गर्मी के इन महीनों में शहर का सीना चीरकर गुजरते नेशनल हाइवे पर दूर-दूर तक पेड़ नजर नहीं आते टेंपों के इंतजार में खड़े लोगों को पहले पेड़ तलाशना पड़ता है। पेड़ मिल जाए तो पर्याप्त छांव नहीं मिलती क्योंकि पेड़ की उस छांव में समाजवाद पसरा होता है-स्ट्रीट डाग, बकरियां, अधलेटे भिखारी के बीच कोई वृद्ध टेंपों के इंतजार में पसीना पोंछता नजर आता है।ऐसा शहर बिरला ही होगा जहां पानी तो भरपूर है लेकिन उतनी हरियाली नहीं। आयोजन तो यहां खूब होते हैं पौधे लगाए ाी जाते हैं लेकिन वह पौधारोपण होता है भरपेट खाए व्यक्ति को भोजन पर आमंत्रित करने जैसा यानी बगीचों या जहां पहले से पौधे लगे हैं वही कुछ पौधे और लगा दिए जाते हैं। इसीलिए पूरा शहर तो हरा-भरा नजर नहीं आता, हरियाली के धब्बे जरूर दिखाई देते हैं।भीषण गर्मी के इन दिनों में पौधारोपण तो हो नहीं सकता लेकिन भ् जून को विश्व पर्यावरण दिवस से अभियान की प्लानिंग तो की ही जा सकती है। वन विभाग पर्याप्त पौधे जुटा ले, सामाजिक-व्यापारिक संगठन पौधारोपण करना भी चाहते हैं लेकिन बात आकर रुक जाती है महंगे ट्री गार्ड कैसे जुटाएं। वन विभाग, नगर परिषद, यूआईटी आदि को सक्रिय कर जिला प्रशासन सस्ते और बेहतर ट्री गार्ड बनवाने की पहल करे तो लागत मूल्य पर ट्री गार्ड दानदाताओं के माध्यम से प्रकृति प्रेमियों को उपलब्ध कराए जा सकते हैं। स्कूल-कॉलेजों को जोड़कर पूरे शहर और नेशनल हाइवे के दोनों तरफ पौधे लगाए जा सकते हैं। लोगों को अपने प्रियजनों की स्मृति में, शादी की सालगिरह, जन्मदिन आदि प्रसंगों पर भी पौधारोपण के लिए प्रेरित किया जा सकता है। हनुमानगढ़ में यदि नशे के खिलाफ अभियान चल सकता है तो यहां ग्रीन गंगानगर का अभियान क्यों नहीं चल सकता। ट्री गार्ड से भी ज्यादा जरूरी है इच्छाशक्ति की। जनभागीदारी के कायाZे को प्रेरित करने के लिए पहल तो जिला प्रशासन को ही करनी होगी।
संत सीचेवाला आए राह दिखाने
अज्ञान और असमंजस के अंधेरे को दूर करने के लिए ही संत पुरुषों का आगमन होता रहा है। पंजाब से आ रहे दूषित पानी से और किसी को इतनी चिंता नहीं हुई जितनी एक औंकार ट्रस्ट के संत बलवीरसिंह सीचेवाला को हुई। संतजी का यह कहना भी सही है कि पंजाब वाले क्यों चिंता करेंगे बीकानेर संभाग के इन जिलों की। बात भी सही है जिसका पेट दुख रहा है दवाई उसे ही मांगनी चाहिए। ऐसा हुआ नहीं इसलिए संत जी को आना पड़ा। जागना तो चुनाव लड़ रहे भावी सांसद को भी था, बाकी नेताओं को ाी जागना था, पानी की लड़ाई का झंडा थामने वाले माकपा विधायक बीकानेर में चुनावी संघर्ष में व्यस्त हैं। इतिहास ने फिर अपने को दोहराया ही है कि जब राजनीति और राजनेता को कुछ नहीं सूझता तब संत ही रास्ता दिखाते हैैं संत सीचेवाला ने यही तो किया है।
दुआ तो मिलेगी ही
अब तक पुलिस को बद्दुआ देने वाले सैकड़ों परिवारों की हनुमानगढ़ कलेक्टर को तो दुआ ही मिल रही होगी। वैसे तो दोनों जिलों में नशे का कारोबार धड़ल्ले से हो रहा है। पुलिस विभाग खानापूर्ति के लिए कार्रवाई भी करता रहता है लेकिन जिस तरह संगरिया में नशीली गोलियों के कारोबार का जिला प्रशासन ने पदाüफाश किया है इससे पुलिस एवं औषधि प्रशासन विभाग की çढलाई से भी पदाü उठा है। इस नशीले कारोबार में अब तक जिन लोगों के नाम सामने आए हैं वो कोई सामान्य परिवार से नहीं है और यही कारण इन दोनों विभागों की उदासीनता को भी मजबूत करने वाला हो सकता है। अच्छा तो यही होगा कि नशे की लत में फंसे जिले के युवाओं के परिवारों को राहत देने के लिए कलेक्टर नशा मुक्ति शिविरों की अध्यक्षता की अपेक्षा यह अभियान सतत चलाते रहे।
दमकलों का इंतजाम तो हो
गर्मी वाले इन महीनों में दोनों जिलों में अçग्नकांड की घटनाएं भी बढ़ जाती हैं। जिला प्रशासन को चाक-चौबंद होना ही चाहिए। इसके साथ ही उपखंड मुयालय वाले टिब्बी, रावतसर जैसे कस्बों के बारे में भी सोचना चाहिए जहां अनाज मंडियां भी हैं। यहां से अच्छा राजस्व भी प्राप्त होता है लेकिन फायर ब्रिगेड दस्ता नहीं हैं। होना तो यह चाहिए कि लोग घेराव आगजनी पर उतरे उससे पहले ही दमकलों की व्यवस्था हो जाए।
बात समझ आई या नहीं
दोनों जिलों में बारदाना जिला प्रशासन के लिए करंट इशु बना हुआ है। अनाज मंडी, गेहूं खरीदी जैसे मसलों से जिला प्रशासन का सीधा ताल्लुक तो नहीं है लेकिन गेहूं खरीदी में अग्रणी एफसीआई की उदासीनता का ही नतीजा है कि किसानों-व्यापारियों के असंतोष का सामना प्रशासन को करना पड़ रहा है। गेहूं खरीदी प्रारंभ होगी तो बारदाना भी थोक में लगेगा। इस बात में न समझने जैसी तो कोई बात है नहीं, फिर क्या एफसीआई में नासमझ स्टाफ की अधिकता हो गई हैै।
अगले हपते फैरूं, खमा घणी-सा...
ब्लॉग में दिन दिन निखार आ रहा है. सामाजिक सरोकारों के प्रति आप पाठकों को निरंतर जागरूक कर रहे हैं. अभिव्यक्ति कौशल भी लाजवाब है. बेहद भावपूरण सृजन है आपका. साधुवाद. एक निवेदन भी है... ब्लॉग पब्लिश करते वक्त प्रूफ़ का भी ख्याल रखें. कई शब्द तब्दील हो जाते हैं जिन्हें एक खास तकनीक से ठीक किया जा सकता है. इस मामले में हम सहयोग कर सकते हैं. -सत्यनारायण सोनी, व्याख्याता (हिंदी), राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, परलीका(हनुमानगढ़)phone-9602412124
ReplyDeleteniece bloging sirji. samajik sarokaron ke liye likhte rahen
ReplyDeleteregard
pradeep