फैसले चाहे पुरानी सरकार के हों या पुराने अधिकारी के नए सिरे से काम संभालने वालों के लिए शायद प्राथमिकता में होता है, उन फैसलों को पलटना। बात वहां तो समझ आती है जहां व्यापक हित का मामला है, लेकिन बात तब नहीं पचती जब व्यवस्था में सुधार वाले फैसलों को भी बदल दिया जाए।अब राजकीय अस्पताल में तत्कालीन कलेक्टर भवानीसिंह देथा के वक्त की गई छापामार कारüवाई का प्रकरण ही देख लीजिए। अनुपस्थित पाए गए स्टाफ को सुधारने की कवायद चल ही रही थी कि जिला प्रशासन ने आदेश जारी कर दिए हैं फाइल बंद कर दो। बिगड़ों को सुधारने की दृष्टि से यह पहल स्वागत योग्य हो सकती है, लेकिन राजकीय अस्पताल का स्टाफ इस एक पहल से सुधर गया होता तो इन्हें भी फिर पुराने कलेक्टर की तरह छापामार कारüवाई का सहारा नहीं लेना पड़ता। इन अस्पतालों की व्यवस्था में सुधार हो जाए तो निजी अस्पतालों की जरूरत ही नहीं पड़े। दुभाüग्य तो यह है कि इन्हीं अस्पतालों के चिकित्सक यहां तो मरीजों की देखभाल ठीक से करते नहीं और निजी अस्पतालों में सेवा देते वक्त मरीजों के लिए पलक पावड़े बिछा देते हैं। उस पर भी आलम यह कि जब निजी अस्पतालों में केस बिगड़ने लगते हैं तो तुरत-फुरत राजकीय अस्पताल में रैफर कर देते हैं। ऐसी नौबत आए ही क्यों कि कर्मचारियों को सुधारने के लिए छापामार कारüवाई, नोटिस आदि का रास्ता अपनाना पड़े। बात जब सेहत को लेकर चली है तो दोनों जिलों में परिवार कल्याण के लक्ष्य की हालत भी खराब चल रही है। लक्ष्यपूर्ति न हो पाने से विभागीय अमला भी थरथर कांप रहा है। ये ऐसा नाजुक मामला है, जहां टारगेट पूरा करने के चक्कर में जरा भी सख्ती दिखाई तो लोगों को आपातकाल के दिनों की याद ताजा हो सकती है। सख्ती से ज्यादा जरूरत समझाइश की है। समीक्षा यह भी होनी चाहिए कि समझाइश और जागरूकता की दिशा में भी लोगों के बीच काम हो रहा है कि नहीं। ऐसा तो नहीं कि श्रीगंगानगर के स्वास्थ्य प्रमुखों की तरह एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने में ही वक्त गुजर रहा है।
पहले मार अब पुचकार
मार के बाद पुचकारने की प्रक्रिया तो हनुमानगढ़ में भी शुरू हो गई है। कलेक्ट्रेट कर्मचारियों के स्वास्थ्य की चिंता दशाü कर यह मैसेज तो दे ही दिया है कि हम इतने भी बुरे नहीं। रियायती दर पर कर्मचारियों का स्वास्थ्य परीक्षण कराए जाने की पहल स्वागत योग्य है, लेकिन ऐसी पहल सिर्फ कलेक्ट्रेट स्टाफ के लिए ही क्यो? बाकी विभागों के प्रमुखों को भी अपने स्टाफ की चिंता पालनी चाहिए। विशेषकर सिंचित क्षेत्र विकास विभाग को तो अपने स्टाफ को आलस भगाने के लिए तगड़ा डोज देना ही चाहिए। खाला निर्माण से जुड़े कर्मचारी अब ऐसा काम करके दिखाएं कि विभाग पर लगे निकम्मेपन के दाग छूट जाएं।
आंख खुली भी तो एक दिन पहले
जेल महानिदेशक ने जेलों की दशा सुधारने के लिए दौरा किया और ठीक एक दिन पहले जेल में नशे की गोलियां सप्लाई करने वाले पूर्व सैन्यकर्मी को जेल प्रशासन ने पकड़ लिया। देखा जाए तो इस सजगता पर पीठ थपथपाई जानी चाहिए, लेकिन ऐसा करने से पहले यह भी तो पूछा जाए कि भई आंख खुली भी तो एक दिन पहले और पकड़ा भी तो ठेका कर्मी को। जेलों की दुर्दशा का जो आलम है उसे तो सुधारने में सदियां लग जाएंगी, लेकिन कैदियों के प्रति जेल प्रशासन का रवैया भी तो अच्छा नहीं रहता। हत्या-लूट की वारदात के आरोपी जेल में जाने के बाद तब ठगे से रह जाते हैं कि उन्हें लूटने वाले तो यहां हैं। मुलाकात हो, सुख-दु:ख की सूचना से लेकर विलासिता की सामग्री पहुंचाने तक के रेट तय हैं, ये बातें भी तब उजागर होती हैं, जब अति होने लगती है और कोई कैदी मिठाई के डिब्बे पर चिट्ठी लिखकर कलेक्टर तक पहुंचाता है। वैसे अंधेरगदीü तो डीजीपी जेल के सामने भी आई थी। कैदी ने दूध के नाम पर पानी दिए जाने की शिकायत भी की थी, लेकिन गाय पानी में बैठ गई होगी जैसे मजाक से उन्होंने गई भैंस पानी में कहावत की याद भी दिला दी। दूध में मिलावट पर चीन में मृत्युदंड जैसा प्रावधान है और हमारे यहां मजाक। मिलावट सिर्फ जेल में बांटे जाने वाले दूध में ही हो रही है। ऐसा नहीं है। दोनों जिलों में मिलावट खोरों ने मसाले से लेकर देशी घी तक को नहीं छोड़ा है। नोहर में घी के नकली कारोबार को उजागर तो किया गया, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई। यही हाल गंगानगर का है, घी में तो मिलावट है ही खान-पान की बाकी चीजों में भी शुद्धता का पैमाना घटता जा रहा है। बात फिर वहीं आकर रुक जाती है कि सरकारी अमला क्या कर रहा है, विभाग का तो हर वक्त यही रोना है, पर्याप्त स्टाफ ही नहीं है, शहर बहुत बड़ा है, क्या करें, कैसे करें? ऐसी सोच रखने वाले अधिकारी यह क्यों भूल जाते हैं कि उनकी पोçस्टंग ऐसे जिलों में है, जहां के बेटे सीमाओं पर दुश्मन के छक्के छुड़ाते वक्त यह नहीं कहते कि मैं अकेला कैसे मोर्चा संभालू?
अगले हपते फैरूं, खम्मा घणी-सा...
http://www.pachmel.blogspot.com/
sir,
ReplyDeletepechmel ke lia spandit dhadkano se badhai..!
-Rajuram Bijarnia 'Raj'
Loonkaransar
Aadarniye Sir, aapka lekhan sidha dil ko chhu gaya.
ReplyDeleteAnoj, Ajmer
Aadarniye Sir, aapka lekhan sidha dil ko chhu gaya.
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