चाहे संतान हो सांड जब उसमें आवारा के लक्षण आने लगे तो फिर वह कॉलोनी-गांव के लिए सिरदर्द बन जाते हैं। शहर में सुबह से रात तक कॉलोनियों में कलाबाजी दिखानेवाले बिगड़ैल बाइकर्स से लोग उतने ही परेशान हैं जितने गांवों के लोग आवारा पशुओं से। शहर में हाल की घटनाओं के कारण ये बाइकर्स रहे हैं। नित नई फरमाइश पूरी होने से बिगड़ने वालों बच्चों के बारे में पैरेंट्स को बहुत देर से पता चलता है कि वे उनकी ममता व भरोसे को कैसे किक मारते रहे। आवारा मवेशियों से राहत के लिए तो नगरपरिषद ने अभियान शुरू कर दिया है। बिगड़ैल बाइकर्स के खिलाफ भी प्रशासन को ऐसा कुछ करना चाहिए कि कॉलोनियों के लोगों को राहत तो मिले ही, कोचिंग सेंटर पर वाकई पढ़ाई के लिए जाने वाले स्टूडेंट्स परेशान भी न हों। गल्र्स कॉलेज-स्कूल, कोचिंग सेंटर के आसपास दोपहर से शाम तक मंडराने वाले बिगड़ैल युवाओं को आसपास के रहवासी तो मवाली ही मानते हैं, जो नहीं जानते वे उन्हें कोचिंग सेंटर पर आए स्टूडेंट समझ लेते हैं, यानी बेवजह सेंटर भी बदनाम हो जाते हैं। लगभग सभी कॉलोनियों में कोचिंग सेंटर चल रहे हैं, अच्छा तो यही होगा कि बिगड़ैल बाइकर्स पर नकेल के लिए पुलिस प्रशासन सारे कोचिंग संचालकों, आसपास के प्रमुख नागारिकों की संयुक्त बैठक बुलाए, परेशानी समझे, सुझाव मांगे, अपना एक्शन प्लान बताए और सख्ती से अभियान भी चलाए। जिन घरों में जवान होती बेटियां हैं, उन परिवारों के मुखिया तो ऐसी मीटिंग में भी परेशानी बताने से हिचकेंगे ही। लेकिन ऐसे परिवारों को राहत और सूने रास्तों पर चेन झपटने, पर्स छीनने जैसी घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए पुलिस प्रशासन को तो अभियान चलाने से नहीं हिचकना चाहिए। जवानी के जोश और मौत को चुनौती देती स्पीड में बाइक दौड़ाने वाले बिगड़ैल युवा मां-बाप का नाम मिट्टी में मिलाने का काम भी कर रहे हैं। गांव-शहर में परेशानी बढ़ाने वाले आवारा ढोरों जैसी सख्ती इन पर इसलिए जरूरी है क्योंकि इन बिगड़ैल बाइकर्स को नहीं पता कि यही स्पीड कभी उनके पैरेंट्स को भी खून के आंसू रुला सकती है।
kirti_r@raj.bद्धaskarnet.com
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