आप यदि अपना काम पूरी ईमानदारी से करने का दावा करते हैं तो फिर काम में होने वाली गलतियों को स्वीकारने का साहस भी होना चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है। हम हमेशा यही चाहते हैं कि अपने मित्रों-सहकर्मियों के सहयोग से यदि कुछ बहुत अच्छा हुआ है तो उसका सारा श्रेय तो सिर्फ हमारे खाते में दर्ज हो और किए गए काम में चूक हो गई है,तो उसके लिए कोई दूसरा दोषी नजर आए! हमारा यह चरित्र हमें कुछ देर के लिए तो आत्म संतुष्टि दिला सकता है, लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हमारे काम का मूल्यांकन करने वालों को भी तो नजर और दिमाग दे रखा है प्रकृति ने।स्कूल के दिनों में आप-हम सब इस हकीकत से गुजरें भी हैं, उस बाल मनोविज्ञान को हम ताउम्र साथ लेकर चलते हैं। इस कारण ही कथनी और करनी में अंतर जैसी हालत कमोबेश सभी के साथ रहती है। स्कूल में दिए होमवर्क के कठिन सवालों को हम अपने दोस्तों या परिवार के बड़े सदस्यों की सहायता से हल कर लेते थे, कॉपी चेक कराते वक्त हमें गुरुजी शाबाशी भी देते थे, तब हमें अपने लोगों से ली गई सहायता याद नहीं आती थी और न ही सफलता में सहयोग करने वालों का नाम बता पाने की इच्छा होती थी। जब कभी होमवर्क में गलतियां रह जाती थी या दिया हुआ काम जानबूझकर नहीं करते थे, तब क्लास में फटकार, पिटाई से बचने के लिए एक से एक नायाब बहानों की झड़ी लगा देते थे। गुरुजी के गुस्से से मुçक्त मिलने पर मन ही मन अपने झूठ से मिली सफलता पर खुश भी हो जाते थे। ये भूल जाते थे कि क्लास टीचर वर्षों से ऐसी बहानेबाजी और इसके पीछे की हकीकत समझते आ रहे हैं। पढ़-लिखकर ऊंचे पदों पर पहुंचने के बाद अब जब अचानक गुरुजी किसी मोड़ पर मिल जाते हैं, तो हमारा मन श्रद्धा से भर जाता है, स्कूली यादों को शेयर करते वक्त हम उस समय की बहानेबाजी के पीछे का सच अपनी शैतानी गिनाते हुए गर्व से बयान कर देते हैं।
उम्र का अंतर आ गया है, पद-नाम बदल गया है, परिस्थितियां बदल गई हैं, लेकिन जोड़-तोड़ कर श्रेय लेने की होड़ और अपनी गलती किसी ओर पर थोपने के मामले में हम आज भी नहीं बदले हैं। मनोविज्ञान में फर्क आया है, तो बस इतना कि गलत के खिलाफ बोलने की अपेक्षा चुप रहना हमें ज्यादा आसान लगता है। अपने हित में गलत को सही कराने के लिए हमें गलत तरीके अपनाना भी बड़ा सहज लगता है। हमारे एक परिचित अधिकारी ने अपने विभाग के कर्मचारियों की कार्यशैली और मनज्स्थिति का एक रोचक किस्सा बताया तो मुझे लगा कि स्कूल से कॉलेज की पढ़ाई, डिग्री, ओहदे के बाद भी हम सब बच्चे ही बने हुए हैं। किस्सा कुछ ऐसा है कि उनके एक सहकर्मी से लापरवाही के कारण फाइल में एक त्रुटि रह गई, दूसरे सहकर्मी ने भी फाइल में हुई उस भूल पर गौर नहीं किया। तीसरे कर्मचारी के पास फाइल पहुंची वहां भी यहीं हाल था। चौथे, पांचवें कर्मचारी ने भी पूरी फाइल गौर से देखी, लेकिन बस वही भूल नजर नहीं आई। एक के बाद एक लापरवाही के इस सिलसिले के साथ वह फाइल ओके कर के भेज दी गई। कुछ समय बाद वह जो छोटी सी लापरवाही थी महाभूल बनकर सामने आ गई। कार्यालय के रिकॉर्ड में दर्ज इस ऐतिहासिक भूल की जांच-पड़ताल शुरू हुई तो संबंधित सारे कर्मचारी उस चूक को स्वीकारने की बजाए यह सफाई देते नजर आए कि हमने अपने स्तर पर तो पूरी निष्ठा और लग्न से काम किया, ये गलती मेरी नहीं उसकी है।
ऐसी स्थितियों से हम सब को भी गुजरना ही पड़ता है, लेकिन हम कितनी बार सच का सामना करने या सच कहने का साहस जुटा पाते हैं। निर्जीव दीवारों, कुर्सी, टेबल से कभी गलतियां हो ही नहीं सकती, जो काम करेगा गलती उससे ही होगी फिर गलती स्वीकारने का साहस क्यों नहीं दिखा पाते। सीमा पर तैनात जवान को तो पता होता है निशाने में जरा सी चूक उसकी जान भी ले सकती है, जब वह साहस के साथ दुश्मनों को ढेर करने में लापरवाही नहीं बरतता तो हम रोजमर्रा के काम में वह बात क्यों नहीं ला सकते। हम अपनी गलती छुपाने में माहिर हैं, तो क्या कोई और हमारी असलियत पकड़ने में उस्ताद नहीं हो सकता। जिस वक्त हम नजर से नजर मिला कर झूठ को सच की तरह बोलने का नाटक करते हैं, उस वक्त यह भूल जाते हैं कि इस नाटक का एक दर्शक हमारा मन भी है, जो झूठ पर डालने के लिए किए अभिनय की असलियत समझता है। रोजमर्रा की जिंदगी में यदि अपनी गलती छुपाने के लिए दूसरों को दोषी ठहराने के बाद भी आराम से नींद आ रही है, एक पल को भी बेचैनी नहीं रहती तो मान लेना चाहिए कि अभिभावकों और शिक्षकों ने बालपन में हमारे मन में अच्छे इंसान वाले संस्कारों का जो पौधा लगाया था वह सूख चुका है और उसकी जगह कैक्टस पनप गया है।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...
rana ji,
ReplyDeletemaain aapse maafi chahta hoon ki-"maine aapka blog aaj (16.aug) ko padha hain." darasal main 3-4 dino se factory nahi jaa paa raha hoon. aapka akhbaar factory aata hain.
factory naa jaane ki wajeh se main aapka yeh blog nahi padh paayaa. aaj padha to reply de diya.
bahut achche vichaar hain aapke, i like it too.
sorry, jo itni late aapka blog padha hain, or weh bhi akhbaar ki bajaay net par.
again sorry.
Namastey uncle,I am in USA, i like your thoughts,its 1st time i read your blog, i am fond of your hindi vocabulary.
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