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Thursday, 2 December 2010

पंखे और दरवाजे भी कुछ कहते हैं सुनिए तो सही

यह जानते हुए भी हम कई चीजें कल पर छोड़ते जाते हैं जबकि रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी छोटी-छोटी बातें हमें जिंदगी के हर लम्हे के प्रति गंभीरता रखने का संदेश देती है। हम हैं कि बस ऐन वक्त पर जागते हैं और उस वक्त भी सात घोड़ों के रथ पर सवार होते हैं कि सबसे पहले मेरा ही काम होना चाहिए। खुद को वरियता और सम्मान न मिलने पर हम गुस्से में रेत की तरह बिखर जाते हैं। हम घर की जिन निर्जीव चीजों को रोज उपयोग में लाते हैं उनसे भी सीखना नहीं चाहते कि हमारी रूटीन लाइफ को कैसे बेहतर बना सकें।
रोजमर्रा की जिंदगी में हमारे आसपास अच्छा करने वालों की कमी नहीं है, लेकिन उनसे सीखने, उनके अच्छे काम की तारीफ करने में हमारा ही अहं आडे अा जाता है। घर में ऐसी कई निर्जीव चीजें भी हैं जो बिना तारीफ के भी अपने काम से हमें बहुत कुछ सिखाती हैं, हम इनसे ही कुछ समझ लें। इनके काम की तो हमें प्रशंसा भी नहीं करनी पडेग़ी और न ही इनसे यह उलाहना सुनने को मिलेगा कि हम कितने मतलबी हैं। काफी लंबी कतार लगी थी टेलीफोन बिल जमा कराने वालों की। काउंटर के उस तरफ बैठे कर्मचारी पर इधर वाले लोग झुंझला भी रहे हो कि तेजी से काम करो। जवाब में उस कर्मचारी का कथन सौ सुनार की एक लुहार की जैसा ही था। रौब गालिब करने वाले सान को उसने बडे ही प्यार से समझाया भाई साहब बिल में बिना जुर्माने की अंतिम तारीख भी लिखी रहती है। आप दंड सहित बिल राशि जमा कर रहे हैं तो इस पर एहसान नहीं कर रहे ये आपकी लापरवाही का नतीजा है और फिर बाकी लोग भी अपना नंबर आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। बात सौ प्रतिशत सही लगी मुझे। आप यदि लापरवाह हैं तो उसमें कैलेंडर की तारीखें महीने और तेजी से भागते वक्त का क्या दोष!
हम सब को पता है कल तो आएगा, लेकिन उस कल में आज वाला दिन नहीं होगा। यह जानते हुए भी हम कई चीजें कल पर छोड़ते जाते हैं, जबकि रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी छोटी-छोटी बातें हमें जिंदगी के हर लम्हे के प्रति गंभीरता रखने का संदेश देती हैं। हम हैं कि बस ऐन वक्त पर जागते हैं और उस वक्त भी सात घोड़ों के रथ पर सवार होते हैं कि बस सबसे पहले मेरा ही काम होना चाहिए। खुद को वरीयता और सम्मान न मिलने पर हम गुस्से में रेत की तरह बिखर जाते हैं। हम घर की जिन निर्जीव चीजों को रोज उपयोग में लाते हैं उनसे भी सीखना नहीं चाहते कि हमारी रूटीन लाइफ को कैसे बेहतर बना सकें।
कभी रोज पावर कट लग रहा है, जैसे ही अचानक लाइट गुल होती है तो सबसे पहले हम मोमबत्ती तलाशते हैं और लाइट आते ही सबसे पहले जलती मोमबत्ती पर फूंक मार कर बुझा देते हैं। अब कई लोगों की टीस होती है कि जब जरूरत पड़ती है तभी उनके रिश्तेदार याद करते हैं, ऐसे लोग मोमबत्ती से भी नहीं सीखते हैं कि वह कभी अपनी पीड़ा नहीं सुनाती। दूर क्यों जाएं गर्मी में ठंडक देने वाले और बाकी महीनों में छत पर लटकते धूल में सने रहने वाले पंखे को ही देख लें, वह सिखाता तो है अपने हों या पराए सबके साथ ठंडे-ठंडे कूल-कूल रहो। हम तो फिर भी नहीं सीख पाते, हमारे अहं को जरा सी चोट तो लगी, वालामुखी की तरह फट पड़ते हैं। फिर यह भी नहीं देखते कि किस पर नाराज हो रहे हैं उसने पहले कई बार हमारी मदद की है। सुबह पूजा के लिए अगरबत्ती जलाते हैं उसकी खुशबू सिर्फ पूजा घर को नहीं नहीं महकाती बाकी कमरों सहित आसपास के घरों तक भी खुशबू का झोंका बिना इजाजत के पहुंच जाता है। फिर भले ही हमारे पड़ोसी से हमारी अनबन ही क्यों न हो। पता नहीं हम बाकी लोगों के लिए खुशबू के एहसास जैसे क्यों नहीं बन पाते।
हमारे दिन की शुरुआत कैसे व्यवस्थित हो यह सूरज से लेकर चांद तक सभी सिखाते हैं इनके लिए न संडे का मतलब है न सेकेंड सटरडे का। बिना नागा उगते और अस्त होते हैं साथ ही अप टू डेट रहने का संदेश भी देते हैं। घर की खिड़कियां खोलते ही सामने नजर आने वाले मनोरम दृश्यों से हमारी तबियत प्रसन्न हो जाती है। हम इतनी आत्मीयता से मन की खिड़कियां तभी खोलते हैं अगले से हमारा कोई काम अटका हो। बाहर आते- जाते दरवाजा खोलना बंद करना तो हमें याद रहता है लेकिन किसी काम में असफलता मिलने पर हम हताश होकर ऐसे बैठ जाते हैं कि जैसे सफलता के सारे दरवाजे बंद हो गए। घर के ये दरवाजे हमे बिना बोले मैसेज देते हैं कि जब एक दरवाजा बंद होता है तो दूसरा खुलता है। हम हारे नहीं, हताश नहीं हों तो हमारी किस्मत के दरवाजे भी हम खोल सकते हैं।

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