बचपन में प्रारंभिक पढ़ाई के दौरान मुंशी प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर (दो मुय पात्र अलगू चौधरी और जुमन शेख) अब तक याद है। जिला सत्र न्यायालय ने वर्क सस्पेंड के मामले में मीडिया तक अपनी बात पहुंचाकर एक बार फिर इस कहानी की याद दिला दी। जब कहानी का नायक पंच की कुर्सी पर बैठता है तो फैसला अपने अतिप्रिय दोस्त के खिलाफ सुनाने में भी नहीं हिचकता। अब तक की मेरी पत्रकारिता में यह यादगार अनुभव ही है कि अपनी बात कहने के लिए जिला सेशन न्यायालय मीडिया तक जाए। अमूमन प्रेस और न्याय जगत के बीच एक अघोषित लक्ष्मण रेखा है। बार संघ आदि तो फिर भी मीडिया तक अपनी बात पहुंचाते हैं लेकिन न्यायिक सेवा के छोटे से लेकर बड़े पदों का दायित्व संभालने वाले अधिकारी प्रेस से, सार्वजनिक समारोह से दूरी ही बनाकर रखते हैं। जाहिर है इसका भी एक मात्र उद्देश्य होता है न्याय जगत की गरिमा और पवित्रता बनाए रखना। राजस्थान में संभवतज् यह पहली ऐसी मिसाल है जो न्याय जगत में बेमिसाल ही कही जाएगी कि जिला एवं सेशन न्यायालय ने बार एसोसिएशन के वर्क सस्पेंड से चार दिनी गतिरोध और कथित सुलह को लेकर उपजे भ्रम को दूर करने के लिए खुद ही पहल की और मीडिया के माध्यम से आम जन एवं पक्षकारों को वस्तुस्थिति भी बताई। ऐसा नहीं कि वर्क सस्पेंड को लेकर गतिरोध प्रारंभ होने पर `भास्करं ने जिला-सत्र न्यायाधीश उमेशदत शर्मा से उनके विचार जानने के प्रयास नहीं किए। न्याय जगत की तरह दैनिक भास्कर की भी यह पॉलिसी है कि प्राकृतिक न्याय के तहत सभी पक्षों को अपनी बात कहने का अवसर मिलना ही चाहिए । चूंकि न्यायिक सेवा से जुड़ा वर्ग मीडिया में नहीं जा सकता इसलिए खुद `ाास्करं गया था जिला सत्र न्यायाधीश से उनके विचार जानने। मर्यादाओं का पालन करते हुए उन्होंने नो कमेंट्स कह कर चुप्पी साध ली थी। नतीजा यह कि वर्क सस्पेंड और सुलह का जैसा मजमून बार संघ ने बताया वैसा ही छपा भी। मीडिया को यह भी जानकारी थी कि वकीलों और न्यायालय के बीच वैचारिक भ्रम की स्थिति बन भी जाए तो प्रशासनिक अधिकारी न तो मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं और न ही ऐसे कोई अधिकार उन्हें प्राप्त हैं। न्यायालय ठान ले तो यह बहुत आसान है कि वह अवमानना के मामले में तो मीडिया को कटघरे में खड़ा कर ही सकता है लेकिन वह न्याय मंदिर ही क्या जो मुंशी प्रेमचंद के पंच परमेश्वर का प्रतिनिधित्व न करें। जिला सत्र न्यायालय ने मीडिया के जरिए अपनी बात कह कर आमजन तक सही तथ्यों की जानकारी पहुंचाई। यह अलग मुद्दा है कि जिला सत्र न्यायालय के इस कदम को बाकी मीडिया ने कितना समझा, कैसा सराहा। न्यायालय में सामान्य कामकाज शुरू जरूर हो गया है लेकिन भविष्य में वर्क सस्पेंड की स्थिति नहीं बनेगी यह दावा तो बार एसोसिएशन के पदाधिकारी भी नहीं कर सकते। संघ के वर्तमान-पूर्व सदस्यों के प्रति अपनी भावना का इजहार करने, किसी ज्वलंत मुद्दे पर अपनी जागरूकता दिखाने के लिए संघ का यह अचूक हथियार भी है जाहिर है इसका उपयोग इस तरह से हो कि अन्य किसी को परेशानी भी न हो। संघ के लिए तो वर्क सस्पेंड लक्ष्यभेदी मिसाइल के समान है। मध्यमार्ग यही हो सकता है कि दोपहर तक पक्षकारों के काम निपटाए जाएं और वर्क सस्पेंड उसके बाद किया जाए। जब मंजिल तक पहुंचने का रास्ता न सूझे या दिशा भ्रम की स्थिति बन जाए तो समय बचाने के लिए किसी से रास्ता पूछ लेने में ही समझदारी होती है। अच्छा हो कि सदस्यों की नाराजगी से बचने के लिए संघ के पदाधिकारी गुप्त मतदान या बहस करा लें और जो आम राय बने वह फैसला मान्य कर लें। क्योंकि बार संघ भी नहीं चाहेगा कि जिला सत्र न्यायालय को फिर मीडिया के बीच जाना पड़े।
उन सब पर भी कार्रवाई हो
पीलीबंगा में चले अतिक्रमण विरोधी अभियान से भी कोई सबक न लेना चाहे तो इसमें अदालत का क्या दोष। हनुमानगढ़ में अब जो सड़क चौड़ा कराने का अभियान चलने वाला है वह भी अदालत के आदेशों की अनदेखी का ही नतीजा है। सड़कों को म्-म् फुट घेर कर पत निर्माण करने वालों के हौंसले यदि इतने बढ़ गए तो जाहिर है कि जिला प्रशासन, नगर परिषद ने भी आंखें मंूद रखी थी। जितने दोष्ाी अतिक्रमणकर्ता हैं उससे प्रशासनिक अधिकारी कहीं अधिक दोषी हैं जिन्होंने राजनीतिक दबाव-प्रभाव और अपने स्वार्थ के कारण लगातार कोर्ट की अवमानना होने दी। अभियान चले, सड़कें चौड़ी हों लेकिन उन लोगों को भी नहीं बशा जाए जो इन इलाकों में पदस्थ थे और लगातार पक्के अवैध निर्माणों की अनदेखी करते रहे।
बहाव में हो जाती मरमत
गलती पंजाब की हो या लापरवाही सिंचाई विभाग की बात निकली है तो दूर तलक जाएगी ही! फरमान जारी हो गया कि क्त्त् अप्रैल तक नहरबंदी कर दी है, इस दौरान नहरों की साफ सफाई, मरमत के लिए हमेशा की तरह पर्याप्त बजट भी जारी हो गया। नहरों की सफाई, मरमत कैसे होती क्योंकि क्क् अप्रैल तक तो पंजाब से नहरों में पानी आता रहा। असलियत ऊपर तक पहुंची तो अब लीपापोती चल रही है वरना तो नहरों में बहाव जारी रहता और मरमत का बजट भी काम में आ जाता। अब आइजीएनपी कार्यालय में रिपोर्ट तैयार की जा रही है कि बहाव के चलते भी किस कौशल से कहां-कहां मरमत कार्य करा लिया!
गçर्दश में हों तारे...
भादरा इलाके में तो पुलिस के सितारे गçर्दश में ही चल रहे हैं। भिरानी थाना के लॉकअप में आत्महत्या कर भानगढ़ निवासी पवन कुलरिया ने पूरे थाने को परेशानी में डाल रखा है। दूसरी तरफ एड़ी चोटी का जोर लगाने के बाद भी भादरा थाना क्षेत्र में हुई छात्रा कृष्णा जोगी की हत्या के आरोपियों को पुलिस आज तक नहीं खोज पाई है। थाना स्टाफ फिर भी चिंतामुक्त है तो इसलिए कि अब इस कांड की जांच बड़े-बड़े अधिकारी कर रहे हैं, उनका ही जब कुछ नहीं हुआ तो इनका बाल बांका कौन कर सकता है।
अगले हपते फैरूं, खमा घणी-सा...
क्या बात है, अच्छा लगा अपने इलाके के बारे में एक नए मंच पर नए ढंग से जानकारी पाकर, बने रहें ...
ReplyDeleteपृथ्वी, नई दिल्ली
Ranaji,
ReplyDeleteNamskar.!
kya bat hai,aapki lekhni ki tarif
jitni ki jaye utani kam hai.
ese hi likhte rahe.!!
-Rajuram Bijarnia
Loonkaransar
9414449936
सर, ये बहुत ही शानदार है, पूरे जिले की खबरों का इससे रोचक राउंडअप, अपने शहर और जिले की खबरें पढ़ना वाकई सुखद अनुभव है
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