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Wednesday 17 June 2009

प्रायश्चित तो कर सकते हैं?

आप किसी भी शहर में जाएं, अपने शहर और अपने लोगों की शक्ल से मिलते-जुलते लोगों से सामना हो ही जाएगा। उस बेगाने में जब हम अपना खोजते हैं तो सहजता से गुण-दोष भी देखते चलते हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। गत सप्ताह पंजाब, हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों की यात्रा की। इस दौरान रह-रहकर श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ याद आता रहा। श्रीगंगानगर से साथ चलने वाली नहरें पंजाब के रास्तों में भी साथ-साथ चल रही थी। मुझे वहां की नहरों के आसपास फैली हरियाली देखकर जलन होती रही। ठीक है वहां की नहरों का फैलाव नदियों की तरह हैं, लेकिन हमारे जिलों में नहरों जैसी नहर तो है ही। वहां दोनों किनारों पर घनी हरियाली में कई जगह धूप को अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए संघर्ष करते देखा। दूसरी तरफ हमारी नहरें दूर तक नंगे बदन, हरियाली की उतरन तक नजर नहीं आती उनके शरीर पर। पौधे एक दिन में पेड़ नहीं बन सकते, लेकिन पंजाब की नहरें जब हरियाली के बीच से अठखेलियां करते हुए हमारे जिलों तक आ सकती हैं, तो हम अपनी नहरों के किनारों को क्यों हरा भरा नहीं कर सकते। इन दोनों जिलों के नहरी विभाग में पदस्थ होने वाले अधिकारी जरूर हरे भरे होते रहते हैं, लेकिन नहरों के आसपास हरियाली के लिए नहीं सोचते और तो और यह चिंता भी कम ही पालते हैं कि जो पेड़ लगे थे, वहां अब ठूंठ क्यों नजर आते हैं। यहां के नहरी अधिकारी भी पंजाब आते-जाते रहते हैं। हमारी नहरों के आसपास ऐसी हरियाली क्यों नहीं हैं, जैसे प्रश्नों पर अपने परिवार के बाकी सदस्यों को कैसे संतुष्ट करते होंगे। अब तक जो भूल, अनदेखी होती रही उसके लिए कौन-कितना दोषी है, इस बहस में पड़ने से अच्छा तो यह होगा कि जिला प्रशासन, वन विभाग, नहरी विभाग, जनसंगठन और नहरों के आसपास के गांवों के लोग मिलकर युद्धस्तर पर पौधारोपण करके अपने पूर्ववर्तियों के पापों का प्रायश्चित तो कर ही सकते है। इसी यात्रा में पंजाब के आगे हिमाचल प्रदेश के शहरों में पोलीथीन पर पाबंदी के नियम का सस्ती से पालन भी देखा। सामान चाहे दस रुपए का लें या हजार का, जो मिलेगा कागज के लिफाफे में ही मिलेगा। पर्यावरण के प्रति जागरूकता का यह कानून लोगों के सहयोग से ही सफल हो रहा है। हमारे जिलों में पोलीथीन के खिलाफ अभियान तो कई बार चले, लेकिन स्थायी तौर पर कुछ नहीं हो पाया तो इसलिए कि लोग मन से तैयार नहीं हो पाए। यदि हम अपने घर से ही कपड़े का थैला लेकर जाएं तो पोलीथीन पर स्वतज् प्रतिबंध में सहयोग करने लगेंगे। राज्य सरकार कानून बनाए तो फिर जिला प्रशासन को पालन कराना ही होगा। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि पर्यावरण सुधार की दिशा में जिला प्रशासन ही कुछ ऐसा करे कि राज्य में मिसाल कायम हो। खुली कचरा गाड़ी देखकर परिषद आयुक्त की खिंचाई करने से अच्छा है कि पोलीथीन विरोधी अभियान की कमान खुद प्रशासन अपने हाथ में ले।
अच्छी सड़क होने का दुर्भाग्य!
एक सप्ताह में श्योपुराकस्सी जैसे गांव में वाहन दुर्घटना में दो लोगों की मौत हो चुकी है। कारण वहीं है वाहनों की तेज रफ्तारराजस्थान सड़कों के मामले में बेहतर स्थिति में है और इन अच्छी सड़कों पर तेज गति से दौड़ते वाहन परिवार भी उजाड़ रहे हैं। वाहन अपना है तो जान भी तो अपनी ही है। श्रीगंगानगर हो या हनुमानगढ़ शायद ही कोई महीना ऐसा जाता हो जब इन अच्छी सड़कों से बुरी खबर न आती हो। तेज गति वाले वाहनों के साथ ही बिना रिफ्लेक्टर वाले ट्रक्टर, जुगाड़ भी दुर्घटना का कारण बन रहे हैं पता नहीं कब अभियान शुरू होगा ऐसे वाहनों के खिलाफ।
हरित श्रीगंगानगर भी हो
ऊहापोह तो खत्म हुई कि कौन आएगा राजीवसिंह की जगह। अब आशुतोष के हाथों जिले की कमान है। हरित राजस्थान की भावना से लबरेज कलेक्टर से यह अपेक्षा तो की ही जानी चाहिए कि प्रदेश में सर्वाधिक पौधरोपण का सम्मान श्रीगंगानगर को मिले। यह पौधरोपण सिर्फ फाइलों में नहीं जिले में नजर भी आना चाहिए। अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...

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