अचानक एक रात मेरी मां की मृत्यु के बाद स्थिति ऐसी बनी कि हमें कष्टप्रद यात्रा के साथ मां की पार्थिव देह इंदौर ले जाना पड़ी। जितने भी दिन इंदौर में रहे इंदौर सहित पूरे मध्यप्रदेश में पेयजल को लेकर हर दिन खूनी संघर्ष की खबरें पढ़ने और सुनने को मिलीं। हालांकि हमारा दुःख कम नहीं था किंतु पेयजल संकट की इस स्थिति ने हमें कुछ अच्छा करने की राह भी सुझाई। हम चाहते थे कि मृत्युभोज और पगड़ी के नाम पर किए जाने वाले फिजूल खर्च को किसी अच्छे काम में लगाना चाहिए। मेरा विश्वास फिर मजबूत हुआ है कि यदि आप कुछ अच्छा करने की सोचें तो राह खुद बखुद बनती जाती है।
पेयजल संकट के मुख्य कारणों में एक कारण घटती हरियाली और बिगड़ता पर्यावरण भी है ही। हमारे परिजनों ने मृत्युभोज का आयोजन नहीं करने और इस निमित्त होने वाले खर्च को किसी अच्छे कार्य में लगाने का संकल्प भी लिया। आपसी सहमति ने राह दिखाई और मृत्युभोज के बदले पौध वितरण करना तय किया। अब संकट यह था कि मृत्युभोज तो कर नहीं रहे फिर लोग जुटेंगे कैसे? कैसे हो पाएगा पौध वितरण। सुख-दुःख के साथियों ने भजन संध्या के आयोजन की सलाह दी। मुझे लगता है जब आपके विचार अच्छे हों तो बदले में भी अच्छे विचार ही मिलते हैं। वातावरण की शुद्धि-अशुद्धि का सीधा ताल्लुक इस पर भी निर्भर करता है कि आप खुद कैसा सोचते हैं। क्योंकि हम मृत्यु को महोत्सव का रूप देना चाहते थे लिहाजा साथियों ने भजन संध्या का सुझाव इसलिए भी सही ठहराया कि इस बहाने सारे आत्मीयजन एक जाजम पर एकत्र हो जाएंगे। फिर इन्हें आसानी से पौधें भेंट किए जा सकते हैं। इंदौर सहित पूरे मध्यप्रदेश में चार-सात दिन में एक बार पेयजल वितरण के हालात ने लोगों को वैसे भी हरियाली, पर्यावरण की बेहतरी का मतलब बता ही दिया है। भजन संध्या में जो पौधें वितरित किए जाएंगे तो भी प्रतिशत लोगों ने भी पौधें सहेज लिए तो यह हरियाली के लिए संबल का काम करेगा। भजन संध्या में आए आत्मीयजनों के बीच 1000 पौधों का वितरण करके हमारे परिजनों को तो लगा ही है कि वर्तमान सन्दर्भों में मृत्युभोज से कहीं जरूरी पौध वितरण, पौधरोपण या कुछ ऐसा करना है कि जिससे बाकी लोगों को भी सकारात्मक सोच की राह दिखे।इस अच्छी सोच की ओर बढ़ते वक्त लेकिन, अगर-मगर, किंतु-परंतु जैसे स्पीड ब्रेकर भी खूब आए कि मृत्युभोज से अधिक खर्च तो भजन संध्या, पौधवितरण आदि कार्य पर हो रहा है। बात सही भी थी किंतु हमारा यह विचार अधिक प्रभावी साबित हुआ कि यदि व्यक्त दो-चार महीने अस्पताल में दाखिल रहे, महीनों घर के बेड पर पड़ा रहे, हार्ट के आपरेशन पर भारी-भरकम खर्च हो तो उसके बाद भी मौत हो जाए तो ऐसी सारी स्थिति में भी प्रियजन को बचाने के लिए तो खर्च करना ही पड़ता है। हम जब समाज से अपेक्षा रखते हैं कि कुछ आदर्श कार्य किए जाएं तो बाकी समाज आपसे भी पूछ सकता है कि आपने अपने घर पर कुछ अच्छी शुरुआत की है क्या? अच्छे विचार बाकी लोगों को भी आ सकते हैं, लेकिन वो इतना खर्च नहीं कर पाएं तो- ऐसे सवाल तब भी खड़े हुए जब भजन संध्या, पौध वितरण आदि का खर्च जोड़ा जा रहा था। मेरा मानना है कि जितनी बड़ी चादर है उस हिसाब से तो आप पैर फैला ही सकते हैं। आप भव्य पैमाने पर पौधें नहीं बांट सकते तो प्रियजन की स्मृति में पांच पौधें तो लगवा ही सकते हैं। गायत्री परिवार, आर्ट ऑफ लिविंग, रोटरी-लायंस क्लब, महावीर इंटरनेशनल, भारत विकास परिषद, शिव लंगर समिति जैसी सद्कार्यों में लगी संस्थाओं के सदस्यों के भजन तो करा ही सकते हैं। अच्छे सोचने और अच्छा करने के लिए कोई प्रतिबंध नहीं है। आप कुछ अच्छा करेंगे तो अगरबत्ती की सुगंध की तरह वातावरण में आपकी अच्छी सोच भी फैलेगी ही। बात वहीं आकर खत्म होती है कि पहले हम कुछ करें बाद में दूसरों को प्रोत्साहित करें। ठीक है कि कुछ लोग आपके विचारों से असहमत भी हो सकते हैं, लेकिन उनके मुकाबले सहमति व्यक्त करने और बढ़-चढ़कर सहयोग करने वालों की संख्या ज्यादा ही होगी।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...
कीर्ति राणा जी
ReplyDeleteबहुत ही नेक विचार हैं। मृत्यु भोज क्या सारे ही भोज पर आज सवाल उठाना चाहिए। आपकी माताजी को हमारी हार्दिक श्रद्धांजलि।