हम में से ज्यादातर लोग अपनी सुविधा से फोन करना तो जानते हैं लेकिन जिसे फोन किया है उसकी परेशानी नहीं समझना चाहते। हम तो यही मानकर चलते हैं कि सारा जमाना हमारा नंबर जानता ही होगा, हम बात शुरू करने से पहले न तो अपना नाम बताने की जहमत उठाते हैं और न ही एसएमएस करते वक्त अपना नाम, पहचान आदि लिखना याद रखते हैं। जब कोई हमें भूल सुधार का सुझाव देता भी है तो इस तरह की गलतियों को स्वीकारना भी नहीं चाहते। आत्मीय संबंधों का पौधा एक तो पहले ही बोंसाई किस्म का होता है और हमारी छोटी छोटी भूल के कारण यह पौधा सूख कर कांटा हो जाता है। हम खुद ही कांटों वाली फसल तैयार करते हैँ और बाकी सारी जिंदगी इन कांटों की चुभन के साथ ही गुजारते रहते हैं।
फोन की घंटी बजी, मैंने फोन उठाया। दूसरी तरफ से हैलो की आवाज के साथ ही चुनौती भरे स्वर में पूछा गया बताइये कौन बोल रहे हैं। दिमाग पर काफी जोर डाला, लेकिन आवाज नहीं पहचान पाया। मैंने हथियार डालने के साथ ही बात संभालते हुए कहा दरअसल आप हैं तो मेरे बहुत नजदीकी लेकिन शायद मेरी याददाश्त कमजोर हो गई है इसीलिए आप का नाम याद नहीं आ रहा है, आवाज तो पहचानी सी ही है।मैंने सोचा अब तो उधर से नाम बता ही दिया जाएगा, पर ऐसा हुआ नहीं। अब दूसरा सवाल दागा गया, अभी आपको हैप्पी इंडिपेंडेंस-डे का मैसेज भी किया था। मैंने फिर बात संभालने की कोशिश की अरे हां, आपका मैसैज मिला तो था, मैं किसी को जवाब नहीं दे पाया इसलिए आप को भी जवाब देना रह गया।
अब उधर से उलाहने और नाराजी भरे स्वर में कहा गया हां, भई अब आप हमारे एसएमएस का जवाब क्यों देंगे। हम कोई वीआईपी तो हैं नहीं। मैंने कई तरह से उन्हें समझाने की कोशिश की, अंत में लगभग माफी मांगते हुए उनका नाम पूछ लिया। उन्होंने बड़े गुरूर के साथ अपना नाम बताया। अब मैंने अपनी जिज्ञासा व्यक्त करने के साथ ही उनसे पूछा एसएमएस में आपने अपना नाम लिखा था क्या। उन्होंने उल्टे मुझसे ही प्रश्न किया आप को मेरा नंबर भी याद नहीं है क्या। मैंने समझाने की कोशिश की मोबाइलसेट चैंज करने, मोबाइल मैमोरी कार्ड हो जाने, नंबर चैंज होने जैसे कई कारण हो सकते हैं। सारे कारण, माफी की पहल भी बेअसर होती नजर आई तो मैंने अंत में उस दोस्त को कह ही दिया अच्छा होता तुमने एसएमएस में अपना नाम लिखा होता। रही बात फोन पर आवाज पहचानने की तो वह सुविधा मेरे फोन में नहीं है। जाहिर है मेरे इस रूखे जबाव के बाद बात एक झटके में खत्म हो गई।
मोबाइल से हमें जितनी सुविधाएं मिली हैं, उतनी ही दुविधा भी बढ़ गई है। जब लैंड लाइन फोन पर निर्भरता थी या जब शुरूआती दौर में मोबाइल पर कॉल रेट आठ रुपए प्रति मिनट होता था तब फोन पर 'पैचान कौनÓ स्टाइल में कोई भी देर तक बात नहीं करता था और लंबी बात की स्थिति में घड़ी पर बार बार नजर जरूर जाती थी। जब से बात करना सस्ता या एक ही ग्रुप नंबरों पर फ्री कॉल जैसा होता जा रहा है, अचार के लिए मसाले से लेकर आज कौन सी ड्रेस पहनी जाए ये सारे गंभीर डिसीजन लेने में फोन पर हमने कितनी लंबी चर्चा की इसका तो पता ही नहीं चलता।
हम में से ज्यादातर को आए दिन अपने लोगों के इस तरह के उलाहनों का सामना करना ही पड़ता है। लोग फोन पर अपना गुस्सा निकालना तो जानते हैं लेकिन यह याद नहीं रखते कि फोन पर बात करने के भी कुछ मैनर्स होते हैं। जिसे हम फोन या एसएमएस करते हैं वह चाहे जितना हमारा प्रिय क्यों न हो हमें यह याद नहीं रहता कि एसएमएस करते वक्त साथ में अपना नाम, शहर या अपनी कोई पहचान है तो वह भी लिखते हैं या नहीं। अब सिर्फ नाम लिखना तो कतई पर्याप्त नहीं क्योंकि एक ही शहर में एक जैसे नाम वाले कई मित्र रहते ही हैं। इन सब नामों क ी पहचान में गड़बड़ी न हो इसीलिए हम सब को अलग-अलग तरीके से पहचानते हैं। फिर एसएमएस या फोन पर बात करते वक्त इन बातों का ध्यान क्यों नहीं रखते। जब हम यह अनिवार्य सजगता बरतना नहीं जानते तो फिर इस बात को भी प्रेस्टीज पॉइंट नहीं बनाना चाहिए कि सिर्फ आवाज से किसी ने आप को फोन पर क्यों नहीं पहचाना।
हम अपनी सुविधा से फोन लगाते हैं लेकिन यह ध्यान नहीं रखते कि जिसे फोन लगाया है वह भी उस वक्त बात करने की स्थिति में है भी या नहीं। हम फोन पर बात शुरू करने से पहले इतना पूछना भी जरूरी नहीं समझते कि मुझे आप से कुछ चर्चा करनी है, आप के पास अभी वक्त है या थोड़ी देर से फोन लगाऊं। हम तो अधिकार पूर्वक नंबर डायल करने के साथ ही यह मान कर चलते हैं कि सामने वाला जैसे हमारे फोन का इंतजार ही कर रहा है। बिना अपना नाम बताए सीधे अपने काम की बात शुरू करने में हमें संकोच नहीं होता। फिर न तो हम वक्त का ख्याल रखते हैं और न ही सामने वाले की परेशानी को जानने की कोशिश करते हैं।
जो लोग सार्वजनिक क्षेत्र से जुड़े होते हैं फिर चाहे वह क्षेत्र राजनीति, संचार, वकालत, चिकित्सा, प्रशासनिक आदि ही क्यों न हो हम तो यह मानकर चलते हैं कि इन्हें यदि हमने फोन लगाया है तो बस हमारी समस्या तो हाथों हाथ हल होना ही चाहिए।
हम तो अपने काम, अपनी समस्या के त्वरित निदान को लेकर इतने स्वार्थी हो गए हैं कि विवाह समारोह में भोजन कर रहे परिचित डॉक्टर को रात से हो रहे लूज मोशन की डिटेल बताने के साथ हाथों-हाथ दवा-गोली पूछ लेने में भी हमें हिचक महसूस नहीं होती। वकील से हम श्मशानघाट में भी अपने किसी विवाद को लेकर सलाह लेने में संकोच नहीं करते। ऐसे में यदि संबंधित पक्ष से मनोनुकूल जवाब न मिले तो दूसरे ही पल हम बुराइयों का इतिहास खोल कर बैठ जाते हैं फिर हमें इस एक काम के न हो पाने के गुस्से में इससे पहले कराए गए अन्य दस कामों की याद भी नहीं रहती। हमारी इन छोटी-छोटी गलतियों के कारण वर्षों में हरा हुआ आत्मीय संबंधों का पौधा पल भर में सूख जाता है। इसके सूखने का कारण भी हम पड़ोसी के घर के कारण धूप न मिलना बता देते हैं पर यह नहीं स्वीकार पाते कि हमने भी इस गमले को बालकनी में रखने के प्रयास नहीं किए।
अच्छा सबक है भाई साहब. इसे पढ़कर लोग वेवजह मसखरी रे थोड़ा बाज आएँगे.
ReplyDeleteबहुत अच्छा सबक लिखा हैं आपने.
ReplyDeleteहर किसी के पास मोबाइल जरूर हैं, लेकिन तहजीब, सलीका किसी-किसी के पास ही हैं.
बहुत बढ़िया,
धन्यवाद.
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ब्लॉग गुरु जी क्या बात???
ReplyDeleteमुझे कोई नाराज़गी हैं या मुझसे कोई भूल हो गयी????
ब्लॉग-गुरु जी, आप मेरे ब्लॉग पर आते ही नहीं, और कमेन्ट भी नहीं करते.
आपके आशीर्वाद, आपकी प्रेरणा से ही तो मैं ब्लॉग की दुनिया में आया था और आज भी आपके दुआ से ही ब्लॉग लेखन जारी हैं.
कृपया मेरे ब्लॉग पर अवश्य आया करे और कमेन्ट भी अवश्य किया करे. कमेन्ट से ही तो मुझे आपके आने का पता चलेगा.
धन्यवाद ब्लॉग-गुरु.
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BILKUL SAHI...
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा राणा साहब आपने
ReplyDeleteमेरे एक प्रोफ़ेसर साहब अक्सर कहा करते थे :
WE HAVE ACQUIRED LATEST GADGETS BUT LACK THE ETIQUETTES TO USE THEM..
यह उन दिनों की बात है जब मोबाइल नया ही था तथा बहुत लोगों के पास नहीं था, मोबाइल एक दिखावे की वस्तु ज़्यादा थी...
आपने बहुत सही विषय उठाया है
बधाई
मनोज खत्री
preshani to h hi, raat ko service karne wali ki to or bhi mushibat h ye Mobile. Raat bhar jago or din m hello hello hello hello........m to preshan ho gaya. Nokari ke chakkar m switch off bhi nahi kar sakate.. Na Nind puri hoti h na chain milta h. is mobile ne to raat ko jagne walon ko bhi din ka Ullloo bana diya. AAj mobile mobile nahi ak aafta ho gayi h. Or to or Ik din ghanti aaye aage se bole aapne phone kyon kiya. mane kaha bhai shahab aap koin h, mane aapko phone nahi kiya, m to vodafone rakhta hun phone karne ke liya. phir kya tha dubara bell, phir kaha aapne phone kyon kiya. arye had ho gayi bhai sahab mene phone nahi kiya. nahi aapne phone kiya, mane kaha nahi aap ke pass kisi or no. se bell aaye hogi. nahi nahi isi no. se bell aayi. tu taram tu taram hoti rahi. phir mane kaha m to police m aapki report karwane ja rahan hun. uske baad aaj tak us no. se bell nahi aayi. aaj bhi vo no. mere mobile m AAFT ke naam se save pare han...............
ReplyDeletethanks sir,
jangir kumar rajesh
बधाई हो राणा जी, सामयिक विषय उठाया है...लोग फोन करते ही नाम तो बताएँगे नहीं और फिर क्लू देते हैं..कि अब बताओ हम कौन हैं...कई तो किसी हालत में अपना नाम नहीं बताते..फिर ये कह कर फोन काट देते हैं कि चलो..कोई बात नहीं...बाद में पहचान लो तो बात कर लेना...हम किन कार्यों में व्यस्त हैं..ये क्यों नहीं देखते कुछ लोग... आप हर बार अच्छा विषय उठाते हैं..कुछ लोगों पर असर भी होता है... कुछ पर हो जाये तो भी अच्छा है..धीरे धीरे सब पर होने लगेगा...फिर से बधाई..याद बहुत आती है...दूरियां बहुत है..व्यस्तता भी है..छुट्टी भी नहीं...इच्छा है...मिलने की ...देखो इश्वर कब मिलता है... Blogs...ddji.blogspot.com,deendayalsharma.blogspot.com, taabardunia.blogspot.com, ddrajasthani.blogspot.com, taabartoli.blogspot.com
ReplyDeleteकीर्ति भाई हम रिश्तों की एक ऐसी नौटंकी के सारथी हैं जहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ मतलब के तक़ाज़े ज़िन्दा हैं. मैं आपका फ़ोन आने पर क्यों पहचानूँ;आप अभिवादन कर के बताइये न कि कौन बोल रहे है. तकनीक और तत्काल के दौर में हम तहज़ीब को तमस के चूल्हे में राख कर रहे हैं. चिट्ठी के दौर में किसी के दु:ख और सुख का समाचार जानने का भी एक सस्पैंस था....अब रिश्तों का ताना-बाना रूपये के आगे पीछे नाच रहा है..हम ख़ूब बिगड़े हैं और और बरबाद होंगे.....
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