साल की शुरुआत कैसी हो, जब यह हमे ही तय करना है तो क्याें ना कुछ अच्छे से ही आरंभ करें. रोज ना सही महीने या साल मे तो कुछ अच्छा कर ही सकते हैं। इस अच्छा करने की सीधी सी परिभाषा है जिस काम को करके आप के मन के अंदर खुशी का झरना फूट पड़े। इसके लिये हजारों-लाखाें भी खर्च नहीं करने पड़ते, कई बार तो तन और मन को भी अच्छे काम में लगाया जा सकता है। इस नए साल मे किसी एक उदास चेहरे पर मुस्कान लाने का ही संकल्प लिया जा सकता है, यह भी खर्चीला लगता हो तो घर में पानी, बिजली, टेलीफोन, पेट्रोल की फिजूलखर्ची रोकने का संकल्प तो इस बढती महंगाई मे हमें ही राहत देने वाला साबित हो सकता है।
कपड़े तैयार कर लिए क्या? मेरे इस प्रश्न के जवाब में दूसरी तरफ से फोन पर दोस्त ने कहा इस बार कपड़ों के साथ कुछ दोस्तों से भी मदद ली है, ठंड इस बार कुछ ज्यादा है ना. इन दोस्तों ने गर्म कपडे ज़ुटाए हैं, अब तक तीन-चार बडे पैकेट तैयार हो गए हैं. हम लोग अगले सप्ताह निकलेंगे।
नए साल को सब अपने-अपने अंदाज में मनाते हैं उद्देश्य यही रहता है कि साल की शुरुआत यादगार बन जाए, अन्य शहर में रहने वाले मेरे एक दोस्त साल के अंतिम सप्ताह से ही नए साल के स्वागत की तैयारी में जुट जाते हैं। परिवार के बडे-छोटे सदस्यों के साफ-सुथरे कपडे प्रेस करा लेते हैं, बच्चाें के लिए चाकलेट-खिलौने जुटाते हैं, इस सब के लिये जो खर्च होता है उसका इंतजाम भी इस तरह करते हैं कि एकदम आर्थिक बोझ ना पड़े परिवार के सभी बडे सदस्य प्रति सप्ताह पांच रु. जमा करते हैं. बच्चों को भी कुछ राशि हर माह बचाने के लिये प्रेरित किया जाता है, साल के अंत मे इस सारी जमा राशि से सामान खरीद लेते हैं।
क्या हम भी इस तरह से नये साल की शुरुआत नहीं कर सकते? हम भी हर माह कुछ ना कुछ फिजूलखर्ची तो करते ही हैं, उसमें कटौती करके पैसा बचा सकते हैं, हम नए कपडे, ग़र्म कपड़े लगभग हर साल खरीदते तो रहते हैं लेकिन छोटे और पुराने होते कपड़ाें के ढेर का क्या करें तय नहीं कर पाते, जबकि हमारे आसपास ऐसे लोगों की कमी नहीं जिनके लिये ये कपड़े नए के समान होते हैं। हमारी ठंड दो-तीन गर्म कपड़ों के बाद भी कम नहीं हो पाती लेकिन कोई है कि जगह-जगह छेद वाले स्वेटर मे ही तीखी हवाओं का सामना करने को मजबूर हैं, हमारे पास धन की कमी हो सकती है लेकिन मन मे दया भाव किसी कोठी वाले से कम नही. हम सारे समाज के पीडिताें के चेहरे पर मुस्कान नही ला सकते लेकिन किसी एक के चेहरे पर तो चमक ला ही सकते हैं।
समीप के सरकारी अस्पताल मे दाखिल ऐसे मरीज भी मिल जाएंगे जिनके परिजनो के पास महंगी दवाई, ऑपरेशन का सामान खरीदने के लिये पर्याप्त पैसा नही होता. एक बोतल खून जुटाना भी इनके लिये सबसे चुनौतीपूर्ण रहता है। किसी एक मरीज के मन मे हमारी भगवान जैसी छवि तो बनाने का प्रयास करके तो देखें पर हमारी मानसिकता तो ऐसी हो गई है कि हम अस्पताल से स्वस्थ होकर घर लौटते वक्त प्रार्थना तो यह करते हैं कि फिर कभी अस्पताल का मुंह ना देखना पड़े लेकिन बची हुई दवाइया खजाने की तरह अपने साथ घर लेकर आ जाते हैं और कुछ दिनो बाद खुद ही इसे कचरे के ढेर पर फेक भी देते हैं, हम यह याद रखना ही नहीं चाहते कि जिन दवाइयों ने हमें जीवनदान दिया वही बची दवाइया किसी गरीब मरीज के भी काम आ सकती हैं। हम सोचते ही नहीं कि अस्पताल मे एक काउंटर ऐसा भी है जहा बची हुई दवाइया इसी उद्देश्य से एकत्र की जाती हैं कि असहाय मरीजों की मदद हो जाए जिस दवाई का हम पैसा दे चुके होते है, उन सारी दवाइयों को थोडे मोलभाव के बाद फिर से उसी दुकानदार को बेच देते हैं। पुराने कपड़ाें से हमें बर्तन खरीदना, इन कपड़ों को कार की सफाई के लिये उपयोग मे लाना ज्यादा आसान लगता है। आसपास के मित्रों को प्रेरित कर के हम पुराने कपड़ों को जरूरतमंदों तक पहुचाने के बारे में क्यों नहीं सोच सकते।
नए साल पर हम कोई ना कोई संकल्प लेते ही हैं, एक संकल्प किसी अच्छे काम को शुरू करने का भी तो ले सकते हैं और किसी के भले के लिये नही तो अपनी किसी बुरी आदत को छोड़ने की हिम्मत भी नहीं दिखा सकते? हमें याद ही नहीं रहता खुद अपने बच्चो, पत्नी से कई बार इस तरह पेश आते हैं कि अकेले में खुद हमें इस पर अफसोस होता है क्योंकि इस तरह का व्यवहार हम अपने लिये भी पसंद नहीं करते, इतना भी नहीं कर सकते तो पानी-बिजली, मोबाइल, पेट्रोल की फिजूलखर्ची ना करने का प्रण भी कर सकते हैं, ये सारी चीजे भी फिजूल लगती हो तो हम सोने से पहले आज का दिन बेहतर तरीके से गुजरने पर ईश्वर के प्रति धन्यवाद तो व्यक्त कर ही सकते हैं, इस काम मे ना तो एक धेला खर्च होना है और न ही इस दो-चार मिनट की मौन प्रार्थना का लाभ हमारे दुश्मन को मिलना है, हम जो भी करते हैं पहले उसमे अपना स्वार्थ देखते हैं कभी बिना स्वार्थ के कुछ कर के देखे तो सही, उस वक्त सुख की जो अनुभूति होगी वह यादगार तो होगी ही, तब ही पता चलेगा कि मन के अंदर खुशी का झरना किस तरह बहता है।
... sankalp ... nihaayat jaruree !!!
ReplyDeleteACHHA SANDESH
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