कीर्ति राणा
महाभारत-रामायण के पात्र किसी न किसी रूप में हर कालखंड में किसी न किसी में जीवित रहते ही हैं। अब राजस्थान में वयोवृद्ध भाजपा नेता भैरोंसिंह शेखावत को ही देखिए, ऐसा लग रहा है कल तक उनमें हस्तिनापुर के लिए प्रतिबद्ध रहने वाले भीष्म की आत्मा थी और आज अचानक उनमें विभीषण जैसा सद्चरित्र पात्र प्रवेश कर गया। झाड़ू हाथ में लिए अब वे अपने ही घर में दुराचरण का कचरा बुहारने को तत्पर हैं। उपराष्ट्रपति रहने से लेकर इस पद से मुक्त होने के बाद आप अपने गृह रा’य राजस्थान आते-जाते रहे। तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधराराजे का आतिथ्य स्वीकारते रहे, राजपाट चलाने का आशीर्वाद देते रहे और अब जब लोकसभा चुनाव नजदीक आने लगे तो रा’य में हुए भ्रष्टाचार को देखने की दिव्य दृष्टि मिल गई और आत्मा ग्लानि से भर उठी।ठीक है उपराष्ट्रपति रहते मर्यादा से बंधे थे, लेकिन बाद में किसने रोक रखा था। विधानसभा चुनाव से पहले तक मौन रहकर ठीक भीष्म की तरह क्यों हस्तिनापुर के गलत फैसलों पर चुप्पी साध रहे। आपके गृह रा’य में पांच साल में `महारानी´ ने इतना कुछ गलत किया तब भी आप नहीं बोले। जिस पार्टी के अटल-आडवाणी की तरह आप भी नींव के पत्थर हैं उस दल की रीति-नीति के मार्गदर्शक पंडित दीनदयाल के नाम पर ट्रस्ट बना, घपले-घोटाले गूंजते रहे लेकिन आप जैसा नेता भी चुप रहे, जिन्हें श्रेय जाता है वसुंधरा को अंगुली पकड़कर राजनीति में लाने का। अब आपको उस वक्त के सही फैसले गलत नजर आ रहे हैं तो इसलिए कि अगले कुछ महीनों में लोकसभा चुनाव होने हैं। आपको ऐसी जमीन तैयार करनी है, जिस पर आप तन कर खडे़ हो सकें। रा’य में भ्रष्टाचार से आपकी आत्मा इतनी विचलित है कि बिना चुनाव लडे़ आप कुछ कर ही नहीं सकते। लोकसभा में जब नोट लहराए गए, भाजपा के पूर्व अध्यक्ष बंगारू से लेकर छत्तीसगढ़ के नेता जूदेव तक भ्रष्टाचार वाली सीडी में पार्टी को शर्मशार करते रहे तब भी आप विचलित नहीं हो पाए।गंगा में स्नान के बाद भी मन से लोभ, मोह का मैल न धुल पाए तो इसमें दोष गंगा का नहीं है, पानी चाहे कुएं का हो या गंगा का, नहाते वक्त ध्यान तो हमें ही रखना होगा कि हम मन को समझा रहे हैं या मांज-धोकर पवित्र कर रहे हैं। आखिर कब तक पदों को मोह रहेगा। बड़े नेताओं में? नए चेहरों को आशीर्वाद देने की भूमिका निभाने के लिए सिर्फ अटलजी ही बचे हैं।भ्रष्टाचार के खिलाफ खूब आवाज उठाइए, लेकिन चुनाव लड़ने का मोह जरूरी है क्या? जिन जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में इंदिरा गांधी की सरकार को आप सबने उखाड़ फेंका था। कम से कम उनसे प्रेरणा लीजिए। जेपी ने कभी नहीं चाहा कि देश को भ्रष्टाचार मुक्त करने के लिए सरकार में पद प्राप्त करें। आप गांधी जी से प्रेरणा लेंगे नहीं क्योंकि तब चाल, चेहरा और चरित्र सब पर नए सिरे से चिंतन करना होगा। जब लोकसभा चुनाव सिर पर हों तो दूसरे के भ्रष्टाचार पर अंगुली उठाकर अपने लिए रास्ता बनाना ’यादा आसान है। वीपीसिंह ने भी तो बोफोर्स का मुद्दा उछाला था और प्रधानमंत्री की शपथ लेने के बाद ओवरकोट की जेब से वह कागज ही नहीं निकाल पाए जिसे आम सभाओं में लहराते हुए कहते थे कि इसमें हैं बोफोर्स में दलाली खाने वालों के नाम।भैरोंसिंह जी ने भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया, जसवंतसिंह जी ने उन्हें घर खाने पर बुलाया, राजनाथसिंह सफाई देने पहुंच गए यानि भ्रष्टाचार भी अब समाज आधार पर मुखर होने लगा है। राजनाथसिंह उन्हें मनाते वक्त यह भी तो पूछ लेते बाबा यह तो बताओ ये सब अभी ही बोलने की क्या जरूरत थी, अच्छा होता आत्मकथा में लिखते।
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