मेरी कोशिश तो यही थी कि चेंज हुए मोबाइल नंबर की जानकारी एसएमएस के जरिए सभी मित्रों, परिचितों-रिश्तेदारों को तत्काल दे दूं। एसएमएस कर भी दिए लेकिन कुछ लोगों के फोन और उनकी नाराजगी ने मुझे विचलित कर दिया। ऐसा मेरे ही साथ नहीं कार्यालय के अन्य साथियों के साथ भी हुआ, जो नंबर हमारी फोन बुक में सेव थे, उन्हीं पर हमने नंबर चेंज होने की सूचना भेज दी।हमें यह पता ही नहीं था कि जिन्हें सूचना भेजी है, उनमें से कई लोगों के नंबर पहले ही चेंज हो गए हैं। अभी जब एसएमएस किए तो वह नंबर जिस अपरिचित को मोबाइल कंपनी ने अलॉट कर दिया था, उन्होंने बिन बुलाए मेहमान की तर्ज वाले एसएमएस को लेकर नाराजी जाहिर की।आप गलती में हों तो सामने वाले को नाराजगी के नाम पर चाहे जिस तरह की भाषा में बात करने का अधिकार स्वत: ही मिल जाता है। हमारा शब्दकोश असीमित शब्दों से भरा पड़ा है, गुस्सा व्यक्त करने के भी कई पर्यायवाची शब्द हैं पर क्या किया जाए उन लोगों का जो गुस्सा जाहिर करने का मतलब गालियों जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना ही मानते हैं। हम लोगों के लिए खेद व्यक्त करने के अलावा अन्य कोई रास्ता भी तो नहीं था।मोबाइल ने सारी दुनिया हमारी मुट्ठी में जरूर कर दी है लेकिन सब कुछ 'टेक एंड गिव' वाला भी कर दिया है। फोन बुक में यूं तो सैंकड़ों नंबर दर्ज रहते हैं, लेकिन हम उन गिने-चुने लोगों से ही बात करते हैं जिनसे हमें मतलब है। जमाना जब चिट्ठी का था तब झूठे ही सही इतना तो लिख ही देते थे, 'आपके आशीर्वाद से हम यहां राजी-खुशी हैं। ईश्वर की कृपा से आप भी प्रसन्न होंगे।' ढाई रुपए वाले अंतरदेशीय पत्र से तो मोबाइल कॉल दर सस्ती है, लेकिन फिर भी हम अपनों के हाल-चाल पूछने में कंजूस हैं। फोन बुक ने बचे-खुचे रिश्तों की गरमाहट भी खत्म कर दी है। पहले रिश्तेदारों के नाम के साथ घर के पते भी रटे होते थे, लेकिन अब नाम भी अंग्रेजी के पहले अक्षर से या सरनेम से तलाशने पड़ते हैं और जब दो रिश्तेदारों के नाम मिलते-जुलते हों तो खुद की अकल पर ही तरसआने लगता है।हम सब की फोन बुक में सैंकड़ों नाम-नंबर दर्ज हैं। कंपनियों में कॉल दर कम करने की होड़ सी मची रहती है। मोबाइल रखना हमारी अनिवार्यता में शामिल हो गया है, लेकिन स्वार्थी इतने हो गए हैं कि हमें अपने फोन पर घंटी सुनना ही ज्यादा अच्छा लगता है। कॉल करना भी पड़े तो पहले चिंतन करते हैं- बात करने में अपना क्या फायदा है, एक मिनट से पहले ही बात निपटा लेंगे। यह ठीक है कि फोन-मोबाइल पर देर तक बात करना भी नहीं चाहिए, लेकिन यह ठीक नहीं कि हम जिन सैंकड़ों लोगों को सुबह से रात तक सीने से लगाए घूमते हैं, उनसे भी मतलब पड़ने पर ही बात करें, जब हम ऐसा ही करेंगे तो हमें कैसे पता चलेगा कि कब, किसने नंबर चेंज कर लिया।मेरा भी दोष यही था कि मैने नंबर चेंज होने की सूचना भेजने में तो तत्परता दिखाई लेकिन यह सोचा ही नहीं कि क्या उन सारे अपनों में से कुछ पराए हो चुके हैं। सबक यह भी है कि जिन लोगों को आपने नंबर चेंज होने की सूचना भेजी, उन्होंने आपको तो इस लायक भी नहीं समझा कि अपने बदले नंबर की जानकारी दें।
कुछ अच्छा, कुछ बुरा
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय में राजीवसिंह ठाकुर की योग्यता का श्रीगंगानगर जिले को कुछ अतिरिक्त लाभ मिल सकता है, यह दिलासा तो मन को दिया ही जा सकता है। प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली जा रहे राजीवसिंह कम समय में जिले को समझ तो गए थे, लेकिन विधानसभा-लोकसभा चुनाव के चलते ज्यादा कुछ नहीं कर पाए थे और अब जब कुछ कर दिखाने का समय शुरू हुआ तो हुनर दिखाने के लिए सीपी जोशी ने बुला लिया। अब कौन यहां कब तक पदस्थ होगा, नए कलेक्टर को जिला व फाइलें समझने में टीम तैयार करने में भी कुछ वक्त लगेगा। जाहिर है इतने वक्त जिले के विकास की गति धीमी ही रहेगी।
शहादत एक गिलहरी की
पानी की टंकी साफ की जा रही थी, वाटर कूलर मशीन की भी साफ-सफाई की जा रही थी, कार्यरत कर्मचारी में से कुछ जी घबराने की शिकायत भी कर रहे थे और बाकी आपस में तय कर रहे थे कि अब तो परिंदों के लिए परिंडे रख ही देने चाहिए। यह सारे दृश्य हमारे परिचित मित्र के कार्यालय में नजर आए। उनके इस कार्यालय में छत पर बनी पानी की जिस टंकी से वाटर कूलर तक पानी सप्लाई होता था, उस टंकी में दो-तीन दिन पहले गिलहरी मर गई थी। जाहिर है वह भी प्यास बुझाने के लिए ही टंकी के अधखुले होल से अंदर गई थी। खैर टंकी की सफाई हो गई, फिर से वाटर कूलर भी शुरू हो गया। हमारे लिए सुकून की बात इतनी ही थी कि एक गिलहरी की शहादत के बाद बाकी परिंदों की प्यास बुझाने का इंतजाम वहां भी हो गया।
आलोचना हो गई, आदर्श दिखाएं
अरोड़वंशीय समाज के चुनाव का सिलसिला शुरू हो गया है। अभी लोकसभा चुनाव में पूरे देश में विभिन्न दलों ने एक-दूसरे के खिलाफ जो जहर उगला, उससे कहीं अधिक तो समाज के चुनाव से पहले उगला जा चुका है। अच्छा तो यह होगा कि अब एक-दूसरे की टोपी उछालने की अपेक्षा चुनाव इतनी शालीनता से लड़ा जाए कि समाज के बुजुर्गों को लगे कि बच्चे समझदार हो गए हैं। वैसे भी समझदारी इसी में है कि दूसरे के कार्यों की आलोचना का जवाब अच्छे कार्यों से अपनी लाइन लंबी खींचकर दिया जाए। आलोचना करना जितना आसान है, उतना ही मुश्किल है इसे पचा पाना। समाजसेवा और सामाजिक राजनीति में सक्रिय रहने वालों को तो अपने विरोधियों तथा आलोचकों को ईश्वरप्रदत ऐसे उपहार की नजर से देखना चाहिए, जिनसे निरंतर अपने कार्य में सुधार की प्रेरणा मिलती रहती है।
आदेश बना अहं की दीवार
मामला तो एक महिला डाक्टर पर कार्रवाई का था लेकिन अब अहं पर बात अड़ गई है। समझदारी तो तब मानी जाए कि पहले लोगों की परेशानी देखी जाए वैसे दावा तो यही किया जा रहा है कि निलंबन लोगों की परेशानी देखते हुए ही किया है लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतर रही है। रावतसर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर पदस्थ महिला डाक्टर रेखा गुप्ता ने अवकाश तो लिया था यात्रा पर जाने के लिए लेकिन निलंबन का कारण बना अवकाश पर होते हुए घर पर मरीज देखना।चिकित्सा सेवा से जुड़ा स्टाफ जिला प्रशासन के इस आदेश को बचकाना बता रहा है तो इसलिए कि अवकाश पर रहते हुए क्या करें, क्या न करें यह भी अब क्या जिला प्रशासन तय करेगा। रही बात मरीजों को घर पर देखने की तो इस समस्या से राहत के लिए अभियान ही चलाना चाहिए। अभी हनुमानगढ़ में हो यह रहा है कि अभियान का फुग्गा फुलाया तो जाता है लेकिन उसकी हवा कब निकल जाती है पता ही नहीं चलता।
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...
मित्रों, माननीय राणा साहब ने अपना मोबाइल नम्बर बदलने का एसएम्एस बहुत ही खूबसूरती के साथ लिखकर भेजा था और उसे मै राणा जी की बिना अनुमति के सार्वजानिक कर रहा हूँ ताकि सामान्य बात को भी अच्छे से लिखने की सबको प्रेरणा मिले :-
ReplyDelete"प्रिय दोस्त,
आप मेरे प्रति अपना नज़रिया भले ही न बदलें लेकिन मेरा फोन न: ------------ हो गया है। अपनी फोनबुक मे पहले वाला नम्बर जरुर बदल लें। मेरी गलतियों पर अब उक्त नम्बर पर भी आगाह करते रहें।
कीर्ति राणा/दैनिक भास्कर/ श्री गंगानगर"
sir,
ReplyDeletethis is nice.
arvind sharma
apkikhabar.blogspot.com