरभाव यह तो चल जाएगा लेकिन किसी के लिए कुछ करें तो यह न भूलें कि बबूल बोएंगे तो उस पर आम तो नहीं लगेंगे। टिकट यदि जयपुर का लें और जमशेदपुर की यात्रा करना चाहें तो परिणाम का भी हमें ही सामना करना पड़ेगा।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...

3 comments:

  1. सही समझाईश.

    खम्मा घणी-सा...

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  2. khama ghani saa.
    rajasthani raa e teen sabad jika boht ki keh deve. in ri mithaas ne chaakho saa.

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  3. namaste kirti ji,
    main aapki baat se bilkul sehmat hoon. hamaare karam hi hame mahaan banaate hain. geeta main bhi kaha gaya hain ki-"karam kar fal (result) ki kaamnaa mat kar."
    mrityu ke baad hamaare karam hi hame swarg yaa narak gaami banaate hain. har kisi ko hamesha sat-karam hi karne chahiye.
    aapki baat iss baare main bilkul sahi hain.
    thanks.
    CHANDER KUMAR SONI,
    L-5, MODEL TOWN, N.H.-15,
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